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________________ < गीता दर्शन भाग-3 वे थोड़े हैरान हुए। उन्होंने कहा, क्या मतलब? मैंने कहा, थोड़ा | छाती पीटकर रो रहा है। यह असंतुलन है जीवन का। बैलेंसिंग हो जाता। मैंने उनसे पूछा, सच बताओ मुझे, पत्नी के | ___ अगर इसने पिता की सम्यक सेवा कर ली होती! यह तो पक्का मरने से रो रहे हो या बात कुछ और है? क्योंकि बातें अक्सर और ही है कि पिता जाएगा। मौत से कोई बचेगा? वह जाने वाला है। होती हैं, बहाने और होते हैं। आदमी की बेईमानी का कोई अंत नहीं | अगर इसने थोड़ा खयाल रखा होता कि पिता जाने ही वाला है, है। उन्होंने कहा, क्या मतलब आपका? मेरी पत्नी मर गई और जाएगा ही; थोड़ी सेवा कर ली होती, थोड़ा प्रेम दिया होता, थोड़ा आप कहते हैं, बहाने और बेईमानी। यहां बहाने! मेरी पत्नी मर गई सम्मान किया होता—यह तो पता ही है कि वह जाएगा ही—इसने है, मैं दुखी हूं। मैंने कहा, मैं मानता हूं कि तुम दुखी हो। लेकिन मैं | अगर सम्यक चेष्टा कर ली होती जो जाने वाले व्यक्ति के साथ कर फिर से तुमसे पूछता हूं कि तुम सोचकर मुझे दो-चार दिन बाद | लेनी है, तो शायद पीछे यह घाव इस भांति का न लगता। यह घाव बताना कि सच में रोने का यही कारण है कि पत्नी मर गई है? दूसरे अर्थ में लग रहा है। यह न किया हुआ जो छूट गया है, और चार दिन बाद वे लौटे और उन्होंने कहा कि शायद आप ठीक | जिसके करने का अब कोई उपाय नहीं रह गया, यह उसकी पीड़ा कहते हैं। भीतर झांका, तो मुझे खयाल आया कि जितनी मुझे है, जो जिंदगीभर सालेगी, कांटे की तरह चुभती रहेगी। उसकी सेवा करनी चाहिए थी, वह मैंने नहीं की। जितना मुझे उस सम्यक कर्मों में! कर्मों में सम्यक चेष्टा का अर्थ है, समस्त पर ध्यान देना चाहिए था, वह भी मैंने नहीं दिया। सच तो यह है | कर्मों में जो किया जाने योग्य है, वह जरूर करना चाहिए। जितनी कि जितना प्रेम सहज उसके प्रति मझमें होना चाहिए था. वह भी मैं| शक्ति से किया जाने योग्य है, उतनी शक्ति लगानी चाहिए: न नहीं दे पाया। उस सब की पीड़ा है कि अब! अब माफी मांगने का | कम, न ज्यादा। भी कोई उपाय नहीं रहा। निर्णय कौन करेगा कि कितनी लगाई जानी चाहिए? आपके ध्यान रहे, अगर आपने किसी व्यक्ति को पूरा प्रेम कर लिया है, | | अतिरिक्त कोई निर्णय नहीं कर सकता है। आप ही सोचें। और बड़ा जितना संभव था, जो सम्यक था; पूरी सेवा कर ली है, जो सम्यक अनुभव होगा, अदभुत अनुभव होगा। जिस काम में आप संयत थी; सब ध्यान दिया, जो सम्यक था; तो मृत्यु के बाद जो दुख चेष्टा कर पाएंगे, उस काम के बाद आप बिलकुल निर्भार हो होगा, वह दुख बहुत भिन्न प्रकार का होगा। और वह दुख आपको | जाएंगे, मुक्त हो जाएंगे। काम कर लिया, बात समाप्त हो गई। तोड़ेगा नहीं, मांजेगा। वह पीड़ा आपको निखारेगी, नष्ट नहीं | अगर आप दफ्तर में पूरे पांच घंटे ठीक श्रम कर लिए हैं, करेगी। वह पीड़ा आपके जीवन में कुछ अनुभव और ज्ञान दे सम्यक, तो दफ्तर आपकी खोपड़ी में घर नहीं आएगा। नहीं तो घर जाएगी, सिर्फ जंग नहीं लगा जाएगी। क्योंकि जो हो सकता था, आएगा; आएगा ही; सस्पेंडेड; लटका रहेगा खोपड़ी पर। क्योंकि सम्यक था, जो ठीक था, वह कर लिया गया था। जो मेरे हाथ में | दफ्तर में तो बैठकर विश्राम किया! था, वह हो गया था। फिर शेष तो सदा परमात्मा के हाथ में है। | मैंने सुना है कि एक दिन दफ्तर के मैनेजर को उसके मालिक लेकिन हममें से कोई भी सम्यक कभी नहीं कर पाता। न पति ने...। अचानक मालिक अंदर आ गया। आने का वक्त नहीं था, पत्नी के लिए, न पत्नी पति के लिए। न बेटे बाप के लिए, न बाप नहीं तो मैनेजर तैयार रहता। वह अपने पैर फैलाए हुए कुर्सी पर सो बेटे के लिए। सब असम्यक होता है। जिस दिन छूट जाता है कोई, रहा था! घबड़ाकर चौंका। क्षमायाचना की और कहा कि माफ करें, उस दिन भारी पीड़ा का वज्राघात होता है। उस दिन लगता है कि कल रात घर नहीं सो पाया। तो मालिक ने कहा, अच्छा, तो तुम अब! अब तो कोई उपाय न रहा। अब तो कोई उपाय न रहा। | घर भी सोते हो! यह हम सोच भी नहीं सकते थे। घर भी सोते हो? इसलिए जो बेटे बाप के मरने की प्रतीक्षा करते हैं, वे भी बाप | यह हम सोच ही नहीं सकते थे, क्योंकि दिनभर तो यहां सोते हो। के मरने पर छाती पीटकर रोते हैं। जो बेटे न मालूम कितनी दफे तो घर सोते होगे, इसका हमें खयाल ही नहीं आया! सोच लेते हैं कि अब यह बूढ़ा चला ही जाए, तो बेहतर। न मालूम | अब यह आदमी जो दफ्तर में बेईमानी कर रहा है, दफ्तर इसके कितनी दफे! मन ऐसा है। मन ऐसा सोचता रहता है। हालांकि आप साथ बदला लेगा। वह घर चला जाएगा। यह घर से बेईमानी करके झिड़क देते हैं अपने मन को, कि कैसी गलत बात सोचते हो! ठीक | | दफ्तर चला आया है, घर दफ्तर चला आएगा। नहीं है यह। लेकिन मन फिर भी सोचता रहता है। फिर यह बेटा | जिस कर्म को आपने पूरा नहीं कर लिया है, सम्यक नहीं कर |1300
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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