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<पदार्थ से प्रतिक्रमण-परमात्मा पर -
का. उसके बाहर भाव के जगत में एक छलांग है। सोचेंगे-विचारेंगे. तो नाच न सकेंगे। सोचेंगे-विचारेंगे, तो गा न सकेंगे। सोचेंगेविचारेंगे, तो सब पागलपन लगेगा कि ये तो पागल हो गए।
लेकिन सोच-विचारकर जिंदगीभर देख लिया, कहीं पहुंचे नहीं हैं। काफी गणित कर लिया, काफी दर्शनशास्त्र पढ़ लिया, काफी तर्क कर लिया-हाथ में राख भी नहीं है।
तो थोड़ी देर के लिए, एक सात मिनट के लिए सोचने के बाहर की दुनिया में भी झांककर देख लें। और बिना झांके कोई उपाय नहीं है। मैं आपसे कहूं कि जरा खिड़की पर आ जाएं। आकाश है बाहर, तारे निकले हैं, फूल खिले हैं। तो आप खिड़की पर आने के पहले नहीं जान सकेंगे कि तारे खिले हैं। खिड़की पर आ जाएं, तो आकाश दिखाई पड़ सकता है।
एक छोटा-सा आकाश यहां संकीर्तन का संन्यासी पैदा करेंगे। संन्यासियों से कहूंगा, वे लोगों को भूल जाएं। लोग हैं या नहीं, इसकी फिक्र छोड़ दें। वे तो अपने रस में पूरे डूब जाएं। अपने हाथों को परमात्मा की तरफ फैला दें और नाच में मग्न हो जाएं।
तीन मिनट अगर ठीक से पूरी सामर्थ्य से डूबा कोई भी व्यक्ति, तो चौथे मिनट छलांग में उतर जाता है। और जब आदमी भीतर प्रवेश करता है प्रभु के, तब खुद नहीं नाचता, प्रभु उसमें नाचने लगता है। तब खुद गीत नहीं गाता, प्रभु ही गीत गाता है। तब थोड़ी ही देर में आदमी मिट जाता है, नृत्य ही शेष रह जाता है।
इस संकीर्तन को आप भी साथ दें। ताली बजाएं। गीत गाएं। डोलें। मग्न हों। एक सात मिनट इस प्रयोग को समझें।
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