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________________ * गीता दर्शन भाग-4* तो है, नहीं है तो नहीं है। और कोई उपाय नहीं है। प्रेम है तो है, लेकिन मीरा का नृत्य बाहर भी फूट रहा है। बाहर भी बह रही है और नहीं है तो नहीं है, उपाय नहीं है। इसलिए प्रेमी एकदम यह धारा। जो भीतर हुआ है, वह बाहर भी तोड़कर आ रहा है। असहाय मालूम पड़ता है, किसी विराट शक्ति के हाथों में पड़ उसकी तरंगें दूर तक जा रही हैं। निश्चित ही, कुछ और भी बात हुई गया; अपना कोई वश नहीं चलता मालूम पड़ता। खिंचा चला जा | | है। वह, दूसरी शर्त पूरी हो, तब होती है। रहा है। भागा चला जा रहा है। खुद का नियंत्रण नहीं मालूम पड़ता। | हम सोच भी नहीं सकते बुद्ध को नाचता हुआ। जब बुद्धि पूरी इसलिए भक्त होना दुरूह बात है। पर अगर बुद्धि शुद्ध हो और | तरह शुद्ध हो जाती है, तो जो अनुभूति होती है, वह आंतरिक है; प्रेम निष्काम हो, तो वह महान घटना भी घटती है और भक्ति का | अत्यंत आंतरिक है; उसको बाहर तक ले जाने का द्वार नहीं है। और फूल भी खिलता है। खिलता है; कभी किसी चैतन्य में, कभी किसी | | जब हृदय भी कामना से मुक्त हो जाता है, तो वह द्वार भी खुल मीरा में खिलता है। लेकिन बहुत रेयर फ्लावरिंग है, बहुत कठिनाई | जाता है, जो बाहर ले जाता है। की बात है। ___ इसे आप ऐसा समझें कि जब तक आपके पास हृदय नहीं होता इसलिए मैं कहता हूं कि बुद्ध होना या महावीर होना कितना ही है, तब तक आप दूसरे से संबंधित हो ही नहीं सकते। सब संबंध कठिन हो, फिर भी बहुत कठिन नहीं है। एक ही शर्त है कि बुद्धि हार्दिक हैं। जितना बड़ा हृदय होता है, उतना संबंधों का विस्तार पूरी शुद्ध हो जाए। लेकिन मीरा का होना थोड़ा अनूठा है, चैतन्य | | होता है। असल में हृदय के द्वारा ही हम दूसरे को संवादित कर पाते का होना थोड़ा अनूठा है। इस अनूठे में एक तत्व और जुड़ता है, | हैं। दूसरे से जो हम जुड़ते हैं, कम्युनिकेट होते हैं, वह हृदय के द्वारा एक दिशा और जुड़ती है, कि हृदय भी निष्काम हो। होते हैं। इसलिए बुद्ध शांत होंगे, शांति उनमें गहरी होगी, निर्विकार होंगे, | - मीरा जब नाचती है, तो जो बुद्ध नहीं कह पाते, वह उसके बूंघर शुद्ध होंगे, लेकिन एक अर्थ में निगेटिव, नकारात्मक मालूम पड़ेंगे। | की झनकार से कहा जाता है। और जब चैतन्य कीर्तन में डूब जाते यह तो हम कह सकते हैं, उनकी अशांति मिट गई; यह भी हम कह | हैं, तो जो बुद्ध नहीं बता पाते, चेष्टा करते हैं, समझाते हैं पूरे जीवन, सकते हैं, उनका दुख मिट गया; यह भी हम कह सकते हैं कि उनकी | फिर भी पाते हैं कि असमर्थता है कोई, चैतन्य असमर्थ नहीं मालूम सब पीड़ा, संताप खो गया; यह भी कह सकते हैं, चिंता अब न | | पड़ते। आंसू से भी कह देते हैं। नाचकर भी कह देते हैं। दौड़कर बची-लेकिन यह सब नकार है। क्या-क्या नहीं रहा, वह हम कह | | भी कह देते हैं। अभिव्यक्ति चैतन्य को सरल मालूम पड़ती है। सकते हैं; लेकिन यह बताना मुश्किल है कि क्या हुआ! ...। | लेकिन भक्ति के साथ एक वहम जुड़ गया, इसलिए कठिनाई मीरा में हमें सिर्फ यही नहीं दिखाई पड़ता है कि उसकी अशांति हो गई। हमने भक्ति को बहुत सस्ती समझा। और समझा कि ज्ञान मिट गई, चिंता मिट गई, संताप मिट गया, दुख मिट गया; साथ तो सबके वश की बात नहीं है, भक्ति सबके वश की बात है। इससे में उसमें नाचता हुआ आनंद भी दिखाई पड़ता है, विधायक, | | भ्रांति हो गई। मैं आपसे कहता हूं, ज्ञान थोड़े ज्यादा लोगों के वश पाजिटिव। क्या हुआ है, वह भी प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है। क्या खो| की बात है, भक्ति थोड़े कम लोगों के वश की बात है। क्योंकि गया है, वह तो दिखाई ही पड़ता है; लेकिन क्या हुआ है, क्या मिल अच्छी बुद्धि पा लेना बहुत कठिन नहीं है; अच्छा हृदय पाना बहुत गया है, उसकी भी प्रत्यक्ष झलक मालूम होती है। | कठिन है। और बुद्धि की शिक्षा के तो बहुत उपाय हैं जगत में; हृदय बुद्ध को जो भी हुआ है, वह भीतर है; वह बाहर नहीं आ पाता। की शिक्षा का अब तक कोई उपाय नहीं है। क्योंकि हृदय के बिना कोई भी चीज बाहर नहीं आ सकती। हृदय || बुद्धि के लिए विश्वविद्यालय हैं, शिक्षक हैं, शिक्षा-पद्धतियां अभिव्यक्ति का द्वार है। बुद्ध को जो हुआ है, वह भीतर हुआ है; हैं। हृदय के लिए कोई विश्वविद्यालय नहीं है, कोई शिक्षक नहीं जो नहीं हो गया है, वह बाहर गिरा है। हमने देखा है उनको पहले | है, कोई शिक्षा-पद्धति नहीं है। हृदय अब तक अछूता पड़ा है। अशांत, अब अशांति गिर गई है। हमने देखा है पहले उन्हें चिंतित, | | हृदय अब तक एक अंधेरा महाद्वीप है, जिसमें कभी-कभी कोई अब चिंता नहीं है। हमने देखा है उन्हें पहले, उनके माथे पर उतरता है। सलवटें-दुख की, पीड़ा की, संताप की। वे खो गई हैं। लेकिन । लेकिन अगर यह दूसरी शर्त पूरी हो सके कि प्रेम हो, और यह सब निषेध है। उनके भीतर क्या हुआ है, यह वे ही जानें। कामनारहित हो। बड़ी कठिन शर्त है। बड़ी कठिन शर्त है। कठिन | 324|
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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