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________________ - गीता दर्शन भाग-1 AM प्रश्नः भगवान श्री, आज सुबह आपने बताया कि मौजूद नहीं होता, इसलिए विचार कोई खबर नहीं ला पाता। गीता अध्यात्म-शास्त्र नहीं है. मानस-शास्त्र है। मगर इसलिए तो उपनिषद कह-कहकर थक जाते हैं, नेति-नेति। आपने यह भी बताया कि राम में रावण का अंश होता | कहते हैं, यह भी नहीं, वह भी नहीं। पूछे कि क्या है ? तो कहते हैं, है और रावण में राम का होता है। वैसे ही गीता में | यह भी नहीं है, वह भी नहीं है। जो भी मनुष्य कह सकता है, वह भी क्या ऐसा नहीं हो सकता कि शास्त्र में भी | | कुछ भी नहीं है। फिर क्या है वह अनुभव, जो सब कहने के बाहर अध्यात्म का कुछ अंश आ गया हो? | शेष रह जाता है? बुद्ध तो ग्यारह प्रश्नों को पूछने की मनाही ही कर दिए थे, कि इनको पूछना ही मत। क्योंकि इनको तुम पूछोगे तो खतरे हैं। अगर ' अध्यात्म को ऐसी अनुभूति कहता हूं, जो अभिव्यक्त | | मैं उत्तर न दूं तो कठोर मालूम पडूंगा तुम्हारे प्रति, और अगर उत्तर दूं 1 नहीं हो सकती। इशारे दिए जा सकते हैं, लेकिन इशारे | | तो सत्य के साथ अन्याय होगा, क्योंकि इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया अभिव्यक्तियां नहीं हैं। चांद को अंगुली से बताया जा जा सकता। इसलिए पूछना ही मत, मुझे मुश्किल में मत डालना। तो सकता है, लेकिन अंगुली चांद नहीं है। जिस गांव में बद्ध जाते. खबर कर दी जाती कि ये ग्यारह सवाल कोई गीता को जब मैंने कहा कि मनोविज्ञान है, तो मेरा अर्थ ऐसा नहीं | | भी न पूछे। वे ग्यारह सवाल अध्यात्म के सवाल हैं। है, जैसे कि फ्रायड का मनोविज्ञान है। फ्रायड का मनोविज्ञान मन | __ लाओत्से पर जब लोगों ने जोर डाला कि वह अपने अनुभव पर समाप्त हो जाता है; उसका कोई इशारा मन के पार नहीं है। मन लिख दे, तो उसने कहा, मुझे मुश्किल में मत डालो। क्योंकि जो मैं ही इति है, उसके आगे और कोई अस्तित्व नहीं है। गीता ऐसा | | लिखूगा, वह मेरा अनुभव नहीं होगा। और जो मेरा अनुभव है, जो मनोविज्ञान है, जो इशारा आगे के लिए करता है। लेकिन इशारा | मैं लिखना चाहता हूं, उसे लिखने का कोई उपाय नहीं है। फिर भी आगे की स्थिति नहीं है। दबाव में, मित्रों के आग्रह में, प्रियजनों के दबाव में नहीं माने गीता तो मनोविज्ञान ही है, लेकिन आत्मा की तरफ, अध्यात्म | | लोग, तो उसने अपनी किताब लिखी। लेकिन किताब के पहले ही की तरफ, परम अस्तित्व की तरफ, उस मनोविज्ञान से इशारे गए | | लिखा कि जो कहा जा सकता है, वह सत्य नहीं है। और सत्य वही . हैं। लेकिन अध्यात्म नहीं है। मील का पत्थर है; तीर का निशान | | है, जो नहीं कहा जा सकता है। इस शर्त को ध्यान में रखकर मेरी बना है; मंजिल की तरफ इशारा है। लेकिन मील का पत्थर मील | | किताब पढ़ना। का पत्थर ही है, वह मंजिल नहीं है। दुनिया में जिनका भी आध्यात्मिक अनुभव है, उनका यह भी कोई भी शास्त्र अध्यात्म नहीं हैं। हां, ऐसे शास्त्र हैं, जो अध्यात्म | अनुभव है कि वह प्रकट करने जैसा नहीं है। वह प्रकट नहीं हो की तरफ इशारे हैं। लेकिन सब इशारे मनोवैज्ञानिक हैं। इशारे सकता। निरंतर फकीर उसे गूंगे का गुड़ कहते रहे हैं। ऐसा नहीं कि अध्यात्म नहीं हैं। अध्यात्म तो वह है जो इशारे को पाकर उपलब्ध गूंगा नहीं जान लेता है कि गुड़ का स्वाद कैसा है, बिलकुल जान होगा। और वैसे अध्यात्म की कोई अभिव्यक्ति संभव नहीं है लेता है। लेकिन गंगा उस स्वाद को कह नहीं पाता। आप सोचते आंशिक भी संभव नहीं है। उसका प्रतिफलन भी संभव नहीं है। | | होंगे, आप कह पाते हैं, तो बड़ी गलती में हैं। आप भी गुड़ के स्वाद उसके कारण हैं। संक्षिप्त में दो-तीन कारण खयाल में ले लेने | | को अब तक कह नहीं पाए। गूंगा ही नहीं कह पाया, बोलने वाले जरूरी हैं। भी नहीं कह पाए। और अगर मैं जिद्द करूं कि समझाइए कैसा होता एक तो जब अध्यात्म का अनुभव होता है, तो कोई विचार चित्त है स्वाद, तो ज्यादा से ज्यादा गुड़ आप मेरे हाथ में दे सकते हैं कि में नहीं होता। और जिस अनुभव में विचार मौजूद न हो, उस | चखिए। इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। लेकिन गुड़ तो अनुभव को विचार प्रकट कैसे करे! विचार प्रकट कर सकता है उस | | हाथ में दिया जा सकता है, अध्यात्म हाथ में भी नहीं दिया जा अनुभव को, जिसमें वह मौजूद रहा हो, गवाह रहा हो। लेकिन | सकता कि चखिए। जिस अनुभव में वह मौजूद ही न रहा हो, उसको विचार प्रकट नहीं | - दुनिया का कोई शास्त्र आध्यात्मिक नहीं है। हां, दुनिया में ऐसे कर पाता। अध्यात्म का अनुभव निर्विचार अनुभव है। विचार | शास्त्र हैं, जिनके इशारे अध्यात्म की तरफ हैं। गीता भी उनमें से 54
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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