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< गीता दर्शन भाग-3
जाएगा। और उस दस दिन के मौन में आप वह जान पाएंगे, जो शायद शब्द से न जान पाए हों।
शब्द से बहुत थोड़ा कहा जा सकता है; मौन से बहुत ज्यादा कहा जा सकता है। शब्द से बहुत कम समझा जा सकता है; मौन से बहुत ज्यादा समझा जा सकता है। क्योंकि शब्द बुद्धि का उपकरण है; और बुद्धि तोड़ देती है। और मौन अखंड है; तोड़ता नहीं, जोड़ देता है।
ये थोड़ी-सी बातें। अभी उठेंगे नहीं। और आज तो मैं चाहूंगा कि-छाते बंद कर लें आखिरी दिन है, हम सब कीर्तन में खड़े होकर सम्मिलित हो जाएं। हम ताली बजाकर कीर्तन कर लें और विदा हो जाएं।
नहीं; कोई भी जाए न! छाते बंद कर लें, और पानी बरस रहा है तो और भी आनंद नाचने में आएगा। दस दिन आपने दूसरों को नाचते देखा। उससे पता नहीं चलेगा कि क्या है नाच। आप नाचें और देखें।
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