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गए, जो योग बताए गए, उन्हें ही कृष्ण, बुद्ध, जीसस, नानक, मुहम्मद, वेदव्यास या ओशो जैसे महापुरुष विभिन्न संकेतों में बार-बार मनुष्य को बताते रहे। अवतारों की घटनाओं, कहानियों के द्वारा ही सत्य को सरलतम भाषा में, रोचक शैली में ओशो परिभाषित करते हैं। निर्लिप्त भाव से अमृत-वचनों में गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित करते हैं।
ऋषियों ने श्रति-प्रथा से अथवा लिपिबद्ध करके जन-जन तक संदेश पहंचाने का काम किया। ओशो ने भी यही किया। परंत ओशो यहां थोड़े अलग प्रतीत होते हैं, क्योंकि वे समालोचना भी करते चलते हैं। ओशो एक अवतार ही प्रतीत होते हैं, क्योंकि उनकी वाणी में, भाषा में जो चुंबकीयता है, जो माधुर्य है, जो गहन प्रतीति है, जो वैचारिक स्पष्टता-सहजता का सम्मोहन है, वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। व्याख्या करते समय, ओशो समझाने की प्रक्रिया में जीवन से ही उदाहरण उठा कर बात कहते हैं। वे ऐसा कोई उदारहण नहीं रखते जिसकी प्रासंगिकता जीवन में न हो। हम अपने आग्रहों से कट कर यदि विचार करें तो ओशो एक अवतार ही हैं।
'श्रीमद्भगवद्गीता' जीवन की व्यावहारिकता, दर्शन और अध्यात्म का एक अनूठा ग्रंथ है। अनेक भाषाओं में इस एक ग्रंथ के अनुवाद, टीकाएं व भाष्य हो चुके हैं, फिर भी इसकी ऊर्जा का स्रोत स्खलित नहीं हुआ। देश, काल और समाज की स्थिति भगवान श्रीकृष्ण के सामने लगता है आज के जैसी ही रही होगी। तभी गीता का उपदेश देने की आवश्यकता पड़ी होगी। इस परिप्रेक्ष्य में आज इस ग्रंथ के षष्ठ और सप्तम अध्यायों की प्रासंगिकता का अनुभव किया जा सकता है। मनुष्य अपने केंद्र से ही विचलित है, भटक गया है।
सच पूछा जाए तो ओशो के प्रवचनों के किसी संकलन को भूमिका की दरकार नहीं। क्योंकि भूमिका में, पुस्तक में व्यवहृत विषय पर प्रकाश डाला जाता है और वह चर्चा की जाती है जो कृतिकार का गूढ़ भावार्थ होता है। ओशो की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वे जिस विषय को उठाते हैं उसे उसके संपूर्ण आयामों तक खोल देते हैं, सरल कर देते हैं।
'गीता' में मनुष्य को उसकी इकाई की पहचान दी गई है। ओशो 'व्यक्तित्व' के निर्माण और उसके विकास के चिंतक हैं। 'चरित्र' जैसे शब्द के रूढार्थ को वे तरजीह नहीं देते। लेकिन व्यक्तित्व निर्माण में जहां चरित्र की आवश्यकता होती है ओशो उसे नजरअंदाज भी नहीं करते।
ओशो का अवतरण भारत-भूमि पर हुआ, चाहें तो हम इस पर गर्व कर सकते हैं। इस शताब्दी में ओशो जैसा दार्शनिक, विचारक, मनोविश्लेषक, चिंतक, साहित्यकार, व्याख्याता कोई दूसरा नहीं हुआ। ओशो रूढ़ियों के पक्षधर नहीं थे और उन्होंने विश्व-वाङ्मय को मथ कर अमृत-बिंदु, मनुष्य की शुभकामना में संजोए हैं।
शतदल
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श्री शतदल भारत के सुप्रसिद्ध कवियों में एक अति संवेदनशील हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएं व्यक्ति के हृदय को गहराई तक छूती हैं। आप एक बहुआयामी साहित्यकार हैं।