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________________ स्वाध्याय-यज्ञ की कीमिया सोने के पहले, वही हमारा सुबह नींद के टूटने के बाद पहला विचार होता है। रात का अंतिम विचार, सुबह का पहला विचार है। क्यों? क्योंकि नींद में जो विचार प्रवेश कर जाता है, उसकी तरंगें रातभर चेतना में डोलती रहती हैं। रातभर डोलती रहती हैं। जैसे फेंक दिया एक कंकड़ झील में; लहरें उठीं और चल पड़ीं। ऐसे ही नींद के पहले क्षण में जो विचार आपके अंतस्तल में उतर जाता है, वह रातभर डोलता रहता है। __ अगर आप आठ घंटे सोए और राम का नाम आठ घंटे भीतर सूक्ष्म तरंगें लेता रहा, लेगा, तभी सुबह पहली तरंग बनेगा, नहीं तो नहीं बनेगा। और बन जाता है। सुबह पहला स्मरण श्वास के साथ, पहली श्वास के साथ, पहले होश के साथ, पहले जागरण के साथ राम वापस लौटा। रातभर जो प्रभु-स्मरण में डूबा रहा, संभावना बढ़ती है कि उसका दिन भी प्रभु-स्मरण का दिन बनेगा। इसलिए कृष्ण ने कहा, ईश्वर-जप। वैज्ञानिक है। लेकिन मेकेनिकल जिसने कर लिया ईश्वर-जप, उसका बेकार हो जाता है। एक आदमी जल्दी से स्नान किया है। घंटी बजा रहा है। राम-राम किया। भागा, दफ्तर गया। निपटाया एक काम। काम निपटाने से राम का कभी संबंध नहीं जुड़ता। काम नहीं, प्रेम; तो फिर गहरा उतर जाता है। हम काम की तरह करते हैं, इसलिए जिंदगीभर जप करते रहते हैं, कुछ भी हाथ नहीं आता। आएगा भी नहीं। हजार जिंदगी करते रहो, कुछ न आएगा हाथ। नहीं; प्राणों की गहराई में भाव से बिठाने की बात है। बैठ जाए प्राणों की गहराई में, तो रोआं-रोआं उससे ही कंपित हो जाता है। ___ फिर स्वाध्याय, स्वयं के गलत को जानना; और ईश्वर-जप, स्वयं के शुभ को स्मरण रखना; दोनों के तालमेल से जो यज्ञ फलित होता है, उसका नाम स्वाध्याय-यज्ञ है। अब तो शाम ही लेंगे। अभी सुबह दस मिनट के लिए हम ईश्वर-जप में लगें। रोएं-रोएं में उसको डोलने दें। स्टेज पर कोई न आए देखने के लिए। आप वहीं खड़े रहें, और थोड़ा फासला ज्यादा रखें। जो लोग पहली कतार में हैं, वे हाथ बांध लें, ताकि पीछे के लोग आगे न आएं। और जिनको भी सम्मिलित होना हो, वे बीच में आ जाएं। संन्यासियों के साथ नाचें। हो सकता है, उनकी तरंग आपको भी पकड़ जाए। 169
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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