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________________ < गीता दर्शन भाग-3> न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः। मूढ़ किसे कहते हैं? मूढ़ विशेष शब्द है। मूढ़ का अर्थ सिर्फ माययापहतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः । । १५ ।।। | मूर्ख नहीं होता। इसे थोड़ा समझ लेना पड़ेगा। मूढ़ पारिभाषिक चतविधा भजन्ते मां जनाः सुकतिनोऽर्जुन।। | शब्द है। अगर मनसविद से पूछेगे, तो मनसविद जिसे ईडियट आतों जिज्ञासुरार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ।। १६ ।। कहता है, उसे संस्कृत में मूढ़ कहा जाता है। उसका मतलब फुलिश माया द्वारा हरे हुए ज्ञान वाले और आसुरी स्वभाव को धारण | नहीं है, उसका मतलब मूर्ख नहीं है। क्योंकि मूर्ख और बुद्धिमान किए हुए तथा मनुष्यों में नीच और दृषित कर्म करने वाले | में जो अंतर होता है, वह गुणात्मक होता है, डिग्री का होता है। मूढ़ लोग तो मेरे को नहीं भजते हैं। | जिसको आप मूर्ख कहते हैं, वह थोड़ा कम बुद्धिमान है; बस। और और हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन, उत्तम कर्म वाले अर्थार्थी, | जिसको आप बुद्धिमान कहते हैं, वह थोड़ा कम मूर्ख है; बस। उन आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी अर्थात निष्कामी, ऐसे चार प्रकार | दोनों के बीच जो अंतर है, वह मात्रा का है, गुण का नहीं है। के भक्तजन मेरे को भजते हैं। | क्वालिटी का नहीं है, क्वांटिटेटिव है। फिर दो शब्द और हैं, एक जिसको हम कहते हैं मूढ़ और दूसरा, जिसको हम कहते हैं मेधावान। उनके बीच जो अंतर है, वह का न करता है प्रभु का स्मरण, इस संबंध में कृष्ण ने कुछ क्वालिटी का है, गुण का है, क्वांटिटी का नहीं है। DIबातें कही हैं। मूढ़ से मतलब है, ऐसा आदमी, जो जिस शाखा पर बैठा हो, मनुष्य जाति को दो भागों में विभाजित किया जा | उसी को काटता हो। सकता है। और जब दुनिया से सारे वर्ग मिट जाएंगे, तब भी वही | कालिदास की कथा हमने पढ़ी है। वे मूढ़ के प्रतीक हैं। बैठे हैं विभाजन अंतिम सिद्ध होगा। | वृक्ष पर, शाखा को काट रहे हैं। और जिस शाखा को काट रहे हैं, बहुत तरह से आदमी को हम बांटते हैं। धन से बांटते हैं; गरीब | | उसी पर बैठे हुए हैं। गिरेंगे ही। और कोई और जिम्मेवार न होगा। है, अमीर है। शिक्षा से बांटते हैं; शिक्षित है, अशिक्षित है। चमड़ी | खुद ही शाखा को काट रहे हैं। और जितनी शाखा कटती है, के रंगों से बांटते हैं; गोरा है, काला है। हजार तरह से आदमी को कालिदास उतने प्रसन्न हो रहे होंगे, क्योंकि सफलता मिल रही है। हम बांटते हैं। लेकिन जो परम विभाजन है, जो अंतिम विभाजन है, हालांकि सफलता कुल इसमें मिल रही है कि वे थोड़ी देर में गिरेंगे वह न तो चमड़ी से तय होता, न धन से तय होता, न यश से तय और हाथ-पैर तोड़ लेंगे। होता, न शिक्षा से तय होता। ये सब बातें बहुत ऊपर और बहुत मूढ़ से मतलब है, ऐसा व्यक्ति, जो आत्मघात में लगा हो; बाहर हैं, बहुत सतह पर। अंतिम विभाजन तो एक ही है, वे जो | स्युसाइडल। मेहनत भी करता हो, तो अपने को ही नुकसान प्रभु-उन्मुख हैं, और वे जो प्रभु-उन्मुख नहीं हैं। वे जिनकी आंखें | पहुंचाता हो। श्रम भी करता हो, तो अपना ही घात करता हो। परमात्मा की तरफ उठ गई हैं; और वे जो पीठ किए हुए परमात्मा निश्चित ही, परमात्मा के खिलाफ जो पीठ करके खड़े हैं, उनसे की तरफ खड़े हुए हैं। बड़ा मूढ़ कोई भी नहीं हो सकता। क्योंकि शाखाओं पर से कोई कृष्ण कहते हैं, मूढजन मुझे नहीं भजते हैं। काटकर गिर भी पड़े, तो कितना नुकसान होने वाला है! लेकिन कठिन लगेगा यह शब्द। और कृष्ण किसी को मूढ़ कहें, तो | परमात्मा की तरफ पीठ करके खड़ा हुआ आदमी तो सब भांति के लगेगा, गाली दे रहे हैं। लेकिन जहां तक कृष्ण का संबंध है, वे नुकसान में पड़ जाएगा। केवल एक तथ्य की सूचना कर रहे हैं। एक फैक्ट। और मूढ़ कहना इसलिए कृष्ण जब मूढ़ कहते हैं, तो आप मत सोचना कि गाली गाली नहीं है, मढ़ कहना केवल एक तथ्य की घोषणा है। दे रहे हैं। वे केवल सचना दे रहे हैं कि ऐसे व्यक्ति को हम मढ सच ही वह आदमी मूढ़ है, जो परमात्मा की तरफ पीठ किए। | कहते हैं। क्योंकि परमात्मा है हमारी परम संपदा। उसके बिना हम खड़ा है। इसलिए नहीं कि इससे परमात्मा की कोई हानि है और | दरिद्र ही रहेंगे, चाहे हम कितनी ही संपत्ति इकट्ठी कर लें। और इसलिए कृष्ण नाराज होकर उसे मूढ़ कह रहे होंगे। बल्कि इसलिए | परमात्मा है परम यश। उसके बिना हम पदहीन ही रहेंगे, क्योंकि कि वह अपना ही घात कर रहा है, आत्मघात कर रहा है। | वह है परम पद, चाहे हम कितने ही बड़े पदों पर पहुंच जाएं। और 394
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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