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________________ तंत्र और योग > तो बुद्ध ने कहा, अंगुलिमाल, तोड़ना तो बच्चे भी कर सकते | तो बुद्ध ने कहा कि मैं तुमसे कहता हूं, तुम हत्या छोड़-छोड़कर हैं। अगर जोड़ सको, तो कुछ हो, अन्यथा कुछ भी नहीं। तोड़ना. भी नहीं छोड़ पाए। यह हत्या कर-करके भी मुक्त हो गया। इसके तो बच्चे भी कर सकते हैं। अगर जोड़ सको, तो कुछ हो। हजार | लिए मन को वश में करने की कोई प्रक्रिया नहीं है। और जब गांव गर्दन भी काट ली, तो मैं कहता हूं, कुछ भी नहीं हो। एक गर्दन | में गए, तो बुद्ध ने कहा, अब तुम्हें अभी, जल्दी ही प्रमाण मिल जोड़ दो, तो मैं समझूगा, कुछ हो। जाएगा। थोड़ी प्रतीक्षा करो, जल्दी प्रमाण मिल जाएगा। अंगुलिमाल ने फरसा नीचे पटक दिया। वह बुद्ध के पैरों पर गिर | ___ गांव में जब सब भिक्षु गए, तो बुद्ध ने कहा, अंगुलिमाल, भिक्षा गया। और बुद्ध ने कहा, अंगुलिमाल, तू आज से उपलब्ध हुआ। | मांगने जा। तू आज से ब्राह्मण हुआ। तू आज से संन्यासी हुआ। सम्राट भी डरते थे। अंगुलिमाल का नाम कोई ले दे, तो उनको बुद्ध के भिक्षु पीछे खड़े थे। उन्होंने कहा कि हम वर्षों से आपके | | भी कंपन हो जाता था। सारे गांव में खबर फैल गई कि अंगुलिमाल साथ हैं। हम से कभी आपने ऐसे वचन नहीं बोले कि तुम ब्राह्मण | भिक्षु हो गया। लोगों ने दरवाजे बंद कर लिए। क्योंकि भरोसा क्या, हुए, कि तुम उपलब्ध हुए, कि तुम पा गए। और अंगुलिमाल हत्यारे | कि वह आदमी एकदम किसी की गर्दन दबा दे! दरवाजे बंद हो से, जो अभी क्षणभर पहले गर्दन काटने को तैयार था, और फरसा | | गए। दुकानें बंद हो गईं। गांव बंद हो गया। लोग अपनी छतों पर, फेंककर सिर्फ पैर पर गिरा है, उससे आप ऐसे वचन बोल रहे हैं! | छप्परों पर चढ़ गए। बुद्ध ने कहा, यह उन थोड़े-से लोगों में से है, जो छलांग लगा | ___ अंगुलिमाल जब नीचे भिक्षा का पात्र लेकर भिक्षा मांगने सकते हैं। छलांग लगा गया है। और जब अंगुलिमाल को निकला, तो कोई भिक्षा देने वाला नहीं था। हां, लोगों ने ऊपर से कर खडा किया. तो लोग उसका चेहरा भी न पहचान सके। वह पत्थर जरूर फेंके। और इतने पत्थर फेंके कि अंगलिमाल सड़क पर क्रूर हत्यारा न मालूम कहां विदा हो गया था। उन आंखों में जहां | लहूलुहान होकर गिर पड़ा। और जब लोगों ने पत्थर फेंके, तो आग जलती थी, वहां फूल खिल गए थे। वह व्यक्ति, जिसके हाथ | | अंगुलिमाल ने सिर्फ अपने भिक्षा-पात्र में पत्थर झेलने की कोशिश में फरसा था, कोई भरोसा न कर सकता था कि इस हाथ में कभी | की। न उसने एक दुर्वचन कहा, न एक क्रोध से भरी आंख उठाई। फरसा रहा होगा। इस हाथ ने कभी फूल भी तोड़े होंगे, इतनी भी और जब वह लहूलुहान, पत्थरों में दबा हुआ नीचे पड़ा था, बुद्ध इस हाथ में कठोरता नहीं है। | उसके पास गए। और उन्होंने कहा, अंगुलिमाल, इन लोगों के इतने लेकिन बुद्ध के भिक्षुओं को तो ईर्ष्या होनी स्वाभाविक थी। आज | | पत्थर खाकर तेरे मन में क्या होता है? तो अंगुलिमाल ने कहा, मेरे का नया आदमी एकदम सीनियर हो गया। एकदम सीनियर! सब | | मन में यही होता है कि जैसा नासमझ मैं कल तक था, वैसे ही छलांग लगा गया! सब व्यवस्था तोड़ दी! अंगुलिमाल बुद्ध के | | नासमझ ये हैं। परमात्मा, इनको क्षमा कर। और मेरे मन में कुछ भी बगल में चलने लगा। गांव में प्रवेश किया। भिक्षु ईर्ष्या से भर गए। | नहीं होता। तो बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहा कि इसको देखो, यह उन्होंने कहा, यह अंगुलिमाल हत्यारा है। | बिना विधि के छलांग लगा गया है। बुद्ध ने कहा, थोड़ा ठहरो। उस आदमी को तुम नहीं जानते हो। | कृष्ण इसलिए उस छोटे-से हिस्से में छोड़ देते हैं, दुष्प्राप्य वह उन थोड़े-से लोगों में से है, जो छलांग लगा लेते हैं। वह हत्या | कहते हैं, असंभव नहीं कहते हैं। सरल कहते हैं उसको, जिसने कर-करके हत्या से मुक्त हो गया। और तुम हत्या बिना किए हत्या | मन को वश में किया, क्योंकि मन को इंच-इंच वश में किया जा से मुक्त नहीं हो पाए हो। मैं तुमसे पूछता हूं भिक्षुओ, तुम्हारे मन | | सकता है। अगर हजार घोड़े हैं आपके मन के रथ में, तो आप में अंगुलिमाल की हत्या का खयाल तो नहीं उठता? | एक-एक घोड़े को धीरे-धीरे लगाम पहना सकते हैं। एक-एक एक भिक्षु जो पीछे था, वह घबड़ाकर हट गया। उसने कहा, | घोड़े को धीरे-धीरे ट्रेन कर सकते हैं, प्रशिक्षित कर सकते हैं। और आपको कैसे पता चला? मेरे मन में यह खयाल आ रहा था कि | | एक दिन ऐसा आ सकता है कि रथ ऐसा चलने लगे कि आप इसको तो खतम ही कर देना चाहिए। नहीं तो मुफ्त, यह नंबर दो समता को उपलब्ध हो जाएं। का आदमी हो गया! बुद्ध के बाद ऐसा लगता है कि यही आदमी || विपरीत के बीच समता को उपलब्ध होना कठिन है, सानुकूल है। और अभी-अभी आया! | के बीच समता को उपलब्ध होना आसान है। अनुकूल के बीच | 271|
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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