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< निराकार का बोध -
का अर्थ होता है, सीमा में खड़े होना। प्रकट होने का अर्थ है, पृथ्वी लगे, और अमूर्त को भूल जाए, वह नासमझ है। पर, शरीर में, देह में अभिव्यक्त होना। लेकिन हमें बडी कठिनाई | | एक तो नासमझी यह है, जो प्रेमी कर लेता है। दूसरी नासमझी होती है।
यह है कि लोग पूछेगे कि भगवान कैसे हैं! धूप पड़ती है, तो पसीना यह बल्ब है बिजली का, जलता है। बिजली प्रकट नहीं हो आता है; दौड़ें, तो सांस चढ़ जाती है; थक जाते हैं, तो इन्हें भी नींद सकती है बिना इस बल्ब के। बल्ब का तो रूप होगा, आकार आती है। हम आदमियों जैसे ही हैं। इसलिए हम कैसे स्वीकार करें होगा; बिजली का कोई रूप और आकार नहीं है। वह आदमी | कि ये भगवान हैं ? वह एक दूसरा वर्ग है जो कहेगा, हम स्वीकार नासमझ है, जो बल्ब को बिजली समझ ले। लेकिन वह नासमझ नहीं कर सकते। उसकी भी नासमझी वही है, जो उस भक्त की है, भी तर्क दे सकता है। वह डंडा उठाकर ट्यब के ऊपर पटक दे. तो जो आकार में देख रहा है। वह भी आकार में देख रहा है। टयूब फूट जाए और बिजली बंद हो जाए। तो वह कहे कि देखो, । कृष्ण कहते हैं, निराकार को जो देख पाए. वही बद्धिमान है। मैंने कहा था न कि यह बल्ब ही बिजली है। मारा डंडा, टूट गया असल में बुद्धि की परीक्षा ही यही है कि वह निराकार को देख पाए। बल्ब; नहीं बची बिजली।
आकार को तो निर्बुद्धि भी देख पाता है। आकार को देखने में कोई फिर भी हम जानते हैं कि बल्ब बिजली नहीं है। बल्ब पूरी तरह | बुद्धिमत्ता नहीं है। आकार तो सभी को दिखाई पड़ता है। वह जो बना रहे और बिजली जा सकती है; और बल्ब पूरी तरह मिट जाए, | नहीं दिखाई पड़ता है, वह जो पीछे छिपा खड़ा है, उसे जो देख पाए, तो भी बिजली रहती है। बल्ब केवल अभिव्यक्त होने की व्यवस्था उसे जो पहचान पाए वही बद्धिमान है। लेकिन ष्ण में ही कोई है, मैनिफेस्टेशन है। जब भी किसी शक्ति को प्रकट होना हो, तो निराकार को देख लेगा, यह संभव नहीं है, जब तक वह सब जगह रूप और आकार के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है।
निराकार को देखना शुरू न कर दे। __कृष्ण कहते हैं, जो नासमझ हैं, वे मेरी देह को ही समझ लेते हैं। जब आप एक वृक्ष को देखते हैं, तो आपको आकार ही दिखाई कि यह मैं हूं।
| पड़ता है। आपको वह जीवन ऊर्जा, जो वृक्ष के भीतर बहती है और इन नासमझों में दो तरह के लोग हैं। एक तो वे नासमझ, जो | | आकार लेती है, वह आपको दिखाई नहीं पड़ती। जब एक फूल कृष्ण को प्रेम करने लगेंगे, लेकिन वे कृष्ण की देह को ही प्रेम करते | खिलता है, तो आकार ही दिखाई पड़ता है। उस फूल के भीतर जो चले जाएंगे। वे कष्ण को. वह जो अरूपी भीतर छिपा है. उसको ऊर्जा खिलती है और पंखडियों में फैलती है. और जिस शक्ति के नहीं देख पाएंगे। और एक वे नासमझ, जो दुश्मन हो जाएंगे। वे कारण पंखुड़ियां बंद थीं और खुल जाती हैं, उस शक्ति को आप कहते रहेंगे कि यह आदमी तो शरीरधारी है, यह भगवान कैसे हो नहीं देख पाते। जब एक बीज टूटता है, तो आप बीज को देखते हैं; सकता है ? यह आदमी उठता है, बैठता है, सोता है, भूख लगती लेकिन जो उसके भीतर भरा था और टूटना चाहता था, और तोड़ है, खाना खाता है। यह भगवान कैसे हो सकता है? | दिया बीज को और बाहर आया, वह आपको नहीं दिखाई पड़ता। ___ उन दोनों की बुद्धि में बहुत भेद नहीं है। जो कृष्ण को प्रेम | हम देखते ही आकार को हैं सब तरफ। जब हम सब तरफ करेंगे, वे इस शरीर को ही भगवान मान लेंगे। फिर वे कृष्ण की | | आकार को देखते हैं, तो यह संभव नहीं है कि विशेष रूप से कृष्ण मूर्ति बना लेंगे, फिर वे उस कृष्ण की मूर्ति को सुबह दातुन | | या क्राइस्ट या मोहम्मद के संबंध में हम आकार को न देखें और कराएंगे, पानी पिलाएंगे, स्नान करवाएंगे, फिर वे उस कृष्ण की निराकार को देख लें। आकार को देखने की हमारी जड़बद्ध आदत मूर्ति को शयन करवाएंगे; दोपहर को द्वार बंद करके बिस्तर पर है। हम जो चौबीस घंटे देखते हैं, वही हम कृष्ण में भी देख पाएंगे। लिटाएंगे; फिर उस मूर्ति को कपड़े पहनाएंगे।
हम दूसरी बात न देख पाएंगे। फिर यह सब चलेगा। इस बात को भूल जाएंगे कि जिस कृष्ण | | सुना है मैंने, एक जहाज पर, पानी के जहाज पर बहुत-से यात्री का हमने आविर्भाव देखा था, वह यह मूर्ति नहीं है। वह आविर्भाव हैं और एक जादूगर भी है। और एक तोता भी है एक आदमी के तो अमूर्त का था; इस मूर्ति से हुआ था, इस रूप में हुआ था। इस | | पास। वह जादूगर समय काटने के लिए जहाज के यात्रियों को मर्ति का उपयोग किया जा सकता है। इस मर्ति के प्रति श्रद्धा भी बिठाकर कछ ट्रिक्स, कुछ अपना काम दिखाता है, कुछ हाथ की प्रकट की जा सकती है। लेकिन इसी मूर्ति के आस-पास जो घूमने सफाइयां दिखाता है। लेकिन वह तोता भी उसी जादूगर के गांव का
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