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mगीता दर्शन भाग-1 AM
टन से द्वंद्व
आंतरिक द्वंद्व कहां है?
एक्झिस्टेंशियल ही थी। सार्च, कामू या उनामुनो या जेस्पर या आंतरिक द्वंद्व इसीलिए है कि एक तीसरा भी है, जो देख रहा है। हाइडेगर, पश्चिम में जो भी अस्तित्ववादी विचारक हैं, वे ठीक जो कह रहा है कि मन में बड़ा द्वंद्व है। मन कभी यह कहता है, मन अर्जुन की मनःस्थिति में हैं। इसलिए सावधान रहना, पश्चिम में कभी वह कहता है। लेकिन जो मन के द्वंद्व के संबंध में कह रहा | | कृष्ण पैदा हो सकते हैं। क्योंकि जहां अर्जुन की मनःस्थिति हो, वहां है, यह कौन है?
कृष्ण के पैदा होने की संभावना हो जाती है। पूरा पश्चिम द्वंद्व में उतरें और इस तीसरे को पहचानते जाएं। जैसे-जैसे द्वंद्व | | एक्झिस्टेंशियल क्राइसिस में है। पूरे पश्चिम के सामने मनुष्य की में उतरेंगे, यह तीसरा साक्षी, यह विटनेस दिखाई पड़ना शुरू हो | चिंतातुरता एकमात्र सत्य होकर खड़ी हो गई है। क्या करें और क्या जाएगा। और जिस दिन यह तीसरा दिखाई प
न करें? ईदर ऑर, यह या वह? क्या चुनें, क्या न चुनें? कौन-सा विदा होने शुरू हो जाएंगे। तीसरा नहीं दिखाई पड़ता, इसलिए द्वंद्व | | मूल्य चुनने योग्य है, कौन-सा मूल्य चुनने योग्य नहीं है-सब है। तीसरा दिखाई पड़ता है, तो जोड़ शुरू हो जाता है।
संदिग्ध हो गया है। पर द्वंद्व से भागे मत। द्वंद्व की प्रक्रिया अनिवार्य है। उससे ही और ध्यान रहे कि पश्चिम में भी यह जो अस्तित्ववादी चिंतन गुजरकर, वह जो द्वंद्व के पार है, ट्रांसेंडेंटल है, उसे पाया जाता है। पैदा हुआ, यह दो युद्धों के बीच में पैदा हुआ है। सार्च या कामू या
पूरी गीता उस तीसरे बिंदु पर ही खींचने की कोशिश है अर्जुन उनामुनो पिछले दो महायुद्धों की परिणति हैं। पिछले दो महायुद्धों को, पूरे समय अर्जुन को खींचने की चेष्टा कृष्ण की यही है कि वह ने पश्चिम के चित्त में भी वह स्थिति खड़ी कर दी है, जो अर्जुन के तीसरे को पहचान ले। वह तीसरे को पहचान ले, तीसरे की पहचान | चित्त में महाभारत के सामने खड़ी हो गई थी। विगत दो युद्धों ने के लिए सारा श्रम है। वह तीसरा सबके भीतर है और सबके बाहर | पश्चिम के सारे मूल्य डगमगा दिए हैं। और अब सवाल यह है कि भी है। लेकिन जब तक भीतर न दिखाई पड़े, तब तक बाहर दिखाई | लड़ना कि नहीं लड़ना? लड़ने से क्या होगा? और ठीक स्थिति नहीं पड़ सकता है। भीतर दिखाई पड़े, तो बाहर वही-वही दिखाई | | वैसी है कि अपने सब मर जाएंगे, तो लड़ने का क्या अर्थ है! और पड़ने लगता है।
जब युद्ध की इतनी विकट स्थिति खड़ी हो जाए, तो शांति के समय | में बनाए गए सब नियम संदिग्ध हो जाएं तो आश्चर्य नहीं है। यह .
ठीक सवाल उठाया है। प्रश्नः भगवान श्री, आपने धनंजय को सिंबल आफ सार्च ठीक अर्जुन की मनःस्थिति में है। खतरा दूसरा है। सार्च की ह्यूमन एट्रिब्यूट, मानवीय गुणों का प्रतीक बताया है। | मनःस्थिति से खतरा नहीं है। सार्च अर्जुन की मनःस्थिति में है, और सार्च के कथन से, ही इज़ कंडेम्ड टु बी एंग्जाइटी | लेकिन समझ रहा है, कृष्ण की मनःस्थिति में है। खतरा वहां है। है रिडेन। तो स्वजनों की हत्या के खयाल से धनंजय का | अर्जुन की मनःस्थिति में। जिज्ञासा करे, ठीक है। प्रश्न पूछे, ठीक कंप जाना क्या मानवीय नहीं था? युद्धनिवृत्ति का | है। वह उत्तर दे रहा है। खतरा वहां है। खतरा यहां है कि सार्च उसका विचार मोहवशात भी क्या प्रकृति-संगत नहीं | जिज्ञासा नहीं कर रहा है। सार्च पूछ नहीं रहा कि क्या है ठीक। सार्च था? शेक्सपियर के हेमलेट की तरह अर्जुन का विषाद | उत्तर दे रहा है कि कुछ भी ठीक नहीं है। सार्च उत्तर दे रहा है कि भी, टु किल आर नाट टु किल, मारना या न मारना | कुछ भी ठीक नहीं है, कोई मूल्य नहीं है। अस्तित्व अर्थहीन है, प्रकार का था। तिलक ने गीता-रहस्य में अर्जुन की मीनिंगलेस है। विषाद दशा का साम्य हेमलेट की मनःस्थिति में ढूंढ़ यह जो उत्तर दे रहा है कि ईश्वर नहीं है जगत में, आत्मा नहीं है निकाला, क्या यह उचित है?
जगत में, मृत्यु के बाद बचना नहीं है जगत में, सारा का सारा अस्तित्व एक अव्यवस्था है, एक अनार्की है, एक संयोग-जन्य
घटना है, इसमें कोई सार नहीं है कहीं भी। यह उत्तर दे रहा है। यहां मात्र जो कहता है, वह अर्जुन लिए बिलकुल ठीक ही | खतरा है। राा कहता है। अर्जुन की भी संकट-अवस्था । अर्जुन भी उत्तर दे सकता था। लेकिन अर्जुन सिर्फ जिज्ञासा कर