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________________ गीता दर्शन भाग - 3 > बनाकर रखी है। और हमने अपनी एक-एक हथकड़ी की जंजीर को बहुत ही मजबूत फौलाद से ढाला है। हमने सब तरह का इंतजाम किया है कि जिंदगी में आनंद का कोई आगमन न हो सके। हमने सब द्वार- दरवाजे बंद कर रखे हैं कि रोशनी कहीं भूल-चूक से प्रवेश न कर जाए। हमने सब तरफ से अपने नरक का आयोजन कर लिया है। इस आयोजन को काटने के लिए इतने ही आयोजन की विपरीत दिशा में जरूरत पड़ती है। उसी का नाम योग अभ्यास है। योगाभ्यास की कोई जरूरत नहीं है। जैसा कि कृष्णमूर्ति कहते हैं, कोई जरूरत नहीं है योगाभ्यास की। जैसा कि झेन फकीर कहते हैं जापान में कि किसी अभ्यास की कोई जरूरत नहीं है। अगर आपने नरक की तरफ कोई यात्रा न की हो, तो कोई भी जरूरत नहीं है। लेकिन अगर आपने नरक की तरफ तो भारी अभ्यास किया हो, और सोचते हों कृष्णमूर्ति को सुनकर कि स्वर्ग की तरफ जाने के लिए किसी अभ्यास की कोई जरूरत नहीं है, तो आप अपने नरक को मजबूत करने के लिए आखिरी सील लगा रहे हैं। अशांत होने के लिए कितना अभ्यास करते हैं, कुछ पता है आपको? एक आदमी को गाली देनी होती है, तो कितना रिहर्सल करना पड़ता है, कुछ पता है आपको? कितनी दफे मन में देते हैं पहले किस-किस रस से देते हैं। किस-किस कोने से, किस-किस एंगल से सोचकर देते हैं! किस-किस भांति जहर भरकर गाली को तैयार करके देते हैं! एक आदमी को गाली देने के लिए कितने बड़े रिहर्सल से, पूर्व-अभ्यास से गुजरना पड़ता है । उस पूर्व-अभ्यास के बिना गाली भी नहीं निकल सकती है। अशांत होने के लिए कितना श्रम उठाते हैं, कभी हिसाब रखा है ? सुबह से शाम तक कितनी तरकीबें खोजते हैं कि अशांत हो जाएं! अगर किसी दिन तरकीबें न मिलें, तो खुद भी ईजाद करते हैं। मेरे रे एक मित्र हैं। उनके बेटे ने मुझे कहा कि मैं बड़ी मुसीबत में हूं। मैं कोई रास्ता ही नहीं खोज पाता कि पिता को अशांत करने से कैसे बचूं ! मैंने कहा कि वे जिन बातों से अशांत होते हों, वह मत करो। उसने कहा, यही तो मजा है कि अगर मैं ठीक कपड़े पहनकर दफ्तर पहुंच जाऊं, तो वे कहते हैं, अच्छा! तो कोई फिल्म स्टार हो गए आप? अगर ठीक कपड़े पहनकर न पहुंचूं, तो वे कहते हैं, क्या मैं मर गया? जब मैं मर जाऊं, तब इस शक्ल में घूमना ! अभी मेरे रहते तो मजा कर लो। वह बेटा मुझसे पूछने आया कि मैं क्या करूं, जिससे पिता अशांत न हों ? क्योंकि मैं कुछ भी करूं, वे तरकीब खोज ही लेते हैं। ऐसा कोई काम मैं नहीं कर पाया, जिसमें उन्होंने तरकीब न खोज ली हो। वह सोचकर विपरीत करता हूं, उसमें भी निकाल लेते हैं। अच्छे कपड़े पहनता हूं, तो कहते हैं, अच्छा, फिल्म स्टार हो गए! क्या इरादे हैं ? हीरो बन गए? न पहनकर ठीक कपड़ा पहुंचूं, तो कहते हैं, यह तो मैं जब मर जाऊं, तब इस शक्ल में घूमना । अभी तो मैं जिंदा हूं; अभी तो मजे करो, गुलछर्रे कर | तो मैं क्या करूं? मैंने कहा, एकाध दफा दिगंबर पहुंचकर देखा कि नहीं देखा ! और तो कोई तीसरा रास्ता ही नहीं बचता ! दिगंबर पहुंचकर देख। उसने | कहा कि आप भी क्या कह रहे हैं! बिलकुल मेरी गर्दन काट देंगे! हम सब ऐसा खोजते रहते हैं, खूंटियां खोजते रहते हैं। खूंटियां खोजते रहते हैं! खूंटियां न मिलें, तो अपनी कीलें भी गाड़ लेते हैं। अशांत होने के लिए भारी अभ्यास चल रहा है। बड़ी योग-साधना करते हैं हम अशांत होने के लिए, क्रोधित होने के लिए, परेशान होने के लिए! कुछ ऐसा लगता है कि अगर आज परेशान न हुए, तो जैसे दिन बेकार गया। कई दफे ऐसा होता भी है। क्योंकि परेशानी से हमको पता चलता है कि हम भी हैं । नहीं तो और तो कोई पता चलने का कारण नहीं है। तो बड़ी-बड़ी परेशानियां करके दिखलाते रहते हैं। भारी | परेशानियां हैं। उससे पता चलता है कि हम भी कोई हैं, समबडी ! क्योंकि जितना बड़ा आदमी हो, उतनी बड़ी परेशानियां होती हैं ! तो हर छोटा-मोटा आदमी भी छोटी-मोटी परेशानियों को मैग्नीफाई करता रहता है। बड़ी करके खड़ा कर लेता है। उनके बीच में खड़ा | रहता है। यह सब अभ्यास चलता है। बिना अभ्यास के यह भी नहीं हो सकता। यह भी सब अभ्यास का फल है। तो कृष्ण जब अर्जुन से कहते हैं कि योगाभ्यास से शांत हुआ चित्त, तो इससे विपरीत अभ्यास करना पड़ेगा । विपरीत अभ्यास का क्या अर्थ है ? विपरीत अभ्यास का अर्थ है कि अब तक हम निगेटिव इमोशंस के लिए, नकारात्मक भावनाओं के लिए कारण खोज रहे हैं चौबीस घंटे; योगाभ्यास का अर्थ है, पाजिटिव इमोशंस के लिए चौबीस घंटे कारण खोजने में जो लगा है। और जिंदगी में दोनों मौजूद हैं। खड़े हो जाएं गुलाब के फूल के किनारे । वह जो अभ्यासी है अशांति का, वह कहेगा, व्यर्थ है, | बेकार है सब | कांटे ही कांटे हैं, एकाध फूल खिलता है कभी। वह जो योगाभ्यासी है, वह जो पाजिटिव को, विधायक को खोजने 132
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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