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गीता दर्शन भाग-3 -
गया है और बुद्ध गांव में रुके हैं। तो वह छाती पीटती हुई आई और बुद्ध ने कहा, दिनभर में तेरी इतनी बड़ी बदलाहट। वह तो सांझ उसने कहा कि मैं तुम्हारी बातें तभी सुनूंगी, जब तुम मेरे लड़के को संन्यासिनी हो गई। उसने बुद्ध से उसी सांझ दीक्षा ली। जिंदा कर दो। लोग कहते हैं, तम भगवान हो। तो भगवान ने तो किस बात से यह बदलाहट हई? एक तथ्य की तरफ दष्टि इतना बड़ा जगत बनाया, तुम मेरे इस लड़के को ही जिंदा कर दो। उठी-एक बड़े तथ्य की तरफ–कि मृत्यु जीवन का हिस्सा है।
बुद्ध के संन्यासी, भिक्षु मुश्किल में पड़ गए। अब क्या होगा! | जिस दिन परमात्मा की तरफ दृष्टि उठेगी, कि प्रकृति परमात्मा बुद्ध ने कहा, कर दूंगा सांझ तक। एक छोटा-सा काम तू पहले मेरे | का हिस्सा है; जिस दिन ऊपर की तरफ देखेंगे, उस विराट की लिए कर ला। गांव में जा—मैं इसे जिंदा करने की दवाई बुला रहा | | तरफ, जिसमें सारी प्रकृति समाई हुई है; उस दिन आप दूसरे आदमी हूं और किसी भी घर से सरसों के बीज ले आ, उस घर से, | हो जाएंगे। उस दिन चोरी असंभव होगी। उस दिन क्रोध असंभव जिसमें कोई कभी मरा न हो। जा, सांझ तक लेकर आ जाना। बस, होगा। उस दिन बेईमानी मुश्किल हो जाएगी। उस दिन बेईमानी तू सरसों के बीज ले आना उस घर से जिसमें कोई कभी न मरा हो; ऐसी ही होगी, जैसे कोई आदमी अपने एक खीसे से रुपए चुराकर मैं इसे सांझ जिंदा कर दूंगा।
दूसरे खीसे में रख ले। बस! ऐसे कुछ लोग हैं कि अपने ही एक . औरत खुशी से भागी पागल होकर, जरूर किसी न किसी के घर खीसे से चुराकर अपने ही दूसरे खीसे में रख लेते हैं। सभी लोग में सरसों के बीज मिल जाएंगे, और उसका बेटा जिंदा हो जाएगा। ऐसे हैं, अगर सत्य दिखाई पड़े तो। क्योंकि आपका खीसा भी सिर्फ लेकिन एक-एक घर के द्वार पर उसने दस्तक दी। जिस घर में भी थोड़ी दूर, मेरा ही खीसा है। गई, वहीं लोगों ने कहा, सरसों के बीज तो हैं। अभी-अभी फसल - जिस दिन परमात्मा दिखाई पड़े, उस दिन चोरी असंभव है, कटी है। तो बुद्ध ने कोई बड़ी कठिन दवाई नहीं मांगी है। लेकिन | क्योंकि सबमें ही परमात्मा दिखाई पड़ेगा। अपनी ही चोरी कौन हमारे घर के सरसों के बीज काम न पड़ेंगे। हमारे घर में तो बहत करता है? वह तो चोरी हम करते इसलिए हैं कि दूसरा दुसरा है। लोग मरे हैं।
और जिस दिन परमात्मा दिखाई पड़े, उस दिन सब मालकियत का सांझ तक एक-एक घर छान डाला। और सांझ तक हर घर पर खयाल खो जाता है। क्योंकि जब असली मालिक का पता चल यही बात सुनकर कि हर घर में कोई मरा है, और मृत्यु जीवन का | गया, तो हमें पता चल जाता है कि हम मालिक नहीं हैं, और हम नियम है, वह स्त्री सुबह रोती हुई आई थी, सांझ हंसती हुई आई। मालिक नहीं हो सकते। जब मालकियत ही नहीं हो सकती, तो क्या
बद्ध ने कहा. ले आई सरसों के बीज ? उस स्त्री ने कहा, सरसों चोरी? क्योंकि चोरी तो मालकियत की व्यवस्था है, किसी तरह के बीज तो नहीं लाई, लेकिन बड़ी बुद्धिमत्ता लेकर आई हूं। बच्चे मालकियत कायम करने की चेष्टा है। को लौटा दें। मैं अपनी प्रार्थना वापस लेती हूं। उसे जिंदा करने की कृष्ण कहते हैं, मुझमें तो सारी प्रकृति है, लेकिन मैं प्रकृति में कोई जरूरत नहीं। बुद्ध ने कहा, इतनी जल्दी कैसे तू बदल गई? नहीं हूं। तू मुझे खोज ले, तो पूरी प्रकृति तुझे मिल जाए। और तूने
उस स्त्री ने कहा कि जिस तथ्य की तरफ मेरी कभी आंख ही न प्रकृति खोजी, तो तू मुझे न पा सकेगा। इसलिए तू सत्व गुण की उठी थी, उस तथ्य का दर्शन होते ही सब बदल गया। जब सभी बात मत कर। तू यह तम और रज की निंदा मत कर। येत मरते हैं, और जब सभी को मरना है, तो मेरे बेटे के साथ भी हैं। पर तू मेरी बात कर; तू मेरी शरण आ। टुकड़ों की बात मत कर; अपवाद कैसे हो सकता है! नहीं; अब मैं दुखी नहीं हूं। और अब पूरे की बात कर। खंडों की बात मत कर; पूर्ण की बात कर। मैं लड़के को जिलाने की प्रार्थना वापस लेने आई हूं। और आपसे खंडों में पूर्ण है, लेकिन पूर्ण में खंड नहीं है। यह आध्यात्मिक यह भी प्रार्थना करने आई हूं कि आज से मैं भी समझिए कि मर गई, गणित का एक कीमती सूत्र है। कहां से शुरू करनी है यात्रा, उसे क्योंकि मर ही जाऊंगी। मरने के पहले जीवन को जानने की कोई स्मरण दिलाने के लिए कृष्ण ने ऐसा कहा है। . विधि हो, तो मुझे बताएं। अब सदा जीने की कोई आकांक्षा नहीं है, एक छोटी-सी घटना मुझे याद आती है। सुना है मैंने कि क्योंकि मृत्यु तथ्य है; इसलिए अब मृत्यु का कोई भय भी नहीं है। कनफ्यूसियस के जमाने में चीन में दो चीनियों ने आमने-सामने लेकिन जब तक जी रही हूं, तब तक जीवन को जानने की कोई विधि दुकान खोली, होटल। एक का नाम था यिन और दूसरे का नाम था हो, तो मुझे बताएं।
यांग: उन दोनों ने दुकानें खोलीं। दोनों की दकानें अच्छी चलने