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________________ स परमात्मा की खोज - उनका प्रयोग कर लूं। उस आदमी ने कहा, तुम कब प्रयोग करोगे? और क्षण में कर लेते हैं। कंसीडर्ड, सोच-विचारकर कभी भी कोई मैं मरने के करीब हूं। मैं नदी में जा रहा हूं गिरने के लिए। आत्महत्या आत्महत्या नहीं कर पाता। की तैयारी करके निकला है। अब मेरे पास कछ भी नहीं है। इस पृथ्वी पर कुछ बहुत विचारशील लोग हुए हैं, जिन्होंने उस फकीर ने कहा, तुम थोड़ा समय मुझे दो। तुम थोड़ी देर बाद आत्महत्या की तारीफ की है। उनमें यूनान का एक विचारक था, भी मर जाओगे, तो दुनिया का कोई हर्ज होने वाला नहीं है। तुम मेरे पिरहो। पिरहो कहता था कि आत्मघात एकमात्र करने जैसी चीज साथ आओ। कम से कम मैं अपने गुरु की परीक्षा कर लूं। | है, क्योंकि जिंदगी बेकार है। लेकिन वह नब्बे वर्ष का होकर मरा। उस आदमी को ले गया सम्राट के पास। और सम्राट से जाकर | और जब वह मर रहा था, तब किसी ने संदेह उठाया कि आश्चर्य भीतर उसने कुछ बात की। लौटकर उस आदमी को ले गया और | | कि कम से कम पचास साल से आप लोगों को समझा रहे हैं कि रास्ते में उससे कहा कि सम्राट से मैंने तय कर लिया है; तुम्हारी | | जिंदगी-मौत सब बराबर हैं। मर जाने के सिवाय कोई ठीक काम एक-एक आंख के लिए वह एक-एक लाख रुपया देने को तैयार नहीं है। देअर इज़ नो डिफरेंस बिटवीन लाइफ एंड डेथ। आप यह है। तुम दोनों आंखें बेच दो। दो लाख रुपए तुम्हारे हाथ में पड़ते हैं। | समझाते रहे, कोई अंतर नहीं जीवन और मृत्यु में। आप नब्बे साल उस आदमी ने कहा, तुमने मुझे क्या पागल समझा हुआ है? मैं और | | तक कैसे जीए? आप मर क्यों न गए? आंखें बेच दूं! उस फकीर ने कहा, लाख रुपए मिल रहे हैं, अगर पिरहो ने आंख खोली और उसने कहा, बिकाज देअर इज़ नो तुम्हारा इरादा कुछ और ज्यादा का हो, तो बोलो। उसने कहा, तुम | डिफरेंस, क्योंकि कोई अंतर नहीं है मरने-जीने में। मैंने बहुत सोचा करोड़ भी दो, तो मैं आंख नहीं बेच सकता। और पाया, कोई अंतर नहीं है। तो मरने से भी क्या फायदा! तो मैंने क्योंकि जैसे ही खयाल आया अंधे होने का, तब पता चला कि | | कहा, ठीक है, जो होता है, होने देना। आंख है। जब तक आंख थी, तब तक थी; बेकार थी। वह मरने जा | पिरहो बहुत विचारशील आदमी था। और जिंदगीभर मरने के रहा था। मरने में आंख भी मिट जाती। और भी सब कुछ मिट जाता। | संबंध में सोचता रहा। मरा नब्बे वर्ष का होकर! तो फकीर ने कहा, छोड़ो आंख को। हो सकता है, तुम्हें मरने | । बहत सोच-विचार वाले लोग आत्मघात नहीं करते। तीव्र भाव जाना है नदी पर. तो आंख की जरूरत पडे। इतना रास्ता पार करना के क्षण में घटना घट जाती है। क्योंकि उस भाव के क्षण में आप इतने पड़े। लेकिन कई चीजें ऐसी हैं, जो बिलकुल बेकार हैं; मरने के | आविष्ट होते हैं कि आपका निगेटिव माइंड सोच नहीं पाता कि लिए जिनका कोई उपयोग नहीं है। कान ही बेच दो। हाथ ही बेच | कितना बड़ा गड्डा पैदा होने जा रहा है। बस एक क्षण में हो जाता है। दो। कुछ तो बेच दो। क्योंकि मैं तुम्हारे लिए ग्राहक खोज लिया हूं। कृष्ण कहते हैं, करोड़ में कोई एक कभी प्रभु की खोज पर उस आदमी ने कहा कि तू आदमी किस तरह का है! मैं नहीं मरना | निकलता है। क्योंकि करोड़ में एक आदमी के पास विधायक चित्त चाहता हूं। क्योंकि उस आदमी को पहली दफा खयाल आया कि अगर हाथ कल मैंने कहा था, संदेह से भरा चित्त। आज आपको और मैं भर कट जाए, तो कितनी कमी हो जाएगी। तो मौत कितनी बड़ी | संदर्भ बता दूं। संदेह से भरा चित्त निगेटिव होगा, नकारात्मक कमी होगी। | होगा। श्रद्धा से भरा चित्त विधायक होगा, पाजिटिव होगा। अगर मरने वालों को, स्युसाइड करने वालों को करने के बाद | अगर संदेह से भरे चित्त वाले आदमी को हम कहें कि दुनिया के एक मौका और दिया जाए, तो वे सब पछताते हुए वापस लौटेंगे। संबंध में कुछ वक्तव्य दो, तो वह जो वक्तव्य देगा, वे नकारात्मक लेकिन मौका नहीं मिलता, इसलिए नहीं लौटते हैं। इसलिए अगर | होंगे। वह कहेगा, दुनिया बिलकुल बेकार है। यहां दो अंधेरी रात आपको स्युसाइड करनी हो, तो जल्दी कर लेना; देर मत लगाना। | के बीच में एक छोटा-सा उजाले का दिन होता है। दो अंधेरी रात क्योंकि पांच-सात मिनट भी रुक गए, फिर आप न कर पाएंगे। | बड़ी घटना मालूम होगी। अगर हम विधायक चित्त के व्यक्ति से उतनी देर में तो शायद अभाव का खयाल आ जाएगा कि यह मैं पूछे, तो वह कहेगा, यह दुनिया बड़ी अदभुत है। यहां दो उजेले क्या कर रहा हूं! सब मिट जाएगा।' दिनों के बीच में एक छोटी-सी अंधेरी रात होती है! इसलिए जो लोग भी आत्मघात करते हैं, वे तीव्र भावावेश में अगर हम निषेधात्मक चित्त के व्यक्ति से पूछे, तो वह गुलाब 337
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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