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________________ 3 शस्त्रधारियों में राम - उसने दसों को चांटे मारे। उनकी व्यर्थ पिटाई भी हुई, लेकिन वे | न जानता हो। आनंदित भी बहुत हुए। और दसों नाचने लगे और उस आदमी को रामकृष्ण दूसरी क्लास तक पढ़े हैं। शास्त्र ठीक से पढ़ नहीं धन्यवाद देने लगे कि तुम्हारी बड़ी कृपा है कि तुमने दसवां मौजूद | | सकते। बातें भी जो करते हैं, वे ग्रामीण की हैं। लेकिन वे उस विद्या कर दिया। को जानते हैं, कृष्ण जिसके साथ अपना तादात्म्य कर रहे हैं। कबीर समस्त साधनाएं आपको चांटा मारने से ज्यादा नहीं हैं। जिसमें | | जुलाहे हैं। नानक पढ़े-लिखे नहीं हैं। मोहम्मद को क ख ग भी नहीं आपको एक का...। और कुछ नहीं है। और समस्त गुरु आपको आता। दस्तखत भी मोहम्मद नहीं कर सकते हैं। लेकिन कृष्ण कह सिवाय चांटा मारने के और कुछ भी नहीं करते हैं, कि किसी तरह | रहे हैं कि मैं विद्याओं में अध्यात्म-विद्या हूं। आपका वह जो खो गया आदमी है, वह आपके खयाल में आ| क्योंकि मान्यता यह है कि जिसने सब जान लिया और स्वयं को जाए। वह अभी भी मौजूद है; वह कहीं खो नहीं गया है। वे दस ही न जाना, उसके जानने का उपयोग क्या? और जिसने कुछ भी न थे, लेकिन हर एक अपने को गिनना भूल जाता था। | जाना और स्वयं को जान लिया, उसने सब जान लिया। क्योंकि सारी विद्याएं दूसरों को गिनती हैं, स्वयं को छोड़कर। सब | | अंततः जीवन का जो परम आनंद है, वह स्वयं को जानने से घटित विद्याएं दूसरे को जानती हैं, स्वयं को छोड़कर। इसलिए सभी होगा। और अंततः मृत्यु के भी पार जाने वाला जो अमृत सूत्र है, विद्याओं के भीतर गहन अविद्या छिपी रहती है। इसलिए एक | वह स्वयं को जानने से घटित होगा। और अंततः सब जाना हुआ आदमी गणित का बहुत बड़ा पारंगत विद्वान हो जाता है, लेकिन जो हमारा पराया है, वह पड़ा रह जाएगा; जो मेरे साथ जा सकेगा, जिंदगी के मामले में ऐसा ही मूढ़ होता है, जैसे कोई और मूढ़ है। वह मेरा स्वयं का बोध है। एक आदमी बड़ा वैज्ञानिक हो जाता है। वैज्ञानिक तो ठीक है, यहां मृत्यु के पार जिसे न ले जाया जा सके, उसे हम ज्ञान नहीं मानते। तक हालत होती है कि एक आदमी बड़ा मनोवैज्ञानिक हो जाता है, | | हम तो ज्ञान उसे मानते हैं कि लपटों में जब शरीर भी जल जाए, बड़ा साइकोलाजिस्ट हो जाता है, मन के संबंध में सब जान लेता | तब भी मेरा ज्ञान न जले। आग भी मेरे ज्ञान को न जला सके, मृत्यु है, लेकिन खुद के मन के संबंध में वैसा ही दीन और कमजोर होता | भी मेरे ज्ञान को नष्ट न कर सके, तो ही वह ज्ञान है। अन्यथा उस है, जैसा कोई और। ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है। खुद फ्रायड, जिसने पूरे जीवन यौन और यौन से संबंधित सारी | तो हम सब जान लें, वह जानना ऊपरी है। उपयोगी हो सकता बीमारियों का अध्ययन किया और यौन की सारी विकृतियों का | है, लेकिन आत्यंतिक उसका मूल्य नहीं है। अंततः वह व्यर्थ हो अध्ययन किया, उसने भी लिखा है कि पचास साल की उम्र में भी | जाएगा। इसलिए हम बड़े से बड़े पंडित को भी, जो बहुत जानता एक दिन अचानक रास्ते से गुजरती हुई एक स्त्री को देखकर धक्का | | हो, मरते वक्त वैसा ही दीन हो जाते देखते हैं, जैसा कोई भी मर देने का मन हो गया। यह आदमी ईमानदार है। हमारे मुल्क का कोई रहा हो। मृत्यु बता देती है कि आपने कुछ जाना कि नहीं जाना। मृत्यु आदमी होता तो ऐसा कभी बताता नहीं। पर उसने लिखा है कि खबर दे देती है। हैरानी की बात है कि अब पचास साल की उम्र में भी रास्ते पर एक हिंदुस्तान से सिकंदर जब वापस लौटता था। तो उसके गुरु ने, स्त्री को देखकर धक्का लगाने का मन मेरा हुआ है। | अरस्तू ने उसे कहा था कि हिंदुस्तान से एक संन्यासी को लेते आना अगर आप फ्रायड से पूछे, तो क्रोध के संबंध में वह सब जानता आते वक्त। है। लेकिन अगर उसको गाली दे दें, तो वह इतना क्रोधित हो जाता __ अरस्तू महाज्ञानी था। ज्ञानी, पंडित के अर्थ में। बहुत जानता था। था कि बिलकुल पागल हो जाए। सच तो यह है कि पश्चिम में जितने विज्ञान विकसित हुए, सबका यह मजे की बात है। मनोविज्ञान भी आप जान ले सकते हैं, वह पिता अरस्तू है। सबका! जितने विज्ञान विकसित हुए, सबकी भी दूसरे के बाबत है। अपने संबंध में उसका कुछ लेना-देना नहीं | आधारशिलाएं अरस्तू रख गया। एक अकेले आदमी ने इतने है। स्वयं आदमी अपरिचित ही रह जाता है। विज्ञानों को कभी जन्म नहीं दिया। इसलिए अरस्तू अदभुत है। __ अध्यात्म-विद्या उसकी विद्या है, जिससे हम स्वयं को जानते हैं। लेकिन उसने भी सिकंदर को कहा था कि जब तुम आओ और तब यह भी हो सकता है कि एक अध्यात्म ज्ञानी कुछ भी और हिंदुस्तान से, तो बहुत कुछ लूटकर लाओगे, एक संन्यासी को भी 189
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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