SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Gमाया अर्थात सम्मोहन ॐ छूट जाता है। हमारा भरोसा शरीर पर है। तुम मुझे छुरा भी मारोगे, तो भी शरीर इतना बड़ा विराट अस्तित्व चल रहा है बिना कर्ता के, तो मेरी | अपना काम जो करता है, कर लेगा। चांटा मारोगे, तो मेरे गाल पर छोटी-सी गृहस्थी बिना कर्ता के नहीं चल पाएगी? इतने चांद-तारे | हाथ का निशान बन जाएगा। शरीर अपना काम बर्त लेगा। अगर यात्राएं कर रहे हैं बिना कर्ता के! रोज सुबह सूरज उग आता है। हर | मेरे भीतर खयाल हो कि मुझे मारा गया, तो उपद्रव भीतर तक प्रवेश वर्ष वसंत आ जाता है। अरबों-खरबों वर्षों से पृथ्वियां घूमती हैं, | कर जाएगा। अन्यथा मैं देखूगा कि मेरे शरीर को मारा गया। शरीर निर्मित होती हैं, मिटती हैं। अनंत तारों का जाल चलता रहता है। को मारा गया; शरीर को जो करना है, वह अपना कर लेगा। बिना किसी कर्ता के इतना सब चल रहा है। लेकिन मैं कहता हूं, और हैरानी की बात है कि शरीर चुपचाप अपने नियम में बर्तकर मेरी दुकान बिना कर्ता के कैसे चलेगी! अपनी जगह वापस लौट जाता है। प्रकृति बड़ी शांति से अपना काम जो व्यक्ति इस मूल आधार को समझ लेता है कि इतना विराट | कर लेती है। उसके हाथ का निशान बन गया था, थोड़ी देर बाद अस्तित्व चलता चला जा रहा है. तो मेरे क्षद्र कामों में मैं नाहक ही मैंने देखा, वह खो गया; शरीर उसे पी गया। लेकिन अगर मैं कर्ता कर्ता को पकड़कर बैठा हुआ हूं। इतना विराट चल सकता है कर्ता बन जाऊं, मुझे मारा गया या मैं मारूं या उत्तर दूं या कुछ करूं, तो से मुक्त होकर, तो मैं भी चल सकता हूं। जिस व्यक्ति को यह | फिर उपद्रव शुरू हुआ। लेकिन हमारी पकड़ शरीर की भाषा से, स्मरण आ गया, वह संन्यासी है। जिस व्यक्ति को यह स्मरण आ प्रकृति की भाषा से ऊपर नहीं उठती। गया कि इतना विराट चलता है बिना कर्ता के, तो अब मैं भी बिना अगर मुझे मजाक करना होता, तो एक चांटा मैं भी उसे मार कर्ता के चलता हूं। उलूंगा सुबह, दुकान पर जाकर बैठ जाऊंगा। सकता था। मजाक करना होता! लेकिन गरीब नासमझ औरत, काम कर लूंगा। भूख लगेगी, खाना खा लूंगा। नींद आएगी, सो | उसके साथ मजाक करनी ठीक भी नहीं। लेकिन हम भाषा कौन-सी जाऊंगा। लेकिन अब मैं कर्ता नहीं रहूंगा। प्रकृति करेगी, मैं देखता समझते हैं! रहूंगा। बाधा भी नहीं डालूंगा। क्योंकि जो बाधा डालेगा, वह भी जब वह चली गई, तो मुझे खयाल आया। एक फकीर हुआ, कर्ता हो जाएगा। | नसरुद्दीन। उसके पास एक गधा था, जिस पर वह यात्रा करता रहता आपको नींद आ रही है और आपने कहा, हम न सोएंगे, तो भी | | था। एक दिन पड़ोस का एक आदमी उसका गधा मांगने आया और आप कर्ता हो गए। सुबह नींद आ रही है और आप जबर्दस्ती बोले | | उसने नसरुद्दीन से कहा कि अपना गधा मुझे दे दें; बहुत जरूरी कि हम तो ब्रह्ममुहूर्त में उठकर रहेंगे, तो भी कर्ता हो गए। काम है। नसरुद्दीन ने कहा कि गधा तो कोई और उधार मांग ले गया जीवन को सहज, जैसा जीवन है, उसको कर्ता को छोड़कर | है। लेकिन तभी-गधा ही तो ठहरा-पीछे से अस्तबल से गधे प्रकृति पर छोड़ देने वाला व्यक्ति संन्यासी है। कृष्ण उसी निष्काम | ने आवाज दी। वह आदमी क्रोध से भर गया। उसने कहा कि धोखा कर्मयोगी की बात कर रहे हैं। देते हैं मुझे? गधा अंदर बंधा हुआ मालूम पड़ता है। नसरुद्दीन ने लेकिन हमारे मन में बडी-बडी भ्रांत धारणाएं हैं। आज दोपहर कहा. क्या मतलब तम्हारा? मेरी बात नहीं मानते. गधे की बात एक बहत मजेदार बात हई। एक महिला मझे मिलने आई। आते ही मानते हो? मैं कहता हूं. मेरा तम्हें भरोसा नहीं आता। गधा आवाज उसने एक चांटा मेरे मुंह पर मार दिया। मैंने उससे पूछा, और क्या | देता है, उसका तुम्हें भरोसा आता है! किस तरह की भाषा समझते कहना है? तो उसने कहा, दूसरा गाल भी मेरे सामने करिए। मैंने | हो? आदमी हो कि गधे? दूसरा गाल भी उसके सामने कर दिया। उसने दूसरा चांटा भी मार ___ मैं जो कह रहा हूं, वह समझ में नहीं आएगा। मेरे शरीर को एक दिया। मैंने कहा, और क्या कहना है? उसने कहा कि नहीं, और चांटा मारकर कोई परीक्षा लेने आता है। लेकिन शरीर सवारी से कुछ नहीं कहना। मैं तो आपकी परीक्षा लेने आई थी। मैंने कहा, ज्यादा नहीं है, गधे से ज्यादा नहीं है। पर कुछ लोग उसकी ही भाषा मेरे शरीर को चांटा मारकर मेरी परीक्षा कैसे होगी? उससे नहीं समझते हैं। कहा, क्योंकि जिसकी शरीर पर बुद्धि अटकी हो, उससे कुछ भी प्रकृति की भाषा से ऊपर हम नहीं उठ पाते, इसलिए परमात्मा कहना कठिन है। की हमें कोई झलक भी नहीं मिल पाती है। परमात्मा की झलक लेनी मेरे शरीर को चोट पहुंचाकर मेरी परीक्षा कैसे होगी? लेकिन हो, तो प्रकृति की भाषा से थोड़ा पार जाना पड़ेगा। और यह चारों 359
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy