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________________ 8 सगुण प्रतीक-सृजनात्मकता, प्रकाश, संगीत और बोध के 8 आंख यह जोड़ नहीं कर सकती। आंख सिर्फ देख सकती है। आंख सकतीं। अगर आपका मन बेहोश हो जाए, तो सब इंद्रियां काम बंद को यह पता नहीं चलेगा कि जिसको मैं देख रहा हूं, वही बोल भी | | कर देती हैं। जब आप शराब पीते हैं, तो आपकी इंद्रियों पर रहा है। आंख को यह पता नहीं चलेगा। अलग-अलग शराब का असर नहीं पड़ता। असर तो पड़ता है मन कान को यह पता नहीं चलेगा कि जिसको मैं सुन रहा हूं, आंख | | पर। लेकिन चूंकि केंद्रीय बिंदु बेहोश हो जाता है, सभी इंद्रियां उसी को देख भी रही है। आंख और कान के बीच कोई सेतु नहीं | | बेकार हो जाती हैं। इंद्रियां फिर भी काम करती रहती हैं। कान फिर है। आंख और कान के बीच कोई लेन-देन नहीं है. कोई। | भी सुनता है, लेकिन मन नहीं पकड़ पाता। आंख फिर भी देखती कम्युनिकेशन नहीं है। कान देख नहीं सकता, आंख सुन नहीं | | है, लेकिन मन नहीं पकड़ पाता। सकती। तो कैसे कान तय करता है कि जिसको आंख ने देखा है, इसलिए शराबी आदमी आप देखते हैं सड़क पर चलता हुआ, उसी को मैंने सुना है। इन दोनों के बीच कोई बोलचाल नहीं है। | एक पैर कहीं पड़ता है, दूसरा पैर कहीं पड़ता है। पैर अभी भी चलते पांचों इंद्रियां अलग-अलग हैं। और अगर पांचों इंद्रियां | | हैं, लेकिन अब दोनों पैरों के बीच में भी जोड़ रखने वाला तत्व बिलकुल अलग-अलग हों, तो आप इसी वक्त टूटकर गिर बेहोश होने से कोई व्यवस्था नहीं रह जाती; सब अस्तव्यस्त हो जाएंगे, आपके भीतर ज्ञान की घटना ही नहीं घट पाएगी। पैर कहीं जाता है। कुछ देखते हैं, कुछ सुनाई पड़ता है। कुछ बोलते हैं। जो जाएंगे, आंख कुछ देखेगी, कान कुछ सुनेगा। इसको जोड़ेगा नहीं बोलना चाहते थे, वह निकल जाता है। जिस तरफ नहीं जाना कौन? इसको इकट्ठा कौन करेगा? इसको एक फोकस कौन देगा? | | था, वहां चले जाते हैं। जो नहीं करना था, वह कर लेते हैं। मन इंद्रियों का जोड़ है। सारी इंद्रियां अपने अनुभव को मन में मन समस्त इंद्रियों का सार है, सूक्ष्मतम, इसेंस। कृष्ण उसे भी उंडेल देती हैं। मन उन्हें इकट्ठा कर लेता है. संयक्त कर लेता है। | इंद्रिय कहते हैं। उनकी व्याख्या करता है, उनको नियोजित करता है। लेकिन मन भी | । अर्जुन को क्यों इंद्रियों से समझाने की जरूरत पड़ी? कहना तो एक इंद्रिय है, इसीलिए। पांचों इंद्रियों की केंद्रीय इंद्रिय है मन। | | चाहिए कृष्ण को उन्होंने कहा भी–कि मैं आत्मा हूं, कहा कि समझें कि पांच रास्ते हैं और मन उनका बीच का जोड़ है, जहां | | मैं हृदय हूं, और अब इस सूत्र में वे कहते हैं कि समस्त इंद्रियों में पांचों रास्ते मिल जाते हैं। मन आंख से देखता है, कान से सुनता | मैं मन हूं! यह बहुत नीचे उतरकर बात करनी पड़ रही है। पहला है, हाथ से छूता है, ऐसा समझें। या ऐसा समझें कि हाथ छूते हैं, | | वक्तव्य है कि मैं हृदयों में हृदय, सबकी आत्माओं की आत्मा! कान सुनते हैं, आंख देखती है और ये तीनों संवेदनाएं मन को | | और अब कृष्ण को कहना पड़ रहा है कि मैं इंद्रियों में मन। उपलब्ध हो जाती हैं। मन इनको जोड लेता है. इकट्ठा कर लेता है। अर्जन शायद आत्मा की बात नहीं समझ पाया। उसे शायद पता लेकिन मन इंद्रियों से जुड़ा हो, तो इंद्रियों से ज्यादा नहीं हो सकता। ही नहीं है कि आत्मा क्या है? शब्द सुन लिया, उसकी समझ में और मन अगर इंद्रियों का ही जोड़ करने वाला हो, तो इंद्रियों से कुछ आया नहीं होगा। कृष्ण ने देखा होगा, उसकी आंख में कोई ऊपर नहीं हो सकता। मन इंद्रियों से पार नहीं हो सकता। मन भी | | भाव नहीं उठा। शब्द सुन लिया उसने, लेकिन शब्द से कोई इंद्रियों का ही हिस्सा है। प्रतिध्वनि पैदा नहीं हुई। भीतर कोई संगीत नहीं छिड़ा। भीतर कोई इसलिए अगर आपकी आंख चली जाए, तो आपका मन कमजोर | | तार पर चोट नहीं पड़ी। भीतर कुछ हुआ ही नहीं; सन्नाटा रहा। हो जाएगा; आपके मन की संपत्ति कम हो जाएगी। अंधे आदमी के | आत्मा, परमात्मा, हम शब्द तो सुन लेते हैं, कान हमारे पास हैं। पास जो मन होता है, उसकी संपदा कम होगी। क्योंकि आंख का शब्द भीतर गूंजते हैं और निकल जाते हैं। भीतर कुछ उनसे होता कोई अनुभव उसके पास नहीं होगा। बहरे आदमी के पास जो मन नहीं। जब मैं कहूं कि आपके भीतर आत्मा है; कहूं, आपके भीतर होगा, उसका मन और भी संकीर्ण और दरिद्र और गरीब हो जाएगा। | परमात्मा है; तो आपके भीतर कुछ भी होता नहीं। और आपसे मैं अगर हाथ-पैर को छने की क्षमता भी चली जाए, लकवा लग जाए, कहं कि खयाल किया आपने, आपके खीसे में ए का हीरा तो मन और दरिद्र हो जाएगा। अगर आपकी पांचों इंद्रियां अलग कर | | है, तब तत्क्षण कुछ होता है। आपका हाथ फौरन खीसे में जाएगा। दी जाएं, आपका मन तत्काल मुर्दा हो जाएगा, मर जाएगा। और हीरा समझ में आता है, एकदम बात साकार हो जाती है कि मन इंद्रियों के बिना नहीं जी सकता। इंद्रियां बिना मन के नहीं जी क्या है। कोई रूप में अंतर नहीं रहता। कोई भूल-चूक नहीं होती।
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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