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गीता दर्शन भाग-2
ध्यान कर सकता है। इस चक्र पर ध्यान करने से क्या होगा ? एक बात और खयाल में ले लें, तो समझ में आ सकेगी।
आपके घर में आग लग गई हो। अभी कोई खबर देने आ जाए कि घर में आग लग गई। आप भागेंगे। रास्ते पर कोई नमस्कार करेगा, आपकी आंख बराबर देखेगी; फिर भी, फिर भी आप नहीं देख पाएंगे । और कल वह आदमी मिलेगा और कहेगा कि कल क्या हो गया था; बदहवास भागे जाते थे! नमस्कार की, उत्तर भी न दिया! आप कहेंगे, मुझे कुछ होश नहीं। मैं देख नहीं पाया। वह आदमी कहेगा, आंख आपकी बिलकुल मुझे देख रही थी । मैं बिलकुल आंख के सामने था । आप कहेंगे, जरूर आप आंख के सामने रहे होंगे। लेकिन मेरा ध्यान आंख पर नहीं था ।
शरीर की भी वही इंद्रिय काम करती है, जिस पर ध्यान हो, नहीं तो काम नहीं करती। शरीर की इंद्रियों को भी सक्रिय करना हो, तो ध्यान से ही सक्रिय होती हैं वे, अन्यथा सक्रिय नहीं होतीं। आंख तभी देखती है, जब भीतर ध्यान आंख से जुड़ता है, अटेंशन आंख से जुड़ती है। कान तभी सुनते हैं, जब ध्यान कान से जुड़ता है शरीर की इंद्रियां भी ध्यान के बिना चेतना तक खबर नहीं पहुंचा पातीं। ठीक ऐसे ही भीतर के जो सात चक्र हैं, वे भी तभी सक्रिय होते हैं, जब ध्यान उनसे जुड़ता है।
संकल्प का चक्र है आज्ञा। अर्जुन से वे कह रहे हैं, तू उस पर ध्यान कर। कर्मयोगी के लिए वही उचित है। कर्म का चक्र है वह, विराट ऊर्जा का, उस पर तू ध्यान कर। लेकिन ध्यान तभी घटित होगा, जब बाहर आती श्वास और भीतर जाती श्वास सम स्थिति में हों ।
आपको खयाल में नहीं होगा कि सम स्थिति कब होती है। आपको पता होता है कि श्वास भीतर गई, तो आपको पता होता है। श्वास बाहर गई, तो आपको पता होता है। लेकिन एक क्षण ऐसा आता है, जब श्वास भीतर होती है, बाहर नहीं जा रही - एक गैप का क्षण । एक क्षण ऐसा भी होता है, जब श्वास बाहर चली गई और अभी भीतर नहीं आ रही; एक छोटा-सा अंतराल । उस अंतराल में चेतना बिलकुल ठहरी हुई होती है। उसी अंतराल अगर ध्यान ठीक से किया गया, तो आज्ञा चक्र शुरू हो जाता है, सक्रिय हो जाता है।
और जब ऊर्जा आज्ञा चक्र को सक्रिय कर दे, तो आज्ञा चक्र की हालत वैसी हो जाती है, जैसे कभी आपने सूर्यमुखी के फूल देखे हों सुबह; सूरज नहीं निकला, ऐसे लटके रहते हैं जमीन की
तरफ – उदास, मुर्झाए हुए, पंखुड़ियां बंद, जमीन की तरफ लटके हुए। फिर सूर्य निकला और सूर्यमुखी का फूल उठना शुरू हुआ, खिलना शुरू हुआ, पंखुड़ियां फैलने लगीं, मुस्कुराहट छा गई, नृत्य फूल पर आ गया। रौनक, ताजगी । फूल जैसे जिंदा हो गया; उठकर खड़ा हो गया।
जिस चक्र पर ध्यान नहीं है, वह चक्र उलटे फूल की तरह मुर्झाया हुआ पड़ा रहता है। जैसे ही ध्यान जाता है, जैसे सूर्य ने फूल पर चमत्कार किया हो, ऐसे ही ध्यान की किरणें चक्र के फूल को ऊपर 'उठा देती हैं। और एक बार किसी चक्र का फूल ऊपर उठ जाए, तो आपके जीवन में एक नई इंद्रिय सक्रिय हो गई। आपने भीतर की दुनिया से संबंध जोड़ना शुरू कर दिया।
अलग-अलग तरह के व्यक्तियों को अलग-अलग चक्रों से भीतर जाने में आसानी होगी। अब जैसे कि साधारणतः सौ में से नब्बे स्त्रियां इस सूत्र को मानें, तो कठिनाई में पड़ जाएंगी। स्त्रियों के लिए उचित होगा कि वे भ्रू-मध्य पर कभी ध्यान न करें। हृदय पर ध्यान करें, नाभि पर ध्यान करें। स्त्री का व्यक्तित्व नान-एग्रेसिव है; रिसेप्टिव है; ग्राहक है; आक्रामक नहीं है।
जिनका व्यक्तित्व बहुत आक्रामक है, वे ही; जैसा कि मैंने कहा, क्षत्रिय के लिए कृष्ण ने कहा, आज्ञा चक्र पर ध्यान करे। सभी पुरुषों के लिए भी उचित नहीं होगा कि आज्ञा चक्र पर ध्यान करें। जिसका व्यक्तित्व पाजिटिवली एग्रेसिव है, जिसको पक्का पता है कि आक्रमणशील उसका व्यक्तित्व है, वही आज्ञा चक्र पर प्रयोग | करे, तो उसकी ऊर्जा तत्काल अंतस-लोक से संबंधित हो जाएगी।
जिसको लगता हो, उसका व्यक्तित्व रिसेप्टिव है, ग्राहक है, आक्रामक नहीं है, वह किसी चीज को अपने में समा सकता है, हमला नहीं कर सकता — जैसे कि स्त्रियां । स्त्री का पूरा | बायोलाजिकल, पूरा जैविक व्यक्तित्व ग्राहक है । उसे गर्भ ग्रहण | करना है। उसे चुपचाप कोई चीज अपने में समाकर और बड़ी करनी है।
इसलिए अगर कोई स्त्री आज्ञा चक्र पर प्रयोग करे, तो दो में से एक घटना घटेगी। या तो वह सफल नहीं होगी; परेशान होगी । और अगर सफल हो गई, तो उसकी स्त्रैणता कम होने लगेगी। वह नान - रिसेप्टिव हो जाएगी। उसका प्रेम क्षीण होने लगेगा और उसमें पुरुषगत वृत्तियां प्रकट होने लगेंगी। अगर बहुत तीव्रता से उस पर प्रयोग किया जाए, तो यह भी पूरी संभावना है कि उसमें पुरुष के लक्षण आने शुरू हो जाएं।
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