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________________ 4 गीता दर्शन भाग-3 हीलियम गैस की वजह से है, इसकी वजह से है, उसकी वजह से | | और जानो। योग कहता है, हम न बताएंगे, तुम्ही आंख खोलो और है; कि उदजन का अणु-विस्फोट हो रहा है, इस वजह से है। | देख लो। आंख खोलने का ढंग हम बताए देते हैं। लेकिन पूछे कि क्यों हो रहा है सूरज पर, जमीन पर क्यों नहीं हो। योग बिलकुल शुद्ध साइंस है, सीधा विज्ञान है। हां, फर्क है। रहा है? तो वैज्ञानिक कहेगा, इसको मत पूछे। ऐसा हो रहा है, वह साइंस आब्जेक्टिव है, पदार्थगत है। योग सब्जेक्टिव है, आत्मगत हम कह सकते हैं। व्हाई मत पूछे, क्यों मत पूछे। हाउ, कैसे; कैसे | है। विज्ञान खोजता है पदार्थ, योग खोजता है परमात्मा। हो रहा है, वह हम बता सकते हैं। यह पुनर्मरण, यह पुनर्वापसी की यात्रा योग कैसे करता है, उस धर्म भी विज्ञान है। वह भी यह नहीं कहेगा, नहीं कह सकता है, संबंध में भी कुछ बातें खयाल में ले लेनी चाहिए। क्योंकि कृष्ण ने कि क्यों। इतना ही कह सकता है, कैसे! | कहा, उसके ही सतत अभ्यास से परमात्मा में प्रतिष्ठा उपलब्ध होती आदमी विस्मरण करता है। कैसे विस्मरण करता है? पर के है। में कहंगा, पनप्रतिष्ठा उपलब्ध होती है। साथ तादात्म्य करके विस्मरण करता है। कैसे स्मरण करेगा? पर है क्या योग? योग करता क्या है? योग की कीमिया, केमेस्ट्री के साथ तादात्म्य तोड़ेगा, तो पुनः स्मरण हो जाएगा। बस, इस | क्या है? योग का सार-सूत्र, राज, मास्टर-की.क्या है? उसकी प्रक्रिया की बात की जा सकती है। क्यों इस प्रक्रिया की मैं आपसे | कुंजी क्या है? तो तीन चरण खयाल में लें। चर्चा कर रहा हूं? क्योंकि योग शुद्ध विज्ञान है। इसलिए बहुत मजे एक, मनुष्य के शरीर में जितनी शक्ति का हम उपयोग करते हैं, की घटना घटी है। इससे अनंत गुनी शक्ति को पैदा करने की सुविधा और व्यवस्था हिंदुस्तान में तीन बड़े धर्म पैदा हुए-जैन, हिंदू, बौद्ध। उनमें है। उदाहरण के लिए, आपको अभी लिटा दिया जाए जमीन पर, कितने ही झगड़े हों और उनमें कितने ही सैद्धांतिक विवाद हों, तो आपकी छाती पर से कार नहीं निकाली जा सकती, समाप्त हो लेकिन योग के संबंध में उनमें कोई भी विवाद नहीं उठा। योग के | जाएंगे। लेकिन राममूर्ति की छाती पर से कार निकाली जा सकती संबंध में कोई विवाद नहीं है। क्या बात है? है। यद्यपि राममूर्ति की छाती में और आपकी छाती में कोई बुनियादी योग है साइंस, सिद्धांत नहीं। दार्शनिक सिद्धांत नहीं, | | भेद नहीं है। और राममूर्ति की छाती की हड्डियों में जरा-सी भी किसी मेटाफिजिक्स नहीं, योग तो एक प्रक्रिया है, एक प्रयोग है, एक | तत्व की ज्यादा स्थिति नहीं है, जितनी आपकी हड्डियों में है। एक्सपेरिमेंट है। उसे कोई भी करे, अनुभव फलित होगा। | राममूर्ति का शरीर उन्हीं तत्वों से बना है, जिन तत्वों से आपका। इसलिए योग एक अर्थ में समस्त धर्मों का सार है। भारत में तो | राममूर्ति क्या कर रहा है फिर? तीन धर्म पैदा हुए, वे ठीक ही हैं। भारत के बाहर भी जो धर्म पैदा राममूर्ति, जिस शक्ति का आप कभी उपयोग नहीं करते-आप हुए–चाहे इस्लाम, और चाहे ईसाइयत, और चाहे यहूदी धर्म, | अपनी छाती का इतना ही उपयोग करते हैं, श्वास को लेने-छोड़ने चाहे पारसी धर्म-भारत के बाहर भी जो धर्म पैदा हुए, उनका भी | का। यह एक बहुत अल्प-सा कार्य है। इसके लायक छाती निर्मित योग से कभी भी कोई विरोध खड़ा नहीं होता है। | हो जाती है। राममूर्ति एक बड़ा काम इसी छाती से लेता है, कारों ___ अगर ठीक से समझें, तो योग समस्त धर्मों की प्रक्रिया को छाती पर से निकालने का, हाथी को छाती पर खड़ा करने का। है–समस्त धर्मों की वे कहीं पैदा हुए हों। अगर भविष्य में | । और जब राममूर्ति से किसी ने पूछा कि खूबी क्या है? राज क्या कभी किसी दुनिया में किसी समय में धर्म का विज्ञान स्थापित | है? उसने कहा, राज कुछ भी नहीं है। राज वही है जो कि कार के होगा, तो उसकी आधारशिला योग बनने वाली है। क्योंकि योग टायर और टयूब में होता है। साधारण सी रबर का टयूब होता है, सिर्फ प्रक्रिया है। लेकिन हवा भर जाए एक विशेष अनुपात में, तो बड़े से बड़े ट्रक योग यह नहीं कहता कि परमात्मा क्या है। योग कहता है, | को वह लिए चला जाता है। राममूर्ति ने कहा कि मैं अपने फेफड़े परमात्मा को कैसे पाया जा सकता है। योग यह नहीं कहता कि । से वही काम ले रहा हूं, जो आप टायर और टयूब से लेते हैं। हवा आत्मा क्या है। योग कहता है, आत्मा को कैसे जाना जा सकता को एक विशेष अनुपात में रोक लेता हूं, फिर छाती से हाथी गुजर है। हाउ। योग यह नहीं कहता कि किसने प्रकृति बनाई और नहीं | जाए, वह मेरे ऊपर नहीं पड़ता, भरी हुई हवा के ऊपर पड़ता है। बनाई। योग कहता है, अस्तित्व में उतरने की सीढ़ियां ये रहीं, उतरो पर एक प्रक्रिया होगी फिर उस अभ्यास की, जिससे छाती हाथी को | 138
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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