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ष्ण एक अनूठा प्रयोग करना चाह
कृ 'रहे हैं; शायद विश्व के इतिहास में
पहला, और अभी तक उसके
समानांतर कोई दूसरा प्रयोग हो नहीं सका। वह प्रयोग यह करना चाह रहे हैं, युद्ध को एक धर्मयुद्ध बनाने की कीमिया अर्जुन को देना चाह
रहे हैं। ... युद्ध के क्षण में किसी को योगी बनाने की यह चेष्टा बड़ी इंपासिबल है, बड़ी असंभव है।... ये कृष्ण जैसे लोग सदा ही असंभव प्रयास में लगे रहते हैं। उनकी वजह से ही जिंदगी में थोड़ी रौनक है; उनकी वजह से ही, ऐसे असंभव प्रयास में लगे हुए लोगों की वजह से ही, जिंदगी में कहीं-कही कांटों के बीच एकाध फूल खिलता है; और जिंदगी के उपद्रव के बीच कभी कोई गीत जन्मता है।...
कृष्ण एक असंभव चेष्टा में संलग्न हैं। और इसीलिए गीता एक बहुत ही असंभव प्रयास है। असंभव होने की वजह से ही अदभुत; असंभव होने की वजह से ही इतना ऊंचा, इतना ऊर्ध्वगामी है। वह असंभव प्रयास यह है कि अर्जुन, तू योगी भी बन और युद्ध में भी खड़ा रह। तू हो जा बुद्ध जैसा, फिर भी तेरे हाथ से धनुष-बाण न छूटे।
- ओशो
गीता-दर्शन भाग तीन
अध्याय 6-7
ओशो द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता के
अध्याय छह ‘आत्म-संयम-योग' एवं अध्याय सात 'ज्ञान-विज्ञान- योग' पर दिए गए इकतीस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन |