SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-3 - में स्वर्ग का मार्ग भी देखना पड़ेगा। स्वर्ग का मार्ग कामवासना में लेकिन कीर्तन में भी कोई देखेगा कि अरे, इसमें क्या रखा है! देखते से ही, काम की वासना ऊर्ध्वगामी होकर स्वर्ग के मार्ग को कोई देखेगा कि चिल्लाने-नाचने से क्या होगा! भी लगा देती है। कल तक क्रोध में देखा था सिर्फ क्रोध, अब क्रोध | कांटे देख रहे हैं आप। फूल देखने की कोशिश करें, तो फूल में उस शक्ति को भी देखना पड़ेगा, जो क्षमा बन जाती है। क्रोध | | दिखाई पड़ने शुरू हो जाएंगे। और सिर्फ दिखाई पड़ने से नहीं दिखाई की शक्ति ही क्षमा बनती है। काम की शक्ति ही ब्रह्मचर्य बनती है। | पड़ेंगे; थोड़ा सम्मिलित हों, तो जल्दी खिलने शुरू हो जाएंगे। लोभ की शक्ति ही दान बन जाती है। तो ताली दें; उनके गीत में आवाज दें। डोलें अपनी जगह पर। देखना पड़ेगा; खोजना पड़ेगा। अब तक एक तरह से देखा था। एक पांच मिनट भूलें अपने को, खोएं। जीवन को, अब ठीक विपरीत तरह से देखना पड़ेगा। उस विपरीत तरह के देखने की क्या विधियां हैं, उनकी बात मैं संध्या करूंगा। इस सूत्र पर भी पूरी बात संध्या करेंगे। अभी इतना ही खयाल में लें कि अगर गलत का अभ्यास किया है, तो गलत को काटने का भी अभ्यास करना पड़ेगा। निश्चित ही, जब गलत कट जाता है. तो जो शेष रह जाता है | वह शुभ है। इसलिए एक अर्थ में कृष्णमूर्ति या झेन फकीर जो कहते हैं, ठीक कहते हैं। क्योंकि शुभ के पाने के लिए किसी अभ्यास की जरूरत नहीं है। लेकिन अशुभ को काटने के लिए अभ्यास की जरूरत है। इसलिए एक दृष्टि से वे बिलकुल गलत कहते हैं। फर्क समझें आप। शुभ को पाने के लिए किसी अभ्यास की जरूरत नहीं है। शुभ स्वभाव है। लेकिन अशुभ को काटने के लिए...। ऐसा समझ लें, तो ठीक होगा। मेरे हाथों में आपने जंजीरें डाल दी हैं, तो क्या मैं कहूं कि स्वतंत्रता पाने के लिए जंजीरें तोड़ने की जरूरत है? स्वतंत्रता पाने के लिए तो किसी जंजीर को तोड़ने की क्या जरूरत है! स्वतंत्रता पर कोई जंजीरें नहीं हैं। लेकिन फिर भी जंजीर तोड़नी पड़ेगी। परतंत्रता को तोड़ने के लिए जंजीर तोड़नी पड़ेगी। और जब जंजीर टूट जाएगी और परतंत्रता टूट जाएगी, तो जो शेष रह जाएगी, वह स्वतंत्रता है। स्वतंत्रता के लिए जंजीर नहीं तोड़नी पड़ती है। लेकिन परतंत्रता के लिए, परतंत्रता को तोड़ने के लिए जंजीर तोड़नी पड़ती है। शुभ तो स्वभाव है। सत्य तो स्वभाव है। धर्म तो स्वभाव है। परमात्मा तो स्वभाव है। परमात्मा को पाने के लिए कोई जरूरत नहीं है। लेकिन परमात्मा को खोने के लिए जो-जो उपाय आपने किए हैं, उन उपायों को काटने के लिए अभ्यास करना पड़ता है। वही अभ्यास योगाभ्यास है। उस संबंध में हम रात बात करेंगे। अभी तो पांच मिनट थोड़ा-सा योगाभ्यास करें। थोड़ा कीर्तन। थोड़ा कीर्तन में डूबें। 134
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy