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गीता दर्शन भाग-28
प्रश्नः भगवान श्री, कल के तेरहवें श्लोक की व्याख्या आकाश में बिजली चमकती है। यह वाक्य बिलकुल ही गलत है। में आपने चार वर्णों की बात कही। कृष्ण इस श्लोक अस्तित्व की दृष्टि से बिलकुल ही गलत है। इसमें ऐसा लगता है, के दूसरे हिस्से में कहते हैं कि इन चारों वर्षों की गुण | बिजली कुछ और है और चमकना कुछ और है। बिजली चमकती
और कर्मों के अनुसार रचना करते हुए भी मैं अकर्ता है। सच बात इतनी है कि चमकने का नाम बिजली है। इसमें ही रहता हूं।
चमकने वाला और, और चमकने की क्रिया और-ऐसी भ्रांति पैदा कृपया इसे स्पष्ट करें कि वे कैसे अकर्ता रहे? | होती है वाक्य से। बिजली चमकती है, ऐसा ठीक नहीं है। चमकता
है जो, उसका नाम बिजली है। चमकना बिजली है। .
हम कहते हैं, वर्षा बरसती है। एकदम ही गलत बात कहते हैं। करते हुए भी मैं अकर्ता हूं, कृष्ण का ऐसा वचन गहरे में वर्षा का मतलब है, जो बरस रही है। अब वर्षा बरसती है, यह पा समझने योग्य है। पहली बात, कर्म से कर्ता का भाव | .रिपीटीशन है, यह पुनरुक्ति है; यह व्यर्थ ही हम कह रहे हैं।
पैदा नहीं होता। कर्म अपने आप में कर्ता का भाव पैदा | ___ अगर हम किसी भी क्रिया के भीतर प्रवेश करें, तो हम कर्ता को करने वाला नहीं है। कर्ता का भाव भीतर मौजूद हो, तो कर्ता का कभी न पाएंगे; सिर्फ क्रिया ही मिलेगी। भीतर कौन मिलेगा भाव कर्म के ऊपर सवार हो जाता है। भीतर अहंकार हो, तो कर्म | लेकिन ? भीतर जरूर कोई है। वह कर्ता नहीं है. द्रष्टा है. साक्षी है। पर सवारी कर लेता है। ऐसे, कर्म अपने आप में, कर्ता के भाव का | | समस्त क्रियाओं के भीतर द्रष्टा है, साक्षी है। जन्मदाता नहीं है।
आपके पेट में भूख मालूम होती है। आप कहते हैं, मुझे भूख तो कृष्ण की बात तो छोड़ें एक क्षण को, हम भी चाहें, तो कर्म लगी है। जैसे कि आप भूख को लगा रहे हैं; जैसे कि आप कर्ता करते हए अकर्ता हो सकते हैं। कर्म ही कर्ता का निर्माता नहीं है। हैं! सचाई उलटी है। सचाई इतनी ही है कि आपको पता चलता कर्ता का निर्माता अहंकार का भाव है। और अहंकार का भाव इतना कि भख लगी है। आपको भख नहीं लगती। भख की क्रिया घट अदभुत है कि आप कुछ न करें, तो भी कुछ न करने का कर्ता भी रही है; आप सिर्फ जानते हैं कि भूख लगी है। अगर ठीक से हम बन जाता है।
कहें, तो कहना चाहिए कि मैं जान रहा हूं कि भूख लगी है। ऐसा' आप रास्ते पर चल रहे हैं; चलने की क्रिया घटित होती है। अगर नहीं कहना चाहिए, मुझे भूख लगी है। इस चलने के कर्म को बहुत गौर से देखें, तो आप भीतर कहीं भी | आपके सिर में दर्द है, तो भी आप में दर्द नहीं है; आप सिर्फ चलने वाले को न पाएंगे. सिर्फ चलने की क्रिया ही मिलेगी। कितना जान रहे हैं कि सिर में दर्द है। और जब आपको दर्द के मिटाने वाली ही खोजें, चलने वाला कहीं न मिलेगा। क्योंकि भीतर जो मौजूद | दवा दे दी जाती है, एस्पिरिन दे दी जाती है, तो आप यह मत सोचना है, वह चलता ही नहीं है। क्रिया चलने की बाहर ही होती है; भीतर | कि दर्द मिट गया। दर्द अपनी जगह है। लेकिन दर्द का जानने वाले चलने वाला कोई भी नहीं है। भीतर तो जो है, वह अचल है, चलता | तक पहुंचने का रास्ता टूट गया। अब आप जान नहीं रहे कि दर्द हो ही नहीं। कभी चला ही नहीं। आप हजारों मील की यात्रा कर चुके रहा है। जान नहीं रहे हैं, इसलिए अब आप कहते हैं कि अब सिर हों, तो भी भीतर जो है, वह अपनी ही जगह है। वह इंचभर भी नहीं | में दर्द नहीं हो रहा है। चला है। लेकिन अहंकार का भाव चलने की क्रिया पर सवार हो पिछले महायुद्ध में ऐसा हुआ कि फ्रांस में एक सैनिक के पैर में जाता है और कहता है, मैं चलता हूं।
बहुत चोट लगी। वह बेहोश हो गया। चोट ऐसी थी कि पैर बचाया रास्ते पर चलते वक्त गौर से देखना, चलने वाला कहीं भी नहीं जा सका। रात बेहोशी में ही घुटने से नीचे का हिस्सा काट मिलता है खोजने से? चलने की क्रिया है; सच। चलने वाला कहीं दिया गया। अंगूठे में बहुत तकलीफ थी, जब वह होश में था। भी नहीं है। लेकिन हमारी भाषा में कुछ बुनियादी भूलें हमारे सुबह जब वापस होश में आया, तो उसने कहा कि मेरे अंगूठे में अहंकार के कारण प्रवेश कर गई हैं। हमें ऐसा लगता है कि जब | | बहुत तकलीफ है। पर अंगूठा तो अब था ही नहीं! पास की नर्स ने चलने की क्रिया है, तो चलने वाला भी होना ही चाहिए। कहा, आप जरा फिर से सोचें। अंगूठे में तकलीफ है? मजाक में यह करीब-करीब बात वैसी ही है, जैसे हम कहते हैं कि ही कहा। उसने कहा, बहुत तकलीफ है।