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* क्षणभंगुरता का बोध *
हवा ही नाव को खींचकर ले जाती है।
कि आप सोच-विचार में पड़ जाते हैं। वह कोई बहुत गहरा परिणाम ध्यान रहे, संसार का जो जगत है, वहां जिस नाव से हमें चलना नहीं है। या आपके मन में और अनेक प्रश्न उठ आते हैं और उनकी पड़ता है, वहां खेना होता है; वहां प्रत्येक आदमी को मेहनत उठानी चर्चा में आप पड़ जाते हैं। वह भी कोई बहुत गहरा परिणाम नहीं पड़ती है, पतवार चलानी पड़ती है। तब भी चलता नहीं कुछ, कहीं | | है। ऐसे तो अनेक जीवन आदमी सोचकर, विचारकर, प्रश्न पहुंचते नहीं। पतवार चलती है बहुत, परेशान बहुत होते हैं, | | उठाकर, जवाब खोजकर व्यय कर सकता है। किए ही हैं हमने। दौड़-धूप, पूरी जिंदगी डूब जाती है, किनारा-विनारा कभी मिलता | | कुछ चलें। एक कदम भी चलें, तो हजार कदमों की चर्चा करने नहीं। वही सागर की लहरें ही कब्र सिद्ध होती हैं। लेकिन मेहनत | से बेहतर है। परिणाम तो आते हैं, लेकिन हितकर नहीं मालूम होते। करनी पड़ती है। यहां इंचभर अगर आप रुके, तो डूब जाएंगे। ___ कल मैंने जिन मित्र के लिए कहा था कि वे मुझे मूर्ख सिद्ध करने कारण, पूरे वक्त लगे रहना पड़ता है बचने में। यहां क्षणभंगुर है के लिए यहां आना चाहते हैं, तो मैंने स्वीकार कर लिया कि मैं मर्ख सब। यहां पूरे वक्त लगे रहेंगे, तब भी डूबेंगे! लेकिन जितनी देर | | हं, अब कोई सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। तो आज वे मेरे ऊपर बचे रहे, उतनी देर बचे रहेंगे।
हमला ही कर दिए। उन्होंने कहा, जब विवाद से सिद्ध नहीं होना एक दूसरा लोक है, जिसकी मैं बात कर रहा हूं, जिसकी कृष्ण | है, तो अब हमले से सिद्ध होना है! बात कर रहे हैं। उस लोक में आपको पतवार नहीं चलानी पड़ती। ___परिणाम उन पर भी आया! जो मैंने कहा, उसका परिणाम वहां पतवार लेकर पहुंच गए, तो आप मुश्किल में पड़ेंगे। वहां तो | आया। पर परिणाम यह आया कि अब विवाद की जगह हमला उस परमात्मा की हवाएं ही आपकी नाव को ले जाने लगती हैं। करना है। आपको सिर्फ छोड़ देना पड़ता है।
हमारा मन कैसे परिणाम लेता है! मैंने अगर स्वीकार ही कर लेकिन जिसको पतवार चलाने की आदत है और कभी उस पाल लिया, तो बात समाप्त हो जानी चाहिए। लेकिन बात समाप्त नहीं वाली नाव में नहीं बैठा है, वह पाल वाली नाव में बैठकर बहुत हुई है। उनको और भी ज्यादा चेष्टा करनी पड़ेगी मुझे मूर्ख सिद्ध घबड़ाएगा कि पता नहीं कहां जाऊंगा? क्या होगा, क्या नहीं? उतर | करने की। वह चेष्टा यह है कि मुझ पर हमला किए! उनको जाऊं? क्या करूं? या पतवार भी चलाऊं?
खयाल भी नहीं हो सकता कि वे क्या कर रहे हैं! खयाल ही होता, समर्पण का अर्थ है, तुम अपनी पतवार मत चलाना। वह तुम्हें | तो क्यों करेंगे! जहां ले जाए, तुम वहीं चले जाना। छोड़ देना अपने को।
जब आदमी मन के एक ढांचे में फंस जाता है, तो उसी में आगे तो कृष्ण कहते हैं, ऐसा जो छोड़ देता है सब, वह मुझे उपलब्ध बढ़ा चला जाता है। हर मन के ढांचे में आगे बढ़ने की तरकीब होती हो जाता है। .
है, पीछे लौटने की तरकीब नहीं होती। पहले दिन वे चिल्लाकर इन दिनों में जो कछ आपसे कहा है. मेरा कोई प्रयोजन नहीं है व्यवहार किए। दूसरे दिन गाली देकर व्यवहार किए। आज हमला कि कोई सिद्धांत आपको साफ हो जाएं। सिद्धांतों के साफ होने से | करके मारकर व्यवहार किए। वे एक ढांचे में फंस गए। तो अब वे कुछ होता नहीं। कोई मार्ग साफ हो जाए, तो कुछ होता है। मार्ग ढांचे में बढ़ते चले जाएंगे। अब उनको कोई उपाय नहीं सूझेगा कि भी साफ हो जाए, तो भी बहुत कुछ नहीं होता, जब तक कि चलने कैसे पीछे लौट जाएं! की उमंग और लहर न आ जाए। चलने की उमंग और लहर भी आ उनका तो मैंने उदाहरण दिया। हम सब भी मन के ढांचों में फंसे जाए, तो भी बहुत कुछ नहीं होता, जब तक कि उस अज्ञात पर हुए लोग हैं। और हमारे मन का ढांचा हमें आगे ही धकाए चला भरोसा न आ जाए। तो फिर वह चलाता है और खे लेता है। जाता है। तो जो हमने कल किया है, वही हमसे और आगे करवाए
इतने दिन इन बातों को इतनी शांति से सुना है, तो यह आशा की चला जाता है। जा सकती है कि कोई बात इनमें से आपके जीवन में बीज बन जाए, ___ धार्मिक आदमी वही हो सकता है, जो मन के इस ढांचे को किसी कोई परिणाम ले आए। परिणाम तो कुछ आते हैं, लेकिन वे | जगह कहकर बाहर निकल सके कि बहुत चला तुम्हारे साथ, अब परिणाम अक्सर वैसे नहीं होते, जैसे आने चाहिए। | मैं लौटता हूं। अब बंद! अब तुम्हारा तर्क नहीं सुनूंगा; तुम्हारी
अनुभव करता हूं मैं, सुनते हैं आप मुझे, परिणाम एक आता है | व्यवस्था नहीं सुनूंगा; तुम्हारा हिसाब नहीं मानूंगा। बहुत माना।
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