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________________ < गीता दर्शन भाग-3> थोड़ा होश का प्रयोग करेंगे, तो धीरे-धीरे आपके और आपके अहंकार के बीच एक गैप, एक फासला पैदा हो जाएगा। और आप देख पाएंगे, यह अहंकार है; यह रहा अहंकार। और जिस दिन आप अहंकार को भी देख पाएंगे, उसी दिन, उसी दिन छलांग। उसी दिन आप इस आठ वाली प्रकृति से छलांग लगाकर उस भीतर की परा प्रकृति में पहुंच जाएंगे, जिसे कृष्ण कहते हैं, मेरा स्वरूप, मेरी चेतना। और उसी चेतना ने सब धारण किया हुआ है। तब आप पाएंगे कि आपके शरीर को भी उसी ने धारण किया हुआ है। तब आप पाएंगे कि आपकी बुद्धि को भी उसी ने धारण किया हुआ है। तब आप पाएंगे कि आप कभी भीतर गए ही नहीं, उसको कभी आपने देखा ही नहीं, जो प्राणों का प्राण है। आपने उसे देखा ही नहीं, जो सारी परिधि का केंद्र है। आपने कभी मालिक को देखा ही नहीं; आप नौकरों से ही उलझे रहे। और अनेक बार आपने नौकरों को ही समझ लिया कि यह मैं हूं। आप मालिक तक कभी पहुंचे नहीं। कृष्ण अर्जुन को उस मालिक की तरफ ले जाने की एक-एक कदम कोशिश कर रहे हैं। कहा, यह है आठ की प्रकृति अर्जुन। तू इसे ठीक से समझ ले। और फिर इसके पार होने के लिए मैं उस बात की तुझे खबर दं, जो परा है, वह जो चैतन्य है, पीछे सबसे छिपा, जो सबका निर्माता, जो सबका आधार और जो सबको फिर अपने में आत्मसात कर लेता है। आज इतना ही। उठेंगे नहीं। पांच मिनट बैठे रहें। प्रसाद लेकर जाएं। हमारे संन्यासियों के पास कुछ और देने को आपके लिए नहीं है। इसलिए आप उठेंगे, तो उनके मन को पीड़ा होगी। बैठे रहें। और सिर्फ बैठे न रहें। प्रसाद तभी मिल सकता है यह, अगर आप इसमें कोआपरेट करें, अन्यथा आप खाली हाथ चले जाएंगे। गीत गाएं। उनके धुन के साथ धुन गाएं। ताली बजाएं। बगल वाले की फिक्र छोड़ दें। वह बगल वाला क्या कहेगा, उसकी फिक्र छोड़ दें। थोड़े आनंदित हों। पांच मिनट इस आनंद को लेकर जाएं। ___ हो सकता है, इस कीर्तन की धुन में आप पूरे आनंदित हो जाएं, तो परा की तरफ थोड़ा-सा इशारा आपको दिखाई पड़े। 346
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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