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में अरबों-खरबों सूर्य हैं / सूर्य विराट की इकाई है / रोज सैकड़ों सूर्य-परिवार बनते और मिटते हैं / हमारा सूर्य बहुत छोटा-सा सूर्य है / बड रसेल की कहानी : एक धर्मगुरु का दुखस्वप्न / तुम किस पृथ्वी से, किस सौर्य परिवार से आते हो? / अपने को केंद्र मानना—आदमी की नासमझी / परमात्मा के प्रतीक-सूर्य, अग्नि, विद्युत / प्रतीक बहाने हैं-परमात्मा की ओर गति करवाने के / सूर्य, नदी, वृक्ष-परमात्मा के प्रतीक बन जाएं / अहंकार को झुकने के अवसर / साधना है-अपने से निरंतर पार होते जाना / मैं वेदों में सामवेद हूं / सामवेद है-संगीत, गीत, उत्सव का वेद / सामवेद तल्लीनता का शास्त्र है / कृष्ण के व्यक्तित्व का सामवेद से तालमेल / अर्जुन के लिए युद्ध तल्लीनता की साधना है / जापानी समुराई–तलवारबाजी, नृत्य और ध्यान में कुशल / योद्धा का शरीर लचीला और मन विचारशून्य होना जरूरी / युद्ध के द्वार से समाधि की झलक / मेरा स्वभाव, मेरी नियति क्या है-यह जानना अत्यंत जरूरी / मनुष्य की पीड़ा-नियति व ढांचे का अज्ञान / मन है छठवीं इंद्रिय-पांचों इंद्रियों का जोड़ / मन पांचों इंद्रियों का नियोजक है । मन और इंद्रियां बिना एक दूसरे के सहारे के जी नहीं सकते / इंद्रियों में मैं मन हूं / कृष्ण एक-एक सीढ़ी नीचे उतर कर अर्जुन को समझा रहे हैं / ऊपर उठो-धीरे-धीरे ही सही / अज्ञात के लिए ज्ञात को छोड़ते चलना / समझ के नए आयाम / ज्ञात की सुरक्षा–अज्ञात का भय / नई-नई भूलें करना / अंधेरे में भी देखने की क्षमता / प्रतीक खतरनाक हैं, अगर पकड़ कर रुक जाएं / आले पर रखी सींक की पूजा / परमात्मा के मंदिर की तीन सीढ़ियां-शरीर, मन, आत्मा / यूनान के सम्राट द्वारा इपिटैक्टस के हाथ-पैर तुड़वाना / चेतना है-सब कुछ जानने वाला / चेतना सदा विषयी है—विषय कभी नहीं / कृष्ण ने कहा : मैं चेतना हूं / परमात्मा है-सत्, चित्, आनंद / जागे-जाने जीना।
मृत्यु भी मैं हूं ... 127
कृष्ण का फिर-फिर प्रयास-अर्जुन के हृदय को छूने का / मृत्यु जीवन के विरोध में नहीं है / जन्म और मृत्यु-एक ही सिक्के के दो पहलू / अर्जुन युद्ध और मृत्यु से घिरा हुआ है / सभी युद्ध पारिवारिक हैं, क्योंकि सब जुड़ा हुआ है / आज मनुष्यता ठीक महाभारत युद्ध की स्थिति में है / भारत तब संस्कृति, विज्ञान और समृद्धि के शिखर पर था / विज्ञान और समृद्धि का अंतिम परिणाम दखद हआ / भारत के मन में इसकी छाप रह गई / संभावित विश्वयुद्ध में सब श्रेष्ठ नष्ट / कृष्ण ने कहा : मृत्यु भी मैं हूं / सृष्टि, विकास और प्रलय का वर्तुल / सब गति वर्तुलाकार है / संसार अर्थात चाक की तरह गोल घूमने वाला / मृत्यु अंत नहीं-विश्राम मात्र है / नींद एक छोटी मृत्यु है / गहरी नींद से गहरा जागरण / कुछ आदिवासी सपने नहीं देखते / श्वास है जीवन-प्रश्वास है मृत्यु / अर्जुन, तू मृत्यु के बाबत चिंतित मत हो / सब हो रहा है / हम बच्चे को पैदा नहीं करते, सिर्फ उसे मार्ग देते हैं । अर्जुन तू निमित्तमात्र है / अमरत्व के खोजियों ने ब्रह्मचर्य को बहुत महत्व दिया है / काम-वासना जन्म और मृत्यु दोनों से जुड़ी हुई है / पार्वती की जिद्द-शिव से ही शादी करने की / हीगल का द्वंद्वात्मक भौतिकवाद / द्वंद्व भीतर गहरे में जुड़े हुए हैं / द्वैत है ऊपर-भीतर है अद्वैत / नदी के किनारे भीतर से जुड़े हुए हैं / चिंता छूटी कि अहंकार छूटा / अहंकार बचा कर चिंता से छुटकारा संभव नहीं / अर्जुन की तकलीफ है उसका कर्ता भाव / लोग चिंता तो छोड़ना चाहते हैं—पर अहंकार नहीं / अहंकार एक घाव है, जिसमें प्रतिपल चोट लगती है / कृष्ण कहते हैं: यक्ष और राक्षसों में मैं कुबेर हूं / कुबेर अर्थात सबसे ज्यादा धनी / गरीबी के कारण धन में आकर्षण है / राक्षस-जिसके जीवन का केंद्र लोभ है / लोभ से मुक्ति—प्रज्ञा से या अनंत धन मिलने पर / धर्म आत्यंतिक विलास है / मुल्ला कथाः मिर्ची नहीं-पैसे खा रहा हूँ / कृष्ण ने कहाः ध्वनियों में मैं ओंकार हूं / ॐ से अउ म-अ उ म से संसार का विस्तार / भारतीय प्रज्ञा के अनुसार अस्तित्व का मूल आधार ध्वनि है—विद्युत नहीं / विद्युत भी ध्वनि का एक प्रकार है / शास्त्रीय संगीतज्ञों द्वारा संगीत से दीए जलाने की कहानियां / ध्वनि और विद्युत-एक ही ऊर्जा / विज्ञान का महासूत्र-ई इज इक्वल टु एम सी स्क्वेयर / पूरब का महासूत्र-ॐ/ ॐ में छिपा है सारे शास्त्रों का सार / ॐ द्वार है-परमात्मा में प्रवेश का / कृष्ण ने कहा : मैं यज्ञों में जप-यज्ञ हूं / मनुष्य अस्तित्व से टूट गया है / यज्ञ है—व्यक्ति और जगत के बीच सेतु-निर्माण की विधि / ऊपर से देखने पर यज्ञ एक व्यर्थ की क्रियाकांड / फ्रायड का संस्मरण : एक ग्रामीण मित्र की कोशिश विद्युत बल्ब को फूंक कर बुझाने की / यज्ञों का विज्ञान विस्मृत हो चुका है / जप-यज्ञ अर्थात ध्वनि की विशेष व्यवस्था से अस्तित्व के परम नाद से जुड़ना / ध्वनि कंपनों से शरीर का रो-रोआं प्रभावित / जप-यज्ञ सूक्ष्मतम यज्ञ है / हमारा व्यक्तित्व शब्दों का जोड़ मात्र है / जप से ध्वनि तरंगों का एक सूक्ष्म शरीर भीतर निर्मित होना / धीरे-धीरे मन के कंपनों का खो जाना।