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अनुक्रम गीता-दर्शन अध्याय 8
स्वभाव अध्यात्म है ...1
प्रश्नों का कोई अंत नहीं है / प्रश्नों से भरा मन-सुनने में असमर्थ / निष्प्रश्न चित्त में उत्तर का आगमन / मन ही बाधा है / समझने की बहुत कोशिश भी तनाव है / ब्रह्म क्या है? -परम प्रश्न, अंतिम प्रश्न / अर्जुन में प्रश्नों की भीड़। बुद्धि की खुजलाहट वाले प्रश्नों का कोई मूल्य नहीं / अर्जुन पूछता ही चला जा रहा है-पिछले सात अध्यायों से / कृष्ण जैसे लोग थकते नहीं / अर्जुन को जवाब नहीं-रूपांतरण चाहिए / कृष्ण और अर्जुन के बीच बड़ा अंतराल है / अर्जुन के सवाल-उत्तर से बचने की तरकीब / बुद्ध का इनकार-बहुत से प्रश्नों के लिए / बुद्ध कहतेः अनुभव में उतरना न हो, तो मत पूछो / साक्रेटीज के प्रश्नों से परेशान एथेंस / ब्रह्म-जिसका कभी नाश न हो / इंद्रियों से ब्रह्म नहीं जाना जा सकता / विज्ञान कहता है : कुछ भी विनष्ट नहीं होता / रूप में छिपा हुआ अरूप / विज्ञान को अभी अरूप का पता नहीं चला है / अरूप को खोजना-पहले स्वयं के भीतर / विचार भी रूप है / दो विचारों के बीच में अंतराल-अरूप का / भावों के आकार / दीर्घकालीन भावों की स्थायी रेखाएं चेहरे पर / मूसा के चेहरे पर क्रोध व हिंसा की शेष रेखाएं / रूप का विनाश होगा–विनाश से पीड़ा होगी / बचपन, जवानी, बुढ़ापा / पकड़ने के कारण दुख / स्वभाव अध्यात्म है । स्वयं के भीतर शाश्वत की पहचान करना / मैं कौन हूं / भाषा आरोपित है / मौन स्वभाव है / मौन की साधना / वाणीरहित मानसिक बकवास / भाषा तोड़ती हैं; मौन जोड़ता है / मौन में प्रकृति से जुड़ जाना / महावीर की अहिंसा-महा मौन से जन्मी / आंख बंद करके भीतर खोजें-शरीर के अतिरिक्त मेरी आकृति क्या है? / निराकार में स्वभाव है / हथेली से. माथे के बीच को रगड़ने से प्रसन्नता सघन होती और उदासी बिखर जाती / माथे को रगड़कर सिर छोटा-बड़ा होने का सुझाव / फिर शरीर के छोटे-बड़े होने का सुझाव / तीसरे नेत्र पर ऊर्जा—फिर विचार घटना बन जाती है / तीसरे नेत्र की ऊर्जा-परमाणु ऊर्जा की तरह शक्तिशाली / पूरब में इस ऊर्जा के रहस्य को छिपा दिया गया-खतरों से बचने के लिए / यह छोटा-बड़ा होता सूक्ष्म शरीर मैं नहीं हूं / मैं शरीर हूं यह भाव एक आत्म-सम्मोहन मात्र है / शरीर और मन के पार-अनबनाया स्वभाव / अध्यात्म है-ब्रह्म को जानने का विज्ञान / करना, होना नहीं है / भोग में स्व से चूकना पड़ता है / भोगी ने विराट का त्याग किया है / धन-पद-यश के लिए आत्मा को बेचना / कर्म हो, लेकिन आत्मा में प्रतिष्ठा बनी रहे / करते हुए अकर्ता बने रहना / सांझ गीता-प्रवचन; सुबह ध्यान का प्रयोग।
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मृत्यु-क्षण में हार्दिक प्रभु-स्मरण ... 17
ब्रह्म अर्थात जो अजन्मा और शाश्वत है / जो भी परिवर्तनशील है, वह पदार्थ-अधिभूत है / इंद्रियों से केवल परिवर्तनशील का बोध संभव / मछली को सागर का पता न चलना / इंद्रियों का काम-बदलते हुए संसार के योग्य हमें बनाना / अविनाशी होने के लिए जरूरी-न-होने जैसे होना / आकार विनष्ट होगा ही / निराकार विनष्ट नहीं हो सकता /