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गीता दर्शन भाग-1 AM
आज अमेरिका और यूरोप की युनिवर्सिटीज लड़के खाली करके | नहीं है। यह आकस्मिक नहीं है। इस जगत में आकस्मिक कुछ भी भाग रहे हैं। उनसे कहते हैं उनके मां-बाप कि पढ़ो, तो वे कहते हैं, नहीं होता। इस जगत में फूल भी खिलता है, तो लंबे कारण होते कल का क्या भरोसा? तुम्हीं ने तो कहा है कि सब अनिश्चित है, | हैं। अगर लंदन की सड़क पर कोई हरेकृष्ण का भजन ढोल पर
-लिखकर भी क्या होगा? और वे लड़के पूछते हैं कि पीटता हआ घमता है, तो यह आकस्मिक नहीं है। यह पश्चिम के हिरोशिमा में भी लड़के पढ़ रहे थे कालेज में, फिर एटम गिर गया | | चित्त में कहीं कोई गहरी पीड़ा है।
और सब समाप्त हो गया। हम भी पढ़ेंगे, तुम एटम तैयार कर रहे | ___ अर्जुन तो मौजूद हो गया, कृष्ण कहां हैं ? प्रश्न तो खड़ा हो गया, हो, किस दिन गिरा दोगे, कुछ पता नहीं है। तो हमें जी लेने दो, जो उत्तर कहां है? उत्तर की तलाश है; उत्तर की तलाश पैदा हुई है। दो-चार क्षण हमें मिले हैं, हमें जी लेने दो।
| इसलिए ठीक सवाल था यह। तो पश्चिम में जो जीवन का एक विस्तार है टाइम में, समय में । लेकिन मैं अर्जुन को मनुष्य का प्रतीक कहता हूं। और अर्जुन को जो एक जीवन की यात्रा है, वह एकदम खंडित हो गई है। क्षण पर जो ममत्व पकड़ा, वह भी मनुष्य की मनुष्यता है। लेकिन नीत्से का टिक गया है; अभी जो है, कर लो; अगले क्षण का कोई भरोसा एक वचन आपसे कहूं। नीत्से ने कहा है, अभागा होगा वह दिन, नहीं है। और अगले क्षण के भरोसे को करोगे भी क्या? अंततः तो जिस दिन मनुष्य मनुष्य से पार होने की आकांक्षा छोड़ देगा। मृत्य ही है; अगला क्षण मृत्य है। टाइम जो है, वह डेथ का अभागा होगा वह दिन, जिस दिन मनुष्य की प्रत्यंचा पर मनुष्य को पर्यायवाची हो गया पश्चिम में; समय और मृत्यु एक ही अर्थ के | पार करने वाला तीर न खिंचेगा। अभागा होगा वह दिन, जिस दिन हो गए। अभी जो है, है; और कोई मूल्य नहीं है।
| मनुष्य मनुष्य होने से तृप्त हो जाएगा। मनुष्य मंजिल नहीं है, पड़ाव अभी एक व्यक्ति ने कई हत्याएं कीं। और जब अदालत ने उससे | है। उसे पार होना ही है। अर्जुन मंजिल नहीं है, पड़ाव है। पूछा तो उसने कहा, क्या हर्ज है! जब सभी को मर ही जाना है, तो | | स्वाभाविक है आदमी के लिए, अपनों को चाहे। स्वाभाविक है मैंने मरने में सहायता की है। और वे तो मर ही जाते; उनको मारने | | आदमी के लिए, अपनों को मारने से डरे। स्वाभाविक है आदमी से मुझे थोड़ा आनंद मिला है! उसके ले लेने में हर्ज क्या है? जब | | के लिए, ईदर-ऑर पकड़े-यह या वह, करूं या न करूं–चिंता कोई मूल्य ही नहीं है, तो ठीक है।
आए। लेकिन जो मनुष्य के लिए स्वाभाविक है, वह जीवन का अंत , सार्च की पीढ़ी पश्चिम को एक खोखलेपन से, एक हालोनेस से नहीं है। और मनुष्य के लिए जो स्वाभाविक है, वह सिर्फ मनुष्य भर गई। क्योंकि उसके पास उत्तर नहीं थे, सिर्फ प्रश्न थे। और के लिए स्वाभाविक है। और उस स्वभाव में चिंता और पीड़ा और उसने प्रश्नों को ही उत्तर बता दिया।
| तनाव भी जुड़े हैं; अशांति, दुख और विक्षिप्तता भी जुड़ी है। अगर अर्जुन जीत जाए, तो इस मुल्क में भी हालोनेस पैदा हो मनुष्य को अगर हम स्वाभाविक समझें, तो वह स्वाभाविकता जाए। अर्जुन नहीं जीता और कृष्ण जीत गए। वह एक संघर्ष था | | वैसी ही है, जैसे कैंसर स्वाभाविक है, टी.बी. स्वाभाविक है। बड़ा अर्जुन और कृष्ण के बीच। अगर अर्जुन को शक सवार हो | | लेकिन टी.बी. के स्वभाव के साथ पीड़ा भी जुड़ी है। ऐसे ही मनुष्य जाए, और धुन सवार हो जाए गुरु होने की, और वह अपनी | को अगर हम पशु की तरफ से देखें, तो मनुष्य एक एवोल्यूशन है, जिज्ञासाओं को उत्तर बना दे, और अपने प्रश्नों को उत्तर बना दे, | | एक विकास है; और अगर परमात्मा की तरफ से देखें, तो एक और अपने अज्ञान को ज्ञान मान ले, तो इस मुल्क में भी वही स्थिति | | डिसीज है, एक बीमारी है। अगर हम पशु की तरफ से देखें, तो पैदा हो जाती, जो पश्चिम में अस्तित्ववादी चिंतन के कारण पैदा | मनुष्य एक विकास है; और अगर परमात्मा की तरफ से देखें, तो हुई है। स्थिति वही है, लेकिन पश्चिम के पास अभी भी कृष्ण नहीं | मनुष्य एक बीमारी है, एक डिसीज है। हैं। लेकिन इस सिचुएशन में कृष्ण पश्चिम में पैदा हो सकते हैं। | यह अंग्रेजी का शब्द डिसीज बहुत अच्छा है। यह दो शब्दों से
और इसलिए बहुत आश्चर्य की बात नहीं है कि कृष्ण- बना है-डिस, ईज। उसका सिर्फ मतलब होता है बेचैनी, नाट ऐट कांशसनेस जैसे आंदोलन पश्चिम के मन को पकड़ रहे हैं। कोई | | ईज। तो आदमी एक डिसीज है, एक बेचैनी है, अगर परमात्मा की आश्चर्य नहीं है कि पश्चिम की सड़कों पर लड़के और लड़कियां | तरफ से देखें। ढोल पीटकर और कृष्ण का भजन कर रहे हैं। यह कोई आश्चर्य | और अगर पशु भी हमारे संबंध में सोचते होंगे, तो वे भी नहीं