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________________ कृष्ण का संन्यास, उत्सवपूर्ण संन्यास देना है। वह किसी की छाती में झंडा गाड़ना है। मंगल पर कल गाड़ देंगे। होगा क्या ? हम गणित को ही नहीं समझते, उसको फैलाए चले जाते हैं। गणित सीधा और साफ है कि फल की दौड़ से सुख का कोई भी संबंध नहीं है। संबंध ही नहीं है। सुख का संबंध है कर्म में रस लेने से। सुख का संबंध फल में रस लेने से जरा भी नहीं है। सच तो यह है कि जिसने फल में लिया रस, मिलेगा उसे दुख | फल में रस, दुख उसकी निष्पत्ति है। जितना ज्यादा फल में रस लिया, , उतना ज्यादा दुख मिलेगा। दो कारण से दुख मिलेगा। अगर फल नहीं मिला, तो दुख मिलेगा। यह दुख मिलेगा कि फल नहीं मिल पाया, मैं हार गया। पराजित, पददलित। अगर मिल गया, तो भी दुख मिलेगा, क्योंकि मिलते ही पता चलेगा कि इतनी मेहनत की, इतना श्रम उठाया और यह मिल भी गया और फिर भी कुछ नहीं मिला ! फ दो तरह से दुख लाता है। हारे हुओं को भी और जीते हुओं को भी । हारे हुओं को कहता है कि फिर कोशिश करो, तो जीत जाओगे। जीते हुओं को कहता है कि किसी और चीज पर कोशिश करो। यह मकान तो बना लिया, ठीक है। एक हवाई जहाज और खरीद लो। क्योंकि हवाई जहाज के बिना कभी किसी को सुख मिला? हवाई जहाज जिसको मिल जाता है, उसे कुछ हुआ नहीं। कुछ और कर डालो। और कुछ लोग ऐसी जगह पहुंच जाते हैं एक दिन, जहां कुछ करने को नहीं बचता। सब कुछ उनके पास हो जाता है। आज अमेरिका में वैसी हालत हो गई है। कुछ लोग तो उस जगह पहुंच गए हैं, जिनके पास सब है, अतिरिक्त है। तो अमेरिका में जो आज चीजें बेचने वाले लोग हैं, वे मन की तरकीब को जानते हैं। वे क्या कहते हैं? वे लोगों को समझाते हैं कि एक मकान से कहीं सुख मिला? सुख उनको मिलता है, जिनके पास दो मकान हैं। वह एक मकान में पति-पत्नी रह रहे हैं कुल जमा, उसमें बीस कमरे हैं। वह उनको समझा रहा है - वह जो जमीन बेचने वाला, मकान बेचने वाला आदमी—कि एक मकान से कहीं सुख मिलता है ? अमेरिका मकानों का विज्ञापन अखबारों में देखें, तो आपको बहुत हैरानी होगी। अखबारों में विज्ञापन कहते हैं, कहीं एक मकान से सुख मिलता है? एक मकान और चाहिए हिल स्टेशन पर । जिनके पास दो मकान हैं, उनसे कहते हैं कि एक मकान और चाहिए समुद्र तट पर। वह मन की तरकीब का खयाल है कि सुख! मन हमेशा कहता है कि सुख मिल सकता है। या तो तुमने गलत चीज में सोचा था पहले। इसी मन ने समझाया था वह भी । अब यही मन समझाता है कि दूसरी चीज चुनो। या मन कहता है - अगर हार गए, तो वह कहता है- हारने में तो दुख मिलता ही है, और संकल्प करो। और संकल्प करो, तो जीत जाओगे । मन के इस गणित को समझेंगे आप, कृष्ण का महागणित समझ में आ सकेगा। वह संन्यास का है, वह बिलकुल उलटा है। वह यह है कि मन की इस प्रक्रिया में जो उलझा, वह सिवाय दुख के और कहीं भी नहीं पहुंचता है। सुख है। ऐसा नहीं कि सुख नहीं है। सुख निश्चित है, लेकिन उसकी प्रक्रिया दूसरी है। उसकी प्रक्रिया है कि बर्फ को पानी | बनाओ, पानी को भाप बनाओ। भाप से छुटकारा, नमस्कार कर लो। भाप से कहो कि जाओ; यात्रा पर निकल जाओ आकाश की। अहंकार को संकल्पों में बदलो, संकल्पों को कामनाओं में कामनाओं का छुटकारा कर दो। अहंकार को गलाओ, संकल्प का पानी बनाओ। संकल्प को भी आंच दो, ज्ञान की आंच दो, उसको भाप बन जाने दो। वह बादल बनकर तुमसे हट जाए। उसके बाहर ओ और जिस दिन भी कोई व्यक्ति ऐसी स्थिति में आ जाता है - और कोई भी आ सकता है, क्योंकि सभी उस स्थिति के हकदार हैं। वह कृष्ण कुल अर्जुन से ही कहते हों, ऐसा नहीं है। कोई भी, जिसके जीवन में चिंतना आ गई हो, उसके लिए सिवाय इसके कोई भी मार्ग नहीं है। जिसने सोचा हो जरा भी, उसके लिए सिवाय इसके कोई मार्ग नहीं है। और अगर आपको अब तक यह पता न चला हो कि इच्छाओं के मार्ग से सुख नहीं आता है, तो आप समझना कि आपने अभी | सोचना शुरू नहीं किया। अगर आपको अभी यह खयाल न आया हो कि इच्छाएं दुख लाती हैं, तो आप समझना कि अभी आपके सोचने की शुरुआत नहीं हुई। क्योंकि जो आदमी भी सोचना शुरू | करेगा, जीवन की पहली बुनियादी बात उसको यह खयाल में | आएगी। यह पहला चरण है सोचने का कि इच्छाएं कभी भी सुख लाती नहीं, दुख में ले जाती हैं। फिर सुख कहां है? तो दो उपाय हैं। या तो हम समझें कि फिर सुख है ही नहीं; या फिर एक उपाय यह है कि सुख इच्छाओं के अतिरिक्त कहीं हो सकता है। इसके पहले कि हम निर्णय करें कि सुख है ही नहीं, कुछ क्षण इच्छाओं के बिना जीकर देख लें। 17
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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