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आभिजात्य का फूल
रहे, देखते रहे। तारा डूब गया, और उनको ज्ञान हो गया। कर सकेगा। अगर तू घोड़ों को ही समझना चाहता हो, तो घोड़ों में
बुद्ध को ज्ञान हुआ, योग भी छोड़ देने पर। क्योंकि योग भी एक | भी मैं हूं। अगर तू हाथियों को समझना चाहता हो, तो हाथियों में तनाव है। क्रिया भी एक तनाव है। कुछ करते रहना भी एक तनाव | भी मैं हूं। अगर वृक्षों को समझना चाहता हो, तो वृक्षों में भी मैं हूं। है; एक बेचैनी है। तो बुद्ध ने कहा है कि मैंने पाया तब, जब पाने | और कहां आसानी होगी तुझे जानने को, उस तरफ मैं इशारा किए की भी इच्छा मेरे भीतर नहीं रही। मिला तब, जब मिलने की भी | देता हूं। कोई भावना मेरे भीतर न थी।
___ अर्जुन ने कृष्ण से पूछा है कि मैं किस-किस भाव में आपको इसलिए बुद्ध तो एकदम से चौंक ही गए कि यह क्या हुआ! और | | खोजूं? कहां-कहां खोजूं? कैसे देखू ? तो वे कहते हैं, कहीं भी। यह कहां छिपा था इतने दिन तक, जो आज दिखाई पड़ गया! यह | | अगर घोड़े भी खड़े हों, तो वहां भी मैं मौजूद हूं। वहां भी तू देख छिपा था अपनी ही क्रिया की ओट में।
| लेना। तो मैं तुझे सूत्र दिए देता हूं। अगर हाथी खड़े हों, तो वहां भी यह छिपा था अपने ही कर्ता की ओट में। यह छिपा था, मैं कर | | मैं मौजूद हूं। तुझे सूत्र दिए देता हूं कि कहां तू मुझे खोज लेगा। रहा हूं कुछ, उस अहंकार की ही आड़ में। कोई करना न था। कोई | | अगर वृक्षों की पंक्ति हो, तो वहां भी मैं मौजूद हूं। तू जहां भी कर्ता नहीं। कोई कर्म नहीं। मन बिलकुल शून्य हो गया। उस शून्य खोजना चाहे, मैं मौजूद हूं। ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां मैं नहीं में खिल गया यह फूल।
हूं। लेकिन जहां भी तू मुझे खोजेगा, वहां आसानी होगी तुझे कि तू और जब बुद्ध से किसी ने पूछा कि आपको क्या मिल गया है | श्रेष्ठतम को देख। कि आप इतने आनंदित हैं? तो बुद्ध ने कहा, मिला मुझे कुछ भी | | ऐसा है कि एक बीज पड़ा हो यहां और एक फूल भी पड़ा हो नहीं। जो मिला ही हुआ था, उसका पहली दफा पता चला है। जो यहां; आपको बीज दिखाई नहीं पड़ेगा, फूल दिखाई पड़ेगा मिला ही हआ था. उसका पता चला है। मिला मझे कछ भी नहीं। हालांकि बीज भी कल फल बन सकता है। लेकिन बीज दिखाई नहीं
सांख्य का यही अर्थ है। सांख्य का यही अर्थ है कि जो मिलेगा, पड़ेगा, फूल दिखाई पड़ेगा। बीज में भी फूल है। और हाथियों में वह मिला ही हुआ है। जो जानेंगे कभी हम, वह मौजूद है अभी, भी कृष्ण वैसे ही हैं, जैसे ऐरावत में। और पौधों में भी वैसे ही हैं, इसी क्षण। उसे कहीं बाहर से पाना नहीं है। वह अशुद्ध भी नहीं है | | जैसे पीपल में। लेकिन पीपल में देखना आसान होगा, वहां कि उसे शुद्ध करना है। सिर्फ लौटकर, शांत होकर, मौन होकर, | | व्यक्तित्व खिला हुआ है। ऐरावत में देखना आसान होगा, वहां उसे देखना है।
| व्यक्तित्व खिला हुआ है। फूल जहां है, वहां पहचान आसान होगी; कृष्ण कहते हैं, सिद्धों में मैं कपिल मुनि हूं।
बीज में पहचान मुश्किल होगी। इसलिए कृष्ण गिनाते जा रहे हैं कि और हे अर्जुन, घोड़ों में उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, हाथियों में | कहां-कहां, कहां-कहां मैं खिल गया हूं। ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में मैं ही सम्राट हूं।
और ऐसा आप मत सोचना कि मनुष्यों में ही खिलावट होती है। अर्जुन जिस तरह भी समझ सके, कृष्ण हर एक कोटि में जो भी पशुओं में भी होती है, पौधों में भी होती है। और ऐसा भी आप मत श्रेष्ठतम संभावना है, उसकी तरफ इशारा कर रहे हैं। लेकिन एक | | सोचना कि मनुष्यों में ही श्रेष्ठ मनुष्य और निकृष्ट मनुष्य होते हैं। बात कीमती समझ लेने जैसी है कि घोड़ा हो, कि हाथी हो, कि वृक्ष | | पौधों में भी होते हैं, पशुओं में भी होते हैं। हो, कृष्ण के मन में कोई दुर्भाव नहीं है। कृष्ण को कहते हुए जरा । बुद्ध ने अपने पिछले जन्म की एक कथा कही है, और उसमें भी ऐसा संकोच नहीं मालूम पड़ता है इसमें कि मैं घोड़ों में फलां | | कहा है कि पिछले एक जन्म में मैं हाथी था। उनके एक शिष्य ने घोड़ा हूं, हाथियों में फलां हाथी हूं। जरा भी संकोच मालूम नहीं | | पूछा कि आप हाथी थे! फिर आप मनुष्य कैसे हुए? ऐसा कौन-सा पड़ता। अन्यथा इसे कहने की कोई जरूरत न थी।
कृत्य था, जिससे आप हाथी के जीवन से यात्रा करके मनुष्य हो कष्ण के लिए निकष्ट और श्रेष्ठ. छोटा और बडा. ऐसा कछ | सके? तो बद्ध ने जो कत्य कहा है. वह समझने जैसा है। उस कत्य भी नहीं है। कृष्ण कहते हैं, मैं सभी के भीतर हूं। लेकिन जिस कोटि | के कारण वह हाथी विशेष हो गया। में भी आभिजात्य प्रकट होता है, जिस कोटि में भी कोई व्यक्तित्व | बुद्ध ने कहा, जंगल में लगी थी आग। भयंकर थी आग। सारे पूरी खिलावट को उपलब्ध होता है, वहां तू मेरी प्रतीति आसानी से पशु-पक्षी भागते थे। मैं भी भाग रहा था। एक वृक्ष के नीचे मैं