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| हां अर्जुन को मैं मानकर चल रहा हूं कि वह जैसे आदमी के भीतर
का, सबके भीतर का, सार-संक्षिप्त है। है भी। और कृष्ण को मानकर चल रहा हूं कि जैसे वे आज तक इस जगत में जितनी भगवत्ता के लक्षण प्रकट हुए हैं, उन सबका सार-संक्षिप्त हैं। कृष्ण जैसे इस जगत में जो भी भगवान होने जैसा हुआ है, उस सबका निचोड़ हैं। और अर्जुन जैसे इस जगत में जितने भी डांवाडोल आदमी हुए हैं, उन सबका निचोड़ है।
इसलिए गीता जो है, वह दो व्यक्तियों के बीच ही चर्चा नहीं है; दो अस्तित्वों के बीच, दो दुनियाओं के बीच, दो लोकों के बीच, दो अलग-अलग आयाम जो समानांतर दौड़ रहे हैं, उनके बीच चर्चा है। इसलिए दुनिया में गीता जैसी दूसरी किताब नहीं है, क्योंकि इतना सीधा डायलाग, ऐसा सीधा संवाद नहीं है।
—शेष दूसरे फ्लैप पर