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गीता दर्शन भाग-26
योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः। बिना आत्मा की खोज के, वह शरीर को दो हिस्सों में बांट लेगा।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वत्रपि न लिप्यते ।।७।। | और शरीर को ही शरीर से लड़ाता रहेगा। कभी भी शरीर वश में तथा वश में किया हुआ है शरीर जिसके, ऐसा जितेंद्रिय और | नहीं होगा। शरीर को भी शरीर से लड़ाया जा सकता है। लेकिन विशुद्ध अंतःकरण वाला, एवं संपूर्ण प्राणियों के आत्मरूप शरीर को शरीर से लड़ाकर कोई वश नहीं होता। परमात्मा में एकीभाव हुआ निष्काम कर्मयोगी कर्म करता समझें, एक आदमी के मन में कामना है, वासना है। जहां भी हुआ भी लिपायमान नहीं होता। | आंख जाती है, वहीं वासना के विषय दिखाई पड़ते हैं। वह अपने
हाथ से आंख फोड़ लेता है। वह शरीर से ही शरीर को लड़ा रहा
है। हाथ भी शरीर है, आंख भी शरीर है। गरीर वश में किया हुआ है जिसका! इस बात को सबसे | | शरीर से शरीर को लड़ाकर कोई भी शरीर को वश में नहीं कर श पहले ठीक से समझ लें। साधारणतः हमें पता ही नहीं | | सकता है। मन से मन को लड़ाकर कोई मन को वश में नहीं कर
होता कि शरीर के अतिरिक्त भी हमारा कोई होना है। | सकता है। कोई भी चीज वश में तभी होती है, जब उसके पार किसी वश में करेगा कौन? वश में होगा कौन? हम तो स्वयं को शरीर | | तत्व का अनुभव शुरू होता है। अन्यथा वश में नहीं होती। मानकर ही जीते हैं। और जब तक कोई व्यक्ति स्वयं को शरीर | ___ हमेशा जो पार है, वह वश में करने वाला सिद्ध होता है। शरीर मानकर जीता है, तब तक शरीर वश में नहीं हो सकता, क्योंकि | | से श्रेष्ठतर को खोज लें अपने भीतर और शरीर वश में हो जाएगा। वश में करने वाले की हमें कोई खबर ही नहीं है।
श्रेष्ठतर के समक्ष निकृष्ट अपने आप ही झुक जाता है, झुकाना नहीं शरीर से अतिरिक्त कुछ और भी है हमारे भीतर, इसका | | पड़ता है। और मजा नहीं है कि झुकाना पड़े। और जिसे जबर्दस्ती अनुसंधान ही हम कभी नहीं करते हैं। जहां तक बाहर के जीवन की | | झुकाया है, वह आज नहीं कल बदला लेगा। जो सहज झुक गया जरूरत है, स्वयं को शरीर मानकर काम चल जाता है। लेकिन जहां | | है, श्रेष्ठ के आगमन पर जो उसके चरणों में गिर गया है, तो ही वश तक गहरे जीवन, परमात्मा की, अमृत की, आनंद की खोज की | में हो पाता है। जरूरत है, वहां शरीर की अकेली नाव से काम नहीं चलता है। शरीर से लड़कर, शरीर-दमन से, कृच्छ साधनाओं से, शरीर शरीर की नाव संसार के लिए पर्याप्त है। लेकिन जिसने आत्मा की | | को कोड़े मारकर, शरीर को कांटों पर लिटाकर, शरीर को धूप में नाव नहीं खोजी, वह प्रभु के सागर में प्रवेश नहीं कर पाएगा। | बिठाकर, शरीर को बर्फ में लिटाकर, शरीर को कितना ही कोई
और जिसे थोड़ा-सा भी पता चलना शुरू हुआ कि मैं शरीर से सताए, शरीर को कितना ही कोई परेशान करे, इससे कभी शरीर भिन्न हूं, उसे शरीर को वश में करना नहीं होता, शरीर तत्काल वश वश में नहीं होता। शरीर को परेशान करना और शरीर को सताना में होना शुरू हो जाता है। इस बात का अनुभव कि मैं शरीर से भी शरीर के द्वारा ही हो रहा है। इससे कभी भी शरीर वश में नहीं अलग, पृथक और ऊपर हूं, ट्रांसेंडेंटल हूं, शरीर का अतिक्रमण होता। हां, निर्बल हो सकता है, दीन हो सकता है, कमजोर हो करता हूं, मालिक के आ जाने की खबर है। जैसे किसी कक्षा में । सकता है। और निर्बलता से धोखा पैदा होता है कि वश में हो गया। शिक्षक भीतर आ जाए, शोरगुल बंद हो जाए। जैसे नौकरों के बीच __ यदि हम एक आदमी को भोजन न दें, इतना कम भोजन दें, में मालिक आ जाए और नौकर सम्हलकर अनुशासित हो जाएं। इतना न्यून कि उसकी शरीर की जरूरतें उस भोजन से पूरी न हो शरीर के भीतर इस बात का स्मरण भी आ जाए कि मैं भिन्न हूं, तो पाएं, तो उसमें वीर्य निर्मित नहीं होगा। वीर्य सदा अतिरिक्त शक्ति शरीर तत्काल अनुशासन में खड़ा हो जाता है।
| से निर्मित होता है। और तब उसे यह भ्रम पैदा हो सकता है कि मेरी शरीर वश में हो गया जिसका!
कामवासना पर मेरा काबू हो गया। धोखे में है वह। अगर एक किसका? सिर्फ उसका ही होता है शरीर वश में, जिसको स्वयं व्यक्ति के शरीर को दीन कर दिया जाए, हीन कर दिया जाए, के अशरीरी होने का अनुभव शुरू हुआ है।
| उसकी शक्ति ही छीन ली जाए-अनशन से, सताकर, परेशान लेकिन साधारणतः लोग शरीर को वश में करने में लग जाते हैं, करके, शरीर को उसकी पूरी जरूरतें न देकर तो शरीर कमजोरी बिना अशरीरी को खोजे। शरीर को वश में करने जो लग जाएगा की वजह से वासना की तरफ उठने में असमर्थ हो जाएगा। लेकिन
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