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खड़ा होता है / अहंकार के साक्षीत्व से-परा में प्रवेश / सब को धारण किए है - परा चैतन्य ।
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अदृश्य की खोज... 347
प्रगट जगत सम्हला हुआ है - अप्रगट परमात्मा में / धर्म है - अदृश्य की खोज / संसार है— दृश्य में अटक जाना / जो इंद्रियगम्य है - वह प्रकृति / इंद्रियों के पार है परमात्मा / अदृश्य के बोध वाला व्यक्ति ही प्रौढ़ है / धर्म-शून्य संस्कृति बचकानी / जीवन संपदा - गहरे में छिपी / जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ / परमात्मा स्रष्टा है / परमात्मा विनाशक भी है – केवल भारत का साहसपूर्ण वक्तव्य / विनाश में भी प्रभु कृपा देखने वाला - धार्मिक / विश्राम है—- मृत्यु, प्रलय / जीवन वर्तुलाकार है / जीवन के समस्त द्वंद्व संयुक्त हैं / शैतान को परमात्मा से अलग मानना - विभाजित निष्ठा / अविभाजित परमात्मा हो – तो ही श्रद्धा अविभाजित होगी / पश्चिम में विखंडित व्यक्तित्व / कृष्ण का समग्र स्वीकार - शांति भी, युद्ध भी / अविरोध - वेदांत का सार / अद्वैत सत्य को अपरा और परा में क्यों बांटा गया ? / विभाजन – अज्ञानियों को समझाने के लिए / दृश्य वृक्ष और अदृश्य जड़ें / धीरे-धीरे गहरी बातें कहना / शब्द से निःशब्द की ओर ले जाना / अर्जुन के अहंकार को धीरे-धीरे पकड़ना / अज्ञानी की भाषा का ही उपयोग करना / परमात्मा रस है / सौंदर्य, प्रेम, आनंद, ब्रह्म - सब रस हैं / मैं पवित्र सुगंध हूं / पवित्र सुगंध - जो जीवन ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी करे / अपवित्र गंध - जो वासनाओं को जगाए / समाधिस्थ व्यक्ति से निकलती सुगंध - अति संवेदनशील व्यक्ति को पता चलता है / एक पृथ्वी - अलग-अलग बीजों द्वारा अलग-अलग गंध खींचना / कामोत्तेजना में शरीर से एक दुर्गंध निकलना / ध्यानी के शरीर से विशिष्ट सुगंध निकलना / महावीर की सुगंध / पवित्र सुगंध — केवल चेतना के फूल में / सूर्य-चंद्र-ताराओं में मैं प्रकाश हूं / आपने कभी प्रकाश नहीं देखा है - प्रकाशित चीजें देखी हैं / प्रकाश एक अदृश्य उपस्थिति है / परमात्मा प्रकाश है / सिद्ध की दिव्य आभा / आभा दिखाई दे, तो आकार खो जाएगा / बुद्ध बोधि के बाद एक प्रकाशपुंज हैं / आध्यात्मिक विकास की नाप - तेज की मात्रा से / आकाश में मैं शब्द हूं / शब्द की तरंगें नष्ट नहीं होतीं / शुभ तरंगें इकट्ठी करने के प्रयास / राधेश्याम कहने पर नाराज वृद्ध - एक बाल-अवस्था का संस्मरण / वेदों में मैं ओम हूं / ॐ में समस्त साधनाएं बीज रूप से संगृहीत हैं / अ उ म -से जगत के सब शास्त्र निर्मित हो सकते हैं / उ के तीव्र उच्चार से जीवन ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन / ऊर्जा स्रोत – नाभि पर चोट / ॐ में बीजरूप में छिपी परमात्म-ऊर्जा ।
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आध्यात्मिक बल ... 363
अभिव्यक्ति का प्रयास / कृष्ण के शब्द इशारे मात्र हैं / अंगुली न पकड़ें - चांद की ओर आंख उठाएं / पुरुषों में पुरुषत्व हूं / देहरूपी नगर के भीतर रहने वाला - पुरुष / शाश्वत, निर्गुण, निराकार है पुरुषत्व / लहरें दिखाई पड़ती हैं - सागर नहीं / मैं वासनारहित वीरत्व / महावीर का वीतराग वीर्य / एक ही वीरत्व - अकेले होने का साहस / वासना से आने वाला - एक प्रकार का बल / वासना अंधी है / धर्म से भरी कामवासना संभव है / प्रभु-अर्पित काम / सामान्यतः हम कामवासना के शिकार / धर्म को उपलब्ध व्यक्ति प्रकृति को आज्ञा दे सकता है / जीसस का जन्म क्वांरी मां से / किसी आत्मा को सचेतन रूप से गर्भ देना / आध्यात्मिक गर्भ-विज्ञान / तीर्थंकर के गर्भ में आने के सांकेतिक स्वप्न / बुद्ध की मां की मृत्यु पूर्व-अपेक्षित / बुद्ध का पुन अवतरण - मैत्रेय के रूप में - योग्य गर्भ का अभाव / संपूर्ण भूतों का सनातन कारण हूं / एक घटना – हजारों कारण / कार्य-कारण का अनंत जाल / एकमात्र कर्ता — परमात्मा / मनुष्य का भ्रम - स्वयं कर्ता होने का / सनातन कारण के बोध से व्यक्ति शांति को उपलब्ध / बुद्धिमानों की बुद्धि हूं मैं / उधार बुद्धि / असली बुद्धि - प्रज्ञा / उधार ज्ञान वक्त पर काम नहीं पड़ता : एक बोधकथा / जानकारी नहीं – अंतर्जागरण, बोध / अंतर-आकाश