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ॐ विराट से साक्षात की तैयारी
हो गई, और मन पर इतनी छा गई, तो उसका कारण है। यह काफी कीमती है, सोचने जैसा है। क्योंकि बहुत-से लोग
उपनिषद हैं, वनों के एकांत में, मौन, शांति में, गुरु और शिष्य इस तरह के अज्ञान मिटने को ही ज्ञान समझ लेते हैं। शास्त्र हैं, के बीच, बड़े ध्यान के क्षण में संवादित हैं। बाइबिल है, बहुत सदवचन हैं, सदगुरु हैं, उनके वचनों को लोग इकट्ठा कर लेते हैं; एकांत में चुने हुए शिष्यों से कही गई बातें हैं। लेकिन गीता घने और सोचते हैं, ज्ञान हो गया; और सोचते हैं, जान लिया। क्योंकि संसार के बीच दिया गया संदेश है। और युद्ध से ज्यादा घना संसार | गीता कंठस्थ है, वेद के वचन याद हैं, उपनिषद होंठ पर रखे हैं, क्या होगा? वहां भी अध्यात्म घटित हो सकता है, अगर पात्र सीधा | तो ज्ञान हो गया। हो। और वह जो गोपनीय है, अधिकतम गोपनीय है, जो सबके ___ ध्यान रहे, अर्जुन कहता है, अज्ञान नष्ट हो गया। अब तक जो सामने नहीं कहा जा सकता, वह भी कहा जा सकता है, अगर पात्र | | मेरी मान्यता थी अज्ञान से भरी हुई, वह टूट गई। लेकिन अभी ज्ञान शांत, मौन, स्वीकार करने को तैयार हो।
नहीं हुआ है, क्योंकि ज्ञान तो तभी होता है, जब मैं अनुभव कर लूं। फिर भौतिक अकेलेपन का अर्थ होता है, कोई और मौजूद नहीं।। ___ यह कृष्ण ने जो कहा है, इस पर भरोसा आ गया। और कृष्ण आध्यात्मिक अकेलेपन का अर्थ होता है, आप मौजूद नहीं। । | जैसे लोग भरोसे के योग्य होते हैं। उनकी मौजूदगी भरोसा पैदा इसे ठीक से समझ लें।
| करवा देती है। उनका खुद का आनंद, उनका खुद का मौन, उनकी भौतिक भीड़ का अर्थ होता है, बहुत लोग मौजूद हैं। शांति, उनकी शून्यता, छा जाती है, आच्छादित कर लेती है। उनकी आध्यात्मिक एकांत का अर्थ होता है, शिष्य मौजूद नहीं। | आंखें, उनका होना, पकड़ लेता है चुंबक की तरह, खींच लेता है
गुरु तो गैर-मौजूदगी का नाम ही है, इसलिए उसकी हम बात | प्राणों को, भरोसा आ जाता है। ही न करें। गुरु का तो अर्थ ही है कि जो गैर-मौजूद हो गया। जो | __ लेकिन यह भरोसा ज्ञान नहीं है। यह भरोसा उपयोगी है हमारी अब एब्सेंट है, जो उपस्थित नहीं है; जो दिखाई पड़ता है और | भ्रांत धारणाओं को तोड़ देने के लिए। लेकिन भ्रांत धारणाओं का भीतर शून्य है।
टूट जाना ही सत्य का आ जाना नहीं है। जब शिष्य भी गैर-मौजूद हो जाए, इतना डूब जाए कि भूल जाए| | पंडित ज्ञानी नहीं है। पंडित अज्ञानी नहीं है, पंडित ज्ञानी भी नहीं अपने को कि मैं हूं, तो आध्यात्मिक एकांत घटित होता है। और | है। पंडित अज्ञानी और ज्ञानी के बीच है। अज्ञानी वह है, जिसे कुछ उस एकांत में ही वे गोपनीय सूत्र दिए जा सकते हैं; किसी और तरह | भी पता नहीं। पंडित वह है, जिसे सब कुछ पता है। और ज्ञानी वह से दिए जाने का जिनका कोई भी उपाय नहीं है।
है, जिसके पता में और जिसके अनुभव में कोई भेद नहीं है। जो तो अर्जुन ने कहा कि जो अत्यंत गोपनीय है, वह भी अनुग्रह | | जानता है, जो उसकी जानकारी है, वह उसका अपना निजी अनुभव करके तुमने मुझे कहा, उससे मेरा अज्ञान नष्ट हो गया है। | भी है। वह उधार नहीं जानता। किसी ने कहा है, ऐसा नहीं जानता। - इसे खयाल कर लें। अज्ञान का नष्ट हो जाना, यहां ज्ञान का पैदा खुद ही जानता है, अपने से जानता है। हो जाना नहीं है। ज्ञान तो है अनुभव। अज्ञान तो नष्ट हो सकता है | | अभी अर्जुन को जो जानकारी हुई, वह कृष्ण के कहने से हुई है। गुरु के वचन से भी। लेकिन नकारात्मक है। अर्जुन कह रहा है, मेरा | | अभी कृष्ण ऐसा कहते हैं, और कृष्ण पर अर्जुन को भरोसा आया अज्ञान नष्ट हो गया।
| है, इसलिए अर्जुन कहता है कि मेरा अज्ञान टूट गया। लेकिन अभी वह यह कह रहा है कि अब तक मेरी जो मान्यताएं थीं, वे टूट | | मैं नहीं जानता हूं, अभी तुम कहते हो। गईं। अब तक जैसा मैं सोचता था, अब नहीं सोच पाऊंगा। आपने | इसलिए अगर कृष्ण थोड़ा हट जाएं अलग, अर्जुन के संदेह जो कहा, उसने मेरे विचार बदल दिए। आपने जो मुझे दिया, उससे | वापस लौट आएंगे। इसलिए कृष्ण अगर खो जाएं, तो अर्जुन फिर मेरा मन रूपांतरित हो गया; मैं बदल गया हूं। मेरा अज्ञान टूट गया। | वापस वहीं पहुंच जाएगा, जहां वह गीता के प्रारंभ में था। उसमें देर लेकिन अभी ज्ञान नहीं हो गया है। अभी बीमारी तो हट गई है. | नहीं लगेगी। और अगर ईमानदार होगा तो जल्दी पहंच जाएगा. लेकिन अभी स्वास्थ्य का जन्म नहीं हुआ है। अभी नकारात्मक रूप अगर बेईमान होगा तो थोड़ी देर लगेगी। क्योंकि तब वह शब्दों को से बाधाएं मेरी टूट गईं, लेकिन अभी पाजिटिवली, विधायक रूप ही दोहराता रहेगा, घोंटता रहेगा। और अपने को समझाता रहेगा से मेरा आविर्भाव नहीं हुआ है।
| कि मुझे मालूम है, मुझे मालूम है।
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