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तीन सूत्र-आत्म-ज्ञान के लिए *
निर्मलता में, उस ज्योति के दर्पण में ही प्रभु की छवि पकड़ी जाती | होता है। आंखें और चौंधिया गई होती हैं। है, वही कृष्ण इस सूत्र में कहे हैं।
बहुत बार परमात्मा की एक झलक मिल जाती है, लेकिन झलक से तदरूपता नहीं होती है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, जो तदरूप हो
गया! ऐसा नहीं कि परमात्मा को जान लिया, बल्कि ऐसा कि जो तबुद्धयस्तदात्मानस्तनिष्ठास्तत्परायणाः। | परमात्मा हो गया। ऐसा नहीं है कि दूर से एक झलक ले ली, बल्कि गच्छन्त्यपुनरावृत्ति ज्ञाननि—तकल्मषाः ।। १७ ।। | ऐसा कि अब कोई फासला न बचा। अब वही हो गए, उसी के साथ और हे अर्जुन, तद्प है बुद्धि जिनकी तथा तद्प है मन | एक हो गए। तब पुनरागमन नहीं है। फिर पुनरावर्तन नहीं होता। जिनका और उस सच्चिदानंदघन परमात्मा में ही निरंतर | | फिर लौटना नहीं होता। एकीभाव से स्थिति है जिनकी, ऐसे तत्परायण पुरुष ज्ञान के साधक को बहुत बार झलक मिल जाती है! और झलक से द्वारा पापरहित हुए अपुनरावृत्ति को अर्थात परमगति को सावधान रहने की जरूरत है, कि जो झलक को तदरूपता समझ प्राप्त होते हैं।
| लेगा, उसकी जिंदगी और गहन अंधकार में पड़ सकती है। । झलक और तदरूपता में क्या फर्क है? झलक में आप मौजद
होते हैं, और परमात्मा का अनुभव होता है। तदरूपता में आप मिट निकी वृत्ति, जिनकी चेतना परमात्मा से तदरूप हो गई, जाते हैं, और परमात्मा का अनुभव होता है। तदरूपता में परमात्मा I एक हो गई, तादात्म्य को पा गई है; जिनकी अपनी | ही होता है, आप नहीं होते। झलक में आप होते हैं, परमात्मा
छोटी-सी ज्योति परमात्मा के परम सूर्य के साथ एक | क्षणभर को दिखाई पड़ता है। यह क्षणभर को दिखाई कभी-कभी हो गई, एकतान हो गई है; जिनका अपना छोटा-सा वीणा का स्वर अनायास भी पड़ जाता है। अनायास! उसके परम नाद के साथ संयुक्त हो गया है-ऐसे पुरुष वापस नहीं ___ एडमंड बर्क ने लिखा है कि गुजर रहा था एक रास्ते से और बस लौटते हैं; उनका पुनरागमन नहीं होता है। ऐसे पुरुष प्वाइंट आफ | | अचानक-न कोई साधना, न कोई उपाय, न कोई प्रयास, बस नो रिटर्न, उस जगह पहुंच जाते हैं, जहां से वापसी नहीं है, जहां से | अचानक–अचानक लगा कि चारों तरफ प्रकाश हो गया है। यह पीछे नहीं गिरना पड़ता है, जहां से वापस अंधकार में और अज्ञान | | भी अचानक नहीं है। बर्क को लगा, अचानक हो गया है। यह भी में नहीं डूब जाना पड़ता है।
पिछले जन्मों की चेष्टाओं का कहीं कोई छिपा हुआ कण है, जो इसमें दो-तीन बातें खयाल में ले लेनी चाहिए।
भभक उठा किसी संगत स्थिति को पाकर। एक तो, परमात्मा की झलक मिल जाती है बहुत बार, लेकिन कभी-कभी हिमालय की ऊंचाई पर गए हुए साधक को तदरूपता नहीं मिलती। परमात्मा की झलक मिल जाती है बहुत | अचानक...। इसलिए हिमालय का इतना आकर्षण पैदा हो गया। बार, लेकिन परमात्मा से एकता नहीं सधती। झलक ऐसी मिल उसका कारण है। हिमालय के शुभ्र, श्वेत शिखर दूर तक फैले हुए जाती है कि जैसे कोई व्यक्ति जमीन से छलांग लगाए, तो एक क्षण | हैं। किसी क्षण में सूर्य की चमकती हुई किरणों में स्वर्ण हो जाते हैं। को जमीन के ग्रेविटेशन के बाहर हो जाता है, एक क्षण को जमीन लोग छूट गए दूर। समाज छूट गया दूर। जमीन का गोरखधंधा, की कशिश के बाहर हो जाता है। लेकिन क्षणभर को! हो भी नहीं | दिन-रात की बातचीत. दिन-रात की दनिया. दैनंदिन व्यवहार छट पाता कि वापस जमीन उसे अपने पास बुला लेती है। फिर लौट | गया दूर। शीतल है सब। ठंडा है सब। क्रोधित हो सकें, इतना भी आता है।
शरीर गर्म नहीं। रक्तचाप नीचे आ गया। चारों तरफ फैले हुए शुभ्र जैसे रात अंधेरे में बिजली कौंध जाए। अमावस की रात हो, | | शिखर, सूर्य की चमकती हुई किरणों में स्वर्ण हो गए हैं। उस क्षण भादों की रात हो, अंधेरा हो–बिजली कौंध जाए। एक क्षण को | | में कभी मन उस दशा में आ जाता है, प्राकृतिक कारण से ही, कि झलक में सब दिखाई पड़ जाता है; और दिखाई भी नहीं पड़ा कि | | एक क्षण को ऐसा लगता है, चारों ओर परमात्मा है। घनघोर अंधकार छा जाता है। और ध्यान रहे, बिजली के बाद जब | लेकिन इस झलक को तादात्म्य नहीं कहा जा सकता। और यह अंधकार छाता है, तो बिजली के पहले वाले अंधकार से ज्यादा घना | | झलक और-और उपायों से भी मिल सकती है। लेकिन झलक सदा
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