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- गीता दर्शन भाग-3 -
जिसे हम दुख कहते हैं, जिसे हम दुख जानते हैं, जिसे हम पीड़ा सेलवीसियस बहुत दुखी और परेशान हुआ। आज भी उस सिर कहते हैं, संताप कहते हैं, वे भी आनंद की यात्रा के पड़ाव हैं। के टुकड़े, टूटे हुए, वेटिकन के पोप की लाइब्रेरी में नीचे दबे पड़े लेकिन यह हमें तब दिखाई पड़े, जब हम पूरे जीवन को हैं; आज भी। और भी बहुत-सी चीजें वेटिकन की लाइब्रेरी में दबी कांप्रिहेंसिवली, इकट्ठा देख सकें।
| पड़ी हैं, जो कभी बड़ी काम की सिद्ध हो सकती हैं। सेलवीसियस हम तो खंड-खंड करके जीवन को देखते हैं। हमारी बुद्धि हर बहुत रोया, बहुत पछताया, बहुत जोड़ने की कोशिश की। सब चीज को खंड-खंड कर देती है। बुद्धि का एक ही काम है, चीजों | जोड़ा-जाड़ा। लेकिन जवाब फिर न आया। को तोड़ना। जोड़ना बुद्धि नहीं जानती। बुद्धि के पास जोड़ने का | बुद्धि तत्काल चीजों को तोड़कर देखना चाहती है कि भीतर क्या कोई भी उपाय नहीं है।
| है। लेकिन भीतर जो भी है, वह सिर्फ जुड़े हुए में होता है, टूटे में आज से एक हजार साल पहले सेलवीसियस नाम का एक नहीं होता। जिस चीज को भी हम तोड़ लेते हैं, उसकी होलनेस, ईसाई, कैथोलिक फकीर हिंदुस्तान आया। सेलवीसियस बहुत | | उसकी पूर्णता नष्ट हो जाती है। और जीवन के सब रहस्य उसकी अदभुत आदमियों में से एक था। और बाद में वह कैथोलिक चर्च | पूर्णता में हैं। का पोप बना. हिंदस्तान से लौटने के बाद। और जितने पोप बने हैं. इसलिए विज्ञान कभी जीवन के परम रहस्य को उपलब्ध न हो उनमें सेलवीसियस का मुकाबला नहीं है। सेलवीसियस ने | | पाएगा। क्योंकि विज्ञान की पूरी प्रक्रिया तोड़ने की है, एनालिसिस हिंदुस्तान के बहुत-से राज समझने की कोशिश की और हिंदुस्तान की है, विश्लेषण की है। चीजों को तोड़ते चले जाओ। इसलिए की धार्मिक साधना में गहरा उतरा। हिंदुस्तान के फकीरों ने उसे एटम तो मिल गया; आत्मा नहीं मिलती। एटम मिल जाएंगा; वह बहुत-सी चीजें भेंट दी कि तुम ले जाओ।
तोड़ने से मिलता है। आत्मा नहीं मिलती; वह जोड़ने से मिलती है। एक फकीर ने उसे एक चीज भेंट दी, एक तांबे का बना हुआ विद्युत के कण मिल जाएंगे, इलेक्ट्रांस मिल जाएंगे, लेकिन आदमी का सिर भेंट दिया। वह सिर बहुत अदभुत था। एक बड़ी | | परमात्मा नहीं मिलेगा। इलेक्ट्रांस तोड़ने से मिलते हैं; परमात्मा से बड़ी रहस्य और मिस्ट्री उस सिर के साथ जुड़ी है। उस सिर से | जोड़ने से मिलता है। कोई भी जवाब हां और न में लिया जा सकता था। उससे कुछ भी कृष्ण बड़े से बड़े जोड़ की बात कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, अंधेरा पूछे, वह हां या न में जवाब दे देता था। वह था तो सिर्फ तांबे का और प्रकाश मैं ही हूं। जीवन और मृत्यु मैं ही हूं। सृष्टि और प्रलय सिर, आदमी की एक खोपड़ी पर चढ़ाया हुआ। वह अदभुत था। मैं ही हूं। और जो सब भूतों में मुझे देखता है, वह एक दिन अंधकार सेलवीसियस ने हजारों तरह के सवाल पूछे और सदा सही जवाब | | में-उसमें भी, जो अप्रीतिकर मालूम पड़ता है—मुझे देख पाएगा। पाए। पूछा कि यह आदमी मर जाएगा कल कि बचेगा? उसने | और जिस दिन अप्रीतिकर में भी परमात्मा दिखाई पड़ता है, उस कहा, हां, मर जाएगा, तो मरा। उसने कहा कि नहीं, तो नहीं मरा। | दिन क्या अप्रीतिकर बचता है? मेरा यह हाथ किसी को सुंदर मालूम न मालूम क्या-क्या पूछा और सही पाया।
पड़ सकता है। इस हाथ को तोड़कर सड़क पर डाल दें, फिर यह सेलवीसियस बड़ी मुश्किल में पड़ गया। उस फकीर ने कहा था, | बिलकुल सुंदर नहीं मालूम पड़ेगा; बहुत कुरूप हो जाएगा। आपकी लेकिन एक खयाल रखना, बुद्धि की मानकर कभी इस सिर को । आंख किसी को सुंदर मालूम पड़ सकती है; निकालकर टेबल पर खोलकर मत देखना कि इसके भीतर क्या है। लेकिन जैसे-जैसे | | रख दें, तो दूसरा आदमी आंख बंद कर लेगा कि यह न करिए। सेलवीसियस को उत्तर मिलने लगे. वैसे-वैसे उसका मन बेचैन | क्या, बात क्या है? आंख सुंदर होती है, जब शरीर की पूर्णता होने लगा। उसकी रात की नींद खो गई। उसको दिनभर चैन न पड़े। में होती है; अलग होकर कुरूप हो जाती है। हाथ सुंदर होता है, कब इसको खोलकर देख लें, तोड़कर, इसके भीतर क्या है! जब शरीर की पूर्णता में होता है; अलग होकर सिर्फ गंदगी और
वह बामुश्किल हिंदुस्तान से जा पाया। रोम पहुंचते ही उसने | दुर्गंध फैलाता है। पहला काम यह किया कि उसको तोड़कर, उसको खोलकर देख __यह पूरी जिंदगी, यह पूरा विराट एक है। और जब कोई इसे एक लिया। उसके भीतर तो कुछ भी न था। एक साधारण खोपड़ी थी। | की तरह देख पाता है, तो वह परम सौंदर्य के अनुभव को उपलब्ध कुछ भी न मिला।
होता है। वही परम सौंदर्य भागवत सौंदर्य है। वही डिवाइन ब्यूटी है।
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