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* गीता दर्शन भाग-4 *
एकपटाराज
पार करके पूरी पृथ्वी को उसने घेर लिया है। और दूर चांद-तारों | | इस आदमी से जो ऊर्जा निकल रही है, वह लोगों को धकाती है तक फैलता जा रहा है। सारा आकाश मेरे प्रेम से भर गया है। और हटाती है।
इसको अगर एक घंटा रोज आप फिक्र करते रहें तो धीरे-धीरे । अब तो इसे मापा भी जा सकता है। लेकिन धर्म सदा से जानता धीरे-धीरे, प्रेम दूसरे से संबंध है, यह आपकी धारणा टूट जाएगी। रहा है कि प्रेम संबंध नहीं है, अंतर-ऊर्जा है, इनर एनर्जी है।
और एक घड़ी आपके भीतर आ जाएगी, जब आपको लगेगा, प्रेम | | जब मैं कहता हूं, प्रेम शक्ति है, एनर्जी है, ऊर्जा है, तब उसका मेरी अंतर-दशा है। तब आप प्रेम करेंगे नहीं, प्रेम हो जाएंगे। तब | अर्थ यह हुआ कि दूसरे से उसका संबंध करने से वह ऊर्जा प्रेम करने के लिए दूसरे की अपेक्षा नहीं होगी। दूसरा हो या न हो, | वासनाग्रस्त हो जाती है। दूसरे से संबंधित बनाने से, दूसरे से बांध आप प्रेम में रहेंगे ही। तब आप चलेंगे, तो आपका प्रेम आपके लेने से अशुद्ध हो जाती है। दूसरे से बांध लेने से विकृत हो जाती साथ चलेगा; उठेंगे, तो आपका प्रेम आपके साथ उठेगा; बैठेंगे, है, कुरूप हो जाती है। तो आपका प्रेम आपके साथ आएगा।
निष्काम प्रेम का अर्थ है, प्रेम की ऊर्जा हो और किसी से बंधी कभी-कभी किसी व्यक्ति के पास जाकर आपको अचानक न हो, किसी कामना के लिए न हो। लगता है कि इस व्यक्ति को न आप जानते, न आप पहचानते; न | तो कृष्ण कहते हैं, बुद्धि हो शुद्ध, विचार का कंपन न हो; हृदय इसका कुछ बुरा जाना है, न इसके किसी दुराचरण की खबर है। | हो प्रेम से भरा, वासना की जरा-सी भी झलक न हो, तो भक्त का लेकिन पास जाकर अचानक आपको लगता है रिपल्शन, विकर्षण, | जन्म होता है। हट जाओ, दूर हट जाओ। किसी व्यक्ति के पास जाकर अचानक, और ऐसा भक्त ही अपना सब कुछ परमात्मा के चरणों में छोड़ अजनबी के पास, लगता है कि गले मिल जाओ। न उसे जाना, न | | पाता है, अपना कर्तापन छोड़ पाता है। उसे पहचाना; न कोई संबंध है! आकर्षण।
अब इस सूत्र को हम पूरा देख लें। जिस व्यक्ति के पास आपको जाकर लगता है कि कोई हे अर्जन। मेरे पजन में पत्र. पष्प, फल, जल इत्यादि जो कछ आकर्षण, कोई मैग्नेटिज्म खींच रहा है, समझना कि उस व्यक्ति के भी कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि, पास प्रेम की एक क्षमता, एक मात्रा है। छोटी ही है, लेकिन एक | निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र, पुष्प, ' मात्रा है। जिस व्यक्ति के पास आपको विकर्षण मालूम होता है, | फल आदि मैं ही ग्रहण करता हूं। हट जाओ, कोई शक्ति जैसे दूर हटाती है, बीच में कोई शक्ति खड़ी ऊपर से देखने में तो बहुत सीधा लगेगा। पत्र, पुष्प, फल, हो जाती है और पास नहीं आने देती, तो समझना कि उस व्यक्ति | जल-हम सब जानते हैं, हम सबने चढ़ाया है। जल चढ़ाया है, के पास प्रेम का बिलकुल अभाव है; जो खींच सकता है, उसका | | फूल चढ़ाया है, पत्ते चढ़ाए हैं, हम सबको पता है। लेकिन कृष्ण बिलकुल अभाव है। तो आप धकाए जा रहे हैं। और यह भी हो | | जैसे लोग इस तरह की क्षुद्र बातें करते नहीं हैं। क्या मतलब है पत्र, सकता है अभ्यास से कि प्रेम का अभाव तो हो ही, साथ में घृणा पुष्प, फल चढ़ाने का? का आविर्भाव हो गया हो; घृणा एक स्थिति बन गई हो, एक दशा एक मतलब आपको पता है, वह मतलब नहीं है। जो मतलब बन गई हो।
आपको पता नहीं है, वही मतलब है। वह मैं आपसे कहता हूं। अभी तो वैज्ञानिकों ने चित्त की इस दशा को नापने के लिए यंत्र पत्र, पुष्प, फल व्यक्तित्व के खिलावट की तीन अवस्थाएं हैं। भी निर्मित किए हैं। यह जानकर आप चकित होंगे। और अब तो | कृष्ण कहते हैं कि तू जैसा भी है, अगर अभी सिर्फ पत्ता ही है, अभी ऐसे यंत्र हैं, जिनके सामने खड़े होकर हम कह सकते हैं कि यह | फूल तक नहीं पहुंचा, तो भी कोई फिक्र नहीं, पत्ते को ही चढ़ा दे। व्यक्ति खींचता है लोगों को कि हटाता है। क्योंकि वह जो भीतर अगर त पत्ते से आगे निकल गया है और फल बन गया है. तो फल प्रेम की ऊर्जा है, मैग्नेटिक है। अगर प्रेम से भरा हुआ व्यक्ति उस | की फिक्र मत कर कि जब फल बनूंगा, तब परमात्मा को चढूंगा। यंत्र के सामने खड़ा होगा, तो यंत्र का कांटा खबर देता है कि यह फूल ही चढ़ा दे। अगर तू फल हो चुका है, तो फल ही चढ़ा दे। आदमी लोगों को अपनी तरफ खींच लेता है। अगर यह आदमी लेकिन तब शायद उन्हें खयाल आया होगा कि ऐसे लोग भी तो घृणा से भरा हो, तो कांटा उलटा घूमता है और खबर देता है कि हैं, जो अभी पत्ते भी नहीं हैं, अभी पानी ही हैं। तो उन्होंने कहा,
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