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गीता दर्शन भाग-26
लगा, ज्ञान की बातें करने लगा। उसके मन में कभी भी, कभी भी ___ अब पांच मिनट उठेंगे नहीं जरा भी! एक भी नहीं उठेगा। क्योंकि हिंसा के प्रति कोई अड़चन न थी। वह इतनी मौज से मार सकता | और कोई प्रसाद बांटने के लिए हमारे संन्यासियों के पास नहीं है। था कि वह हाथ भी नहीं धोता और मजे से खाना खाता। उसको वे अपना कीर्तन पांच मिनट आपको बांट देंगे। वह आपके मन में कोई मारने में तकलीफ नहीं थी। मारने में वह कुशलहस्त है। उससे गूंजता हुआ घर ले जाएं। वह उनका प्रसाद लेकर जाएं। और बीच ज्यादा कुशलहस्त आदमी खोजना मुश्किल है मारने में। लेकिन | | में कोई न उठे। एक जन उठ जाता है, तो बाकी लोगों को भी उठना आज क्या अड़चन थी! सोचता है, सरल तो यही है कि सब छोड़ पड़ता है। पांच मिनट बैठे रहें और पांच मिनट इस आनंद को लें दूं। और कृष्ण कैसा उलटा आदमी मिल गया! कहां गलत आदमी और फिर चुपचाप चले जाएं। को सारथी बना लिया!
इसलिए भगवान को सारथी बनाने से जरा बचना चाहिए। वे दिक्कत में रखेंगे। आपके रथ को ऐसी जगह ले जाएंगे, जहां आप नहीं चाहते कि जाए। उसी दिन गलती हो गई, जिस दिन कृष्ण को सारथी बना लिया। जिसने भी कृष्ण को सारथी बनाया, फिर रास्ता सुगम नहीं है। रास्ता अड़चन का होगा, यद्यपि परम उपलब्धि आनंद की होगी। मार्ग कठिन होगा, फल अमृत के होंगे। और गलत सारथी मिला, तो मार्ग तो बड़ा सरल होगा, लेकिन फल नर्क | हो सकता है। अंधेरी रात के गड्ड में गिरा देता है।
जैसे ही कृष्ण को दिखाई पड़ा कि उसको लग रहा है कि अब मैं उसके करीब आ रहा हूं, वे तत्काल हट जाते हैं। आते हैं और हट जाते हैं। उन्होंने फौरन कहा कि ध्यान रख, निष्काम कर्म साधे बिना कर्म-त्याग नहीं हो सकता। पहले तू युद्ध कर। ऐसे कर कि फल की कोई आकांक्षा न हो। अगर तू युद्ध करके फल की आकांक्षा के पार उठ गया, तो ठीक है; फिर तू कर्म भी त्याग कर देना। अर्जुन कहेगा, फिर कर्म-त्याग करने से मतलब ही क्या है! वक्त ही निकल गया। फिर तो राज्य हाथ में होगा। फिर त्याग करने का क्या मतलब है? कृष्ण कहते हैं, युद्ध तो कर ले, फल की आकांक्षा छोड़कर। और जब राज्य मिल जाए और युद्ध गुजर जाए और तू निष्काम साध ले, तब तू त्याग कर देना!
अर्जुन को यह बहुत कठिन लगता है। दुख की घड़ी तो गुजारो और सुख की घड़ी में छोड़ देना! लेकिन ध्यान रहे, धर्म की यही अपेक्षा है। सुख की घड़ी में जो छोड़े, वही धर्म को उपलब्ध होता है। दुख की घड़ी में कोई कितना ही छोड़े, धर्म को उपलब्ध नहीं होता है। दुख की घड़ी में कोई भी छोड़ना चाहता है। दुख की घड़ी में छोड़ना नैसर्गिक है, धार्मिक नहीं। सुख की घड़ी में छोड़ना एक बड़ी इंपासिबल रेवोल्यूशन, एक बड़ी असंभव क्रांति से गुजरना है। वह कृष्ण कहते हैं, उस असंभव क्रांति से गुजरना ही होगा अर्जुन!
आज इतना ही।
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