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________________ गीता दर्शन भाग-2 ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः । अस्तित्व तो प्रकाश का है। या प्रकाश का अस्तित्व नहीं है। जहां तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ।। १६ ।। | प्रकाश नहीं है, वहां अंधेरा मालूम पड़ता है। अंधेरा कोई वस्तु नहीं परंतु जिनका वह अंतःकरण का अज्ञान, आत्मज्ञान द्वारा है। अंधेरे में कोई थिंगहड, कोई वस्तुगत पदार्थ अंधेरे में नहीं है। नाश हो गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस | फिर भी अंधेरा है तो। सच्चिदानंदघन परमात्मा को प्रकाशता है। ठीक ऐसे ही आत्म-ज्ञान है। और आत्म-अज्ञान का कोई अस्तित्व नहीं है। लेकिन फिर भी आत्म-अज्ञान से हम भरे हुए हैं। और आत्म-अज्ञान में चिंतित हैं, पीड़ित हैं, परेशान हैं, दुखी हैं, गत एक रहस्य है। रहस्य इसलिए कि इस जगत में | | नर्क भोग रहे हैं। जब कि आत्म-अज्ञान का वैसा ही कोई अस्तित्व UI अंधकार, जो कि नहीं है. प्रकाश को ढंक लेता है. जो | नहीं है, जैसे अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं है। कि है। इस जगत में मृत्यु, जो कि नहीं है, जीवन को | आत्मा स्वयं ज्ञान है, इसलिए आत्म-अज्ञान का कोई अस्तित्व धोखा दे देती है, कि है। | हो नहीं सकता। आत्मा ही ज्ञान है। ज्ञान आत्मा का आंतरिक जीवन है, और मृत्यु नहीं है। प्रकाश है, और अंधकार नहीं है। | स्वभाव है। इसलिए आत्मा बिना ज्ञान के कभी हो नहीं सकती। फिर भी, अंधकार प्रकाश को ढंके हुए मालूम पड़ता है। फिर भी | और अगर आत्मा बिना ज्ञान के होगी, तो पदार्थ में और आत्मा में रोज-रोज जीवन मरता हुआ दिखाई पड़ता है। इसलिए कहता हूं, | फर्क क्या होगा? आत्मा का अर्थ ही यह है कि जो ज्ञान है। आत्मा जीवन एक रहस्य, एक मिस्ट्री है। और उस रहस्य का मूल इसी | कभी भी ज्ञान के बिना नहीं हो सकती। ज्ञान और आत्मा पर्यायवाची पहेली में है। हैं, सिनानिम। एक ही मतलब है दोनों बात का। रोज देखते हैं अंधेरे को आप। कभी सोचा भी नहीं होगा कि | फिर आत्म-अज्ञान का क्या मतलब होगा? ये शब्द तो विरोधी अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं है। अंधेरा एक्झिस्टेंशियल नहीं है। | हैं! आत्म-अज्ञान हो ही नहीं सकता। जहां आत्मा है, वहां अज्ञान फिर भी होता है। रास्ता भटक जाते हैं अंधेरे में। गड्ढे में गिर सकते | कैसे होगा? क्योंकि आत्मा ज्ञान है। लेकिन फिर भी आत्म-अज्ञान हैं अंधेरे में। चोर लूट ले सकते हैं अंधेरे में। छुरा भोंका जा सकता है। क्या, हुआ क्या है? जो ज्ञान है आत्मा, वह किस चीज से ढंक है अंधेरे में। अंधेरे में सब कुछ हो सकता है और अंधेरा नहीं है! गई है? टकरा सकते हैं, सिर फूट सकता है और अंधेरा नहीं है। पर | कृष्ण कहते हैं, संसार माया से ढंका; आत्मा आत्म-अज्ञान से अंधेरे में यह सब हो सकता है। ढंकी; ज्ञान अविद्या से ढंका। जब मैं कहता हूं, अंधेरा नहीं है, तो थोड़ा ठीक से समझ लें। क्या इसका अर्थ है? क्या समझें इससे? प्रकाश तो है, इसलिए प्रकाश को बुझा सकते हैं, जला सकते हैं। । इससे सिर्फ एक बात समझ लेने जैसी है। आत्मा तो ज्ञान है, लेकिन अंधेरे को बुझा भी नहीं सकते, जला भी नहीं सकते। चाहें| | लेकिन ज्ञान यदि चाहे तो सो सकता है; ज्ञान यदि चाहे तो जाग कि दुश्मन के घर पर अंधेरा फेंक दें, तो फेंक भी नहीं सकते। कभी | | सकता है। सोया हुआ ज्ञान भी ज्ञान है; जागा हुआ ज्ञान भी ज्ञान आपने सोचा है कि अंधेरे के साथ कुछ भी करना संभव नहीं है! | | है। लेकिन सोए हुए ज्ञान के चारों तरफ अज्ञान इकट्ठा हो जाता है। और जब रात आप चाहते हैं कि कमरे में अंधेरा भर जाए, तो | | सोया हुआ ज्ञान ऐसे है, जैसे कि आपके खीसे में लाइटर पड़ा हुआ आप अंधेरे को नहीं बुलाते, केवल प्रकाश को बुझाते हैं। प्रकाश | है अनजला; जलने की पूरी क्षमता लिए हुए है। माचिस की काड़ी बुझा नहीं कि अंधेरा है। और जब सुबह आप अंधेरे को अलग रखी है अनजली, प्रज्वलित होने को किसी भी क्षण तत्पर। आग करना चाहते हैं, या रात अंधेरे को अलग करना चाहते हैं, तो अंधेरे | | छिपी है, सोई है। चारों तरफ अंधेरा है, माचिस रखी है। चारों तरफ को धक्का नहीं देते, प्रकाश को जलाते हैं। और प्रकाश जला कि अंधेरा है। माचिस से कोई रोशनी निकलती नहीं है। लेकिन माचिस अंधेरा नहीं है। से रोशनी निकल सकती है। और जब निकलती है, तब अंधेरा ट अंधेरा सिर्फ प्रकाश की अनुपस्थिति है, गैर-मौजूदगी है, जाता है। और जब निकलती है, तो इसका यह मतलब नहीं कि एब्सेंस है। अंधेरे का अपना कोई विधायक अस्तित्व नहीं है। आसमान से आ गई। माचिस में थी, तो ही निकली, अन्यथा 372
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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