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________________ - गीता दर्शन भाग-500 शक्य हो, यदि आप समझें कि यह रूप देखा जाना शक्य है, तो | है; दो-चार दिन टिकता है, फिर खो जाता है। दो-चार दिन कहते अपने अविनाशी स्वरूप का मुझे दर्शन कराइए। अब मुझे कहिए | हुए सुने जाते हैं, बड़ी शांति मिल रही है। फिर दो-चार दिन के बाद मत कुछ, अब मुझे दिखाइए। अब मैं स्वाद लेना चाहता हूं। सुनना | | उनका पता नहीं चलता। वह जो बड़ी शांति मिल रही होती है, वह नहीं चाहता, हो जाना चाहता हूं। अनुभव! कि मैं भी वही जान | | मौसमी फूल था, उसकी कोई जड़ नहीं थी। अधैर्य की कोई जड़ें सकू, जो आप जानते हैं। और वही जान सकू, जो आप हैं। नहीं हैं। धैर्य चाहिए। इस प्रकार अर्जुन के प्रार्थना करने पर कृष्ण ने कहा, हे पार्थ, मेरे और अर्जुन ने यह जो कहा कि अगर शक्य हो...। मुझे कुछ सैकड़ों तथा हजारों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा आकृति | पता नहीं है। और मुझे पता हो भी नहीं सकता। जिस अनंत में मैं वाले अलौकिक रूपों को देख। | झांका नहीं हूं, उसमें झांक सकूँगा, यह मैं कैसे कहूं? आप ही तय अर्जुन बिलकुल तैयार था। और उसकी रुकने की तैयारी लक्षण | कर लें। है। अधैर्य रुग्ण चित्त का लक्षण है। जो कहता है, मैं रुक सकता | | जो शिष्य गुरु पर छोड़ता है इतनी हिम्मत से—यह समर्पण हूं, प्रतीक्षा कर सकता हूं, जब समझें कि योग्य हूं, तब तक राह | | है—वह इसी क्षण भी तैयार हो गया। इसलिए कृष्ण ने अर्जुन की देखूगा, वह इसी वक्त योग्य हो गया। इतना धैर्य योग्यता है। जो योग्यता की बात ही नहीं की। उन्होंने तत्क्षण कहा कि ठीक है, तो कहता है, अभी दिखा दें, अभी करवा दें, अभी हो जाए, जल्दी हो | तू मेरे अलौकिक रूपों को देख। जाए...। और हे भरतवंशी अर्जुन, मेरे में आदित्यों को, अदिति के द्वादश मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, ध्यान कितने दिन करें तो पुत्रों को, आठ वसुओं को, एकादश रुद्रों को, अश्विनी कुमारों परमात्मा का अनुभव हो जाए! कितने दिन! कितने जन्म पूछे, तो को, मरुदगणों को देख और भी बहत-से पहले न देखे हए संगत मालूम पड़ता है। वे पूछते हैं, कितने दिन! मैं उनसे पूछता | आश्चर्यमय रूपों को देख। और हे अर्जुन, अब इस मेरे शरीर में हूं, चौबीस घंटे करिएगा? कहते हैं, नहीं। आधा घंटा, पंद्रह मिनट | | एक जगह स्थित हुए चराचर सहित संपूर्ण जगत को देख और भी रोज निकाल सकते हैं। पंद्रह मिनट भी सच में मौन हो जाइएगा? जो कुछ देखना चाहता है सो देख। वे कहते हैं, कहीं एकाध क्षण को पंद्रह मिनट में हो गए तो हो गए, | । इसमें कुछ बातें समझ लेने जैसी हैं। पहली तो बात यह कि कृष्ण कुछ पक्का नहीं है। पर कितने दिन लगेंगे? और अगर मैं उनको | ने फिर योग्यता की बात ही न की। कृष्ण ने फिर शक्यता की बात कह दूं, एक साल, दो साल, तो ऐसा लगता है, यह उनके वश के | ही न की। कृष्ण ने फिर यह सवाल ही नहीं उठाया इस संबंध में कि बाहर की बात है। उनको लगता है, कोई उनको कहे कि ऐसा | तू पात्र हो गया या नहीं, घड़ी आ गई या नहीं। कृष्ण ने कहा, देख। दस-पंद्रह दिन में हो जाएगा, तो भरोसा आता है। यही अर्जुन अगर गीता में थोड़ी देर पहले यह पूछता, तो कृष्ण इतना अधैर्य हो, तो फिर वही चीजें हम पा सकते हैं, जो | | दिखाने को इतनी सरलता से राजी नहीं हो सकते थे। तो अर्जुन ने दस-पंद्रह दिन में मिलती हैं। फिर वे चीजें नहीं पा सकते, जो क्या अर्जित कर लिया है इस बीच में, उस पर हम खयाल कर लें, जन्मों-जन्मों में मिलती हैं। फिर मौसमी पौधे लगाना चाहिए हमें। तो वह आपको भी सहयोगी हो जाए, कि जिस दिन आप उतना जो लगाए नहीं कि दो-चार दिन में फूल देना शुरू कर देते हैं। | अर्जित कर लें, उस दिन आपको भी परमात्मा क्षणभर नहीं रुकाता लेकिन बस मौसम में ही रौनक रहती है। फिर हमें उन वृक्षों की | है, उसी क्षण दिखा देता है। आशा छोड़ देनी चाहिए, जो सदियों तक लगते हैं। उनकी हमें ___ और ऐसा मत सोचना कि अर्जुन के पास तो कृष्ण थे, आपके आशा छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि इतना अधैर्य हो, तो जड़ें गहरी पास तो कोई भी नहीं है। हर अर्जुन के पास कृष्ण है। और जब आप नहीं जा सकतीं। और जड़ें जितनी गहरी जाएं, वृक्ष उतना ऊपर जाता अर्जुन की इस घड़ी में आ जाते हैं, तब आप अचानक पाएंगे कि है। जितना होता है वृक्ष ऊपर, उतना ही जड़ों में होता है नीचे। तो कृष्ण मौजूद है। आपको भी जो चला रहा है, वह कृष्ण ही है। वह जो मौसमी पौधा है, उसकी कोई जड़ तो होती नहीं। उतना ही | आपका भी जो सारथी है, वह कृष्ण ही है। आपने न कभी उससे पूछा ऊपर होता है, उतनी ही देर टिकता है। है, न कभी उसकी तरफ ध्यान दिया है, न कभी उसकी सुनी है। इसलिए बहुत लोग ध्यान सीखते हैं; बस, मौसमी पौधा होता अगर हम आदमी को एक रथ समझ लें, तो आपका मन अर्जुन 256
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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