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________________ ॐगीता दर्शन भाग-20 श्रद्धावाल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ही पैदा होती थी। जो नहीं जानते थे, वे सोचते थे कि इंद्र हमारे पापों ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ।। ३९।। । | के लिए, दंड देने के लिए टंकार कर रहा है। इंद्र हमें दंड देने के और हे अर्जुन, जितेंद्रिय, तत्पर हुआ श्रद्धावान पुरुष ज्ञान को लिए शक्ति को फेंक रहा है। स्वाभाविक! गड़गड़ाहट बिजली की, प्राप्त होता है। ज्ञान को प्राप्त होकर तत्क्षण भगवत्प्राप्तिरूप | चमकती हुई उसकी अग्नि, रात के अंधेरे में प्राणों को थर्रा जाती हो, परम शांति को प्राप्त हो जाता है। आश्चर्य नहीं है। क्या यह संभव था कि वे लोग, जो नहीं जानते थे कि विद्युत क्या | है, अगर आकाश की बिजली से लड़ते, तो कभी जीत पाते? कभी जतेंद्रिय हुआ पुरुष, श्रद्धावान चित्त वाला ज्ञान को | | भी नहीं जीत पाते। आकाश की बिजली से लड़ते, तो मरते, टूटते, । उपलब्ध होता है; ज्ञान से परम शांति को, परम प्रभु | नष्ट होते। लड़ भी न पाते; जीतने का तो उपाय नहीं था। लेकिन को उपलब्ध होता है। जिन्होंने आकाश की बिजली के राज को समझने की कोशिश की, पहली बात, जितेंद्रिय हुआ पुरुष—इंद्रियों को जिसने जीता, | रहस्य को जानने की, उसकी सीक्रेट-की, उसकी कुंजी को खोज ऐसा पुरुष। | लेने की, वे मालिक हो गए। आज बिजली, वही बिजली, जो साधारणतः सोचते हैं हम कि जितेंद्रिय होगा वह, जो इंद्रियों से | | आकाश में कंपती, गर्जन करती, प्राणों को घबड़ा जाती थी, वही लड़ेगा, उन्हें हराएगा। यहीं भूल हो जाती है। जो इंद्रियों से लड़ेगा, | | बिजली अब घरों में प्रकाश बनकर, आपके हाथ में सेवक बनकर वह हारेगा; जितेंद्रिय कभी भी नहीं हो सकेगा। इंद्रियों को जीतने काम करती है। वही बिजली चाकर हो गई है! जो दंड देती मालूम का सूत्र इंद्रियों से लड़ना नहीं, इंद्रियों को जानना है। इंद्रियां जीती पड़ती थी, वही सेवक हो गई है। जाती हैं इंद्रियों के साक्षात्कार से। जो पुरुष इंद्रियों से लड़ने में लग बेकन ने कहा था नालेज इज़ पावर, बहिर्प्रकृति के संबंध में। जाता, वह इंद्रियों से निरंतर हारता है। जो लड़ेगा, वह हारेगा। जो | | जो-जो हम जान लेते हैं, उसके हम मालिक हो जाते हैं। टु नो इज़ जानेगा, वह जीतेगा। टु बी दि मास्टर, जाना कि मालिक हुए। नहीं जाना कि गुलामी ज्ञान विजय है। इंद्रियों का ज्ञान विजय है। भाग्य में होगी; गुलामी ही फिर नियति है। जान लिया हमने लड़ने से ज्यादा से ज्यादा दमन हो सकता है, सप्रेशन, रिप्रेशन | | जिस-जिस बात को, उस-उस के हम मालिक होते चले गए। हो सकता है। जिसे हम दबाते हैं, वह लौट-लौटकर उभरता है। | अंतःप्रकृति के संबंध में भी यही सत्य है। जिसे हम दबाते हैं, उसे हम और शक्ति देते हैं। क्रोध को दबाया, इसलिए जब कृष्ण कहते हैं, जितेंद्रिय पुरुष, तो भूलकर यह मत तो और गहन हिंसा होकर प्रकट होगा। काम को दबाया, तो और | समझ लेना, जैसा आमतौर से समझा जाता है कि वह पुरुष, जिसने विकृत, विषाक्त होकर प्रकट होगा। अहंकार को दबाया, तो एक अपनी इंद्रियों पर काबू पा लिया। नहीं, जितेंद्रिय पुरुष वह है, कोने से दबाएंगे, दस कोनों से निकलना शुरू होगा। | जिसने अपनी इंद्रियों के सब सीक्रेट, सब राज जान लिए। जानते इंद्रियों को दबाया नहीं जा सकता। क्यों? क्योंकि दबाता वही | | ही मालिक हो गया है, जितेंद्रिय हो गया है। है, जो इंद्रियों को जानता नहीं है। जो जानता है, वह दबाता ही नहीं इंद्रियां हार जाती हैं ज्ञान से; इंद्रियां प्रबल हो जाती हैं अज्ञान से। है। क्योंकि जो जान लेता है, इंद्रियां उसके वश में हो जाती हैं। इंद्रियों से लड़ता है जो, वह इंद्रियों के ही चक्कर में पड़ता है। बेकन ने कहा है, नालेज इज़ पावर, ज्ञान शक्ति है। | जितेंद्रिय होने का मार्ग, अंतःप्रकृति का ज्ञान है। यह तो उसने विज्ञान की दृष्टि से कहा है, साइंस की दृष्टि से। उदाहरण के लिए, आप जानते हैं, क्रोध क्या है? आकाश में यह तो उसने कहा है कि हम जितना जान लेंगे प्रकृति को, उतने ही गूंजती, आकाश में कंपती बिजली से कम रहस्यपूर्ण नहीं है। हम शक्तिशाली हो जाएंगे। लेकिन उसका यह वचन अंतःप्रकृति के | | आपकी अंतःप्रकृति में बिजली कौंध गई है। जानते हैं, क्रोध क्या लिए भी सत्य है। | है? जानते नहीं हैं। किया होगा बहुत बार; क्योंकि आकाश में ___ आकाश में चमकती है बिजली, सदा से चमकती रही है। जब | बिजली को बहुत बार चमकते देखा हो, तो भी हम जान नहीं लेते तक नहीं जानते थे उसे, तब तक प्राण थरथराते थे और घबड़ाहट हैं। देख लेना, जान लेना नहीं है। पता हो जाना, जान लेना नहीं है। 242
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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