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________________ निराकार का बोध > इसे ऐसा समझें कि एक आदमी अपने घर के भीतर बैठा है। कभी घर के बाहर नहीं गया। खिड़की से आकाश को देखता है। तो : आकाश निराकार दिखाई पड़ेगा कि साकार ? उसे साकार दिखाई पड़ेगा। क्योंकि खिड़की का ढांचा आकाश पर बैठ जाएगा। वह जो खिड़की का पैटर्न है, वह जो खिड़की का चौखटा है, आकाश उतना ही मालूम पड़ेगा, जितना खिड़की का चौखटा है। और अगर वह आदमी अपने घर के बाहर कभी न गया हो, तो क्या वह सोच सकेगा कि यह जो चौखट दिखाई पड़ रही है, मेरे मकान की है, आकाश की नहीं! कभी नहीं सोच सकेगा। इसके लिए बाहर जाना जरूरी है। हम अपने मकान के बाहर कभी नहीं गए। शरीर के भीतर हैं। और हर चीज पर चौखट है । हमारी आंख की चौखट चीजों को आकार दे देती है। कान की चौखट चीजों को आकार दे देती है। हमारी इंद्रियां आकार का निर्माण करती हैं। और हम अपने शरीर के बाहर कभी नहीं गए। शरीर के भीतर से ही सब चीजें देखते हैं। और इंद्रियां आकार देती हैं हरेक चीज को एक दफा हम शरीर के बाहर जाकर देख लें, तो भी काम हो जाए । तो आपको एक दूसरा प्रयोग भी कहता हूं। वह भी अगर संभव हो सके, तो जैसे मैंने दो प्रयोग आपको कहे, एक प्रयोग और आपको कहता हूं। वह भी एक रास्ता है कि आप घर के बाहर जाकर देख लें। आप पंद्रह दिन तक आधा घंटा रोज, पड़ जाएं जमीन पर मुर्दे की भांति और एक ही बात सोचते रहें कि मैं मर गया । कठिन पड़ेगा। खुद ही को डर लगेगा। बीच में एकाध दफे कह देंगे कि नहीं-नहीं; ऐसा नहीं; मैं जिंदा हूं! नहीं, ऐसा नहीं चलेगा। कहते रहें, मैं मर गया, मैं मर गया । इसको मंत्र की तरह भाव करते रहें। पंद्रह दिन में आप अचानक पाएंगे कि कई बार आपको ऐसा लगेगा कि थोड़ा-सा आप शरीर के बाहर गए । कभी बाहर निकल गए हैं, कभी भीतर आ गए हैं। कभी बाहर गए हैं, कभी भीतर आ गए हैं। एक महीना पूरा होते-होते आप इस स्थिति में आ जाएंगे कि आपको कई बार अपने शरीर को बाहर से देखने का मौका मिल जाएगा। एक क्षण को आप देखेंगे कि शरीर पड़ा है मुर्दे की तरह । आप पड़े हैं। घबड़ाकर आप फिर भीतर चले जाएंगे। तीन महीने आप प्रयोग करते रहें और आप उस स्थिति में आ जाएंगे कि बराबर बाहर खड़े होकर अपने शरीर को देख पाएं कि यह पड़ा है शरीर । और एक दफा आप अगर अपने शरीर के बाहर होकर अपने शरीर को देख पाएं, उस वक्त जरा लौटकर चारों तरफ देखना, सब निराकार दिखाई पड़ेगा, कहीं कोई आकार नहीं है। क्योंकि सब आकार शरीर की इंद्रियों के चौखटों का आकार है। आंख का आकार है, इसलिए आंख निराकार नहीं देख सकती। | कान का आकार है, इसलिए कान निराकार को नहीं सुन सकता। हाथ का आकार है, इसलिए हाथ निराकार को कैसे स्पर्श करे ! शरीर के बाहर, आउट आफ दि बाडी एक्सपीरिएंस, आपको खबर दिलाएगा कि सब निराकार है । उस दिन के बाद आपकी जिंदगी दूसरी हो जाएगी। कृष्ण जो भी ये कह रहे हैं, ये योग के गहरे प्रयोगों की तरफ इशारे हैं। निराकार को जो देख ले, वही बुद्धिमान है। आकार में जो उलझा रह जाए, वह बुद्धिहीन है । वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन । भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ।। २६ ।। और हे अर्जुन, पूर्व में व्यतीत हुए और वर्तमान में स्थित तथा आगे होने वाले सब भूतों को मैं जानता हूं, परंतु मेरे को कोई भी श्रद्धा-भक्तिरहित पुरुष नहीं जानता है। 441 जानता हूं, कृष्ण कहते हैं, वह जो पीछे हुआ वह, अभी हो रहा है वह, जो आगे होगा वह - मैं सब जानता हूं। इस सब जानने का अर्थ यह है - यह थोड़ी-सी कठिन बात है, थोड़ी समझ लेनी चाहिए - इस सब जानने का अर्थ यह है कि. कृष्ण जैसी निराकार चेतना के समक्ष समय जैसी कोई चीज नहीं होती। वर्तमान, अतीत और भविष्य हम लोगों की धारणाएं हैं। जैसे | ही कोई निराकार को जान लेता है, समय की सब सीमाएं गिर जाती हैं। और एक इटरनल नाउ, सब चीजें अभी हो जाती हैं। न कोई अतीत होता है, न कोई भविष्य होता है, न कोई वर्तमान होता है। समय का क्षण ठहर जाता है। अगर ठीक से समझें, तो हम निरंतर कहते हैं कि समय जा रहा है, समय बीत रहा है। स्थिति उलटी है। समय तो अपनी जगह
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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