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________________ ॐ शस्त्रधारियों में राम 0 तो मृत, यंत्रवत हो जाता है। पुराने को तो हम ऐसे करते हैं जैसे | है; घर का जो प्रेत है, वह अभी पीछा कर रहा है। वह पीछा करेगा। कोई रोबोट, कोई मशीन का आदमी कर रहा हो। उसमें हमें फिर __ संन्यासी तो वह है, जिसका न कोई घर है, न कोई धर्म है। बुद्धिमत्ता की, चेतना की, होश की, कोई भी जरूरत नहीं रह जाती। संन्यासी तो वह है, जिसका कोई भी नहीं। जो यह नहीं कहता कि हम करते चले जाते हैं। | ईसा मेरे हैं, कि बुद्ध मेरे हैं, कि महावीर मेरे हैं, कि कृष्ण मेरे हैं। आप अपने घर जब आते हैं, तो आपको सोचना नहीं पडता. | या तो सभी कुछ उसका है, या कुछ भी उसका नहीं है। इन दो के बाएं मुडू, दाएं मुडूं। आप मुड़ते चले जाते हैं। यह काम शरीर ही अलावा उसके लिए कोई उपाय नहीं है। तो फिर वह वायु की तरह कर लेता है। इसके लिए आपको कुछ, किसी तरह के होश की हो जाएगा। जरूरत नहीं होती। शराबी भी शराब पीकर अपने घर पहुंच जाता | । तो वायु का पहला लक्षण है कि कहीं रुकती नहीं। है। कितने ही हाथ-पैर डोलते हों, वह भी अपने घर का जाकर दूसरा लक्षण है वायु का कि दिखाई नहीं पड़ती, और है। वह द्वार-दरवाजा खटखटाने लगता है। यह यंत्रवत है। इसके लिए कोई और भी गहरी बात है। वायु है, अनुभव होती है, दिखाई नहीं सोच-विचार की जरूरत नहीं है। पड़ती। स्पर्श होता है, प्रतीति होती है, पकड़ में नहीं आती। पकड़ इसलिए जितने हम जम जाते हैं, उतना ही सोच-विचार से में नहीं आती, इसलिए बांधना मुश्किल है, रोकना मुश्किल है, छुटकारा हो जाता है। विचार बड़ा कष्टपूर्ण है। इसलिए दुनिया में | परतंत्र करना मुश्किल है। कोई भी आदमी विचार नहीं करना चाहता, विचार से बचना चाहता ___ कृष्ण कहते हैं, पवित्र करने वालों में मैं वायु की भांति हूं। है। इसी वजह हमारा प्रवाह समाप्त हो जाता है। जितनी पवित्रता होगी, उतनी ही ट्रांसपैरेंसी हो जाएगी। जितनी कृष्ण कहते हैं, पवित्र करने वालों में मैं वायु हूं। | पवित्रता होगी, उतना ही आर-पार दिखाई पड़ने लगेगा। अगर तो वायु का पहला लक्षण तो यह है कि वह कहीं ठहरती नहीं। | आपने कोई पवित्र कांच देखा हो, बिलकुल शुद्ध, तो कांच भी आई भी नहीं, कि गई। आ भी नहीं पाई, कि जा चुकी। आना भी । | दिखाई नहीं पड़ेगा। आर-पार सब दिखाई पड़ेगा, बीच में कोई भी नहीं हो पाया, कि जाना हो गया। वायु कहीं भी मेहमान नहीं बनती। | | बाधा न होगी। वायु की पवित्रता उसकी पारदर्शिता भी है। स्पर्श करती है और हट जाती है। एक बहुत पुरानी इजिप्त में लोकोक्ति है कि जब कोई व्यक्ति संन्यासी वायु की तरह होना चाहिए। रुके न। जरूरी नहीं है कि | परम पवित्र हो जाता है, तो उसकी छाया नहीं बनती। जब वह वह मकान बदलता रहे, क्योंकि मकान बदलने से कुछ भी नहीं | चलता है धूप में, तो उसकी छाया नहीं बनती। होता। मकान बदलकर भी रुकना हो सकता है। मकान बदलकर यह सिर्फ इसी बात के लिए इशारा है। छाया तो बनती है महावीर भी रुकना हो सकता है, क्योंकि रुकने के बड़े इंतजाम हैं। अब एक की भी और कृष्ण की भी और बुद्ध की भी। लेकिन इजिप्त की यह आदमी रोज मकान बदल लेता है, लेकिन रोज अपने को तो नहीं बड़ी प्राचीन कहावत कहती है कि जो पावन, परम पवित्र हो जाता बदलेगा, तो वहीं जड़ हो जाएगा। है, उसकी छाया नहीं बनती। यह सिर्फ इस बात की सूचना देता है एक संन्यासी घर छोड़ देता है, लेकिन उस घर में जो भी सीखा | | कि जो इतना पवित्र हो जाता है कि जिसके भीतर कोई अशुद्धि न था, वह तो साथ ही लेकर चलता है। मजे की घटना घटती है दुनिया | रह गई हो, तो उसके आर-पार दिखाई पड़ने लगता है। और जिसके में कि संन्यासी भी हिंदू होता है, मुसलमान होता है, जैन होता है, आर-पार दिखाई पड़ने लगे, उसकी छाया नहीं बनेगी। छाया नहीं ईसाई होता है। ये रुके होने के लक्षण हैं। संन्यासी को तो सिर्फ बनेगी, यह केवल प्रतीक है। संन्यासी होना चाहिए। महावीर के आर-पार दिखाई पड़ता है। महावीर एक दरवाजे की हिंदू होने का मतलब है, उस घर से अभी बंधन है, जहां बड़ा | भांति हैं, खुले हुए। और हम एक दीवाल की भांति हैं, हमारे हुआ था, जहां पाला गया था, जहां शिक्षा दी गई थी। जैन होने का | | आर-पार कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। हमें खुद नहीं दिखाई पड़ता, मतलब है, उस घर से अभी बंधन है, जहां यह धर्म दिमाग में डाला दूसरे को दिखाई पड़ना तो बहुत मुश्किल है। हम खुद एक ठोस गया था। जहां ये विचार डाले गए थे, वहां से अभी लगाव है। घर | | दीवाल हैं पत्थरों की, जिसमें अपने को ही खोजना हो, तो भी बहुत छोड़ दिया, लेकिन घर की जो आत्मा थी, वह अभी पीछा कर रही मुश्किल है। कुछ दिखाई नहीं पड़ता। 179
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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