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* वासना और उपासना
लूंगा। इधर तो हमने छोड़ी अपनी लकड़ी, कि मरे! सिर के बल गिरेंगे, सब टूट-फूट जाएगा। कोई सम्हालने वाला नहीं मिलेगा। अपना पकड़े रहो जोर से!
प्रार्थना कभी-कभी करते हैं कि हे परमात्मा! लकड़ी को जरा बड़ी कर दे, ताकि ठीक से पकड़े रहें; कि मेरे हाथों को जरा मजबूत कर, कि लकड़ी छूट न जाए! ये हमारी प्रार्थनाएं हैं।
हमारी प्रार्थनाएं हमारे बंधन को और मजबत करने वाली हैं। हमारी प्रार्थनाएं हमारे संसार को और गहरा करने वाली हैं।
आज इतना ही। लेकिन उठे न। पांच मिनट संन्यासी कीर्तन करते हैं, उसमें सम्मिलित होकर जाएं। बीच में कोई उठे न! एक भी उठता है, तो बाकी लोगों को अड़चन होती है।
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