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गीता दर्शन भाग-1 AM
आ गये जहां श्री रजनीश आश्रम' की स्थापना हुई। पूना आने | | मिल-जुल कर अपने सद्गुरु के सान्निध्य में आनंद और उत्सव के बाद उनके प्रभाव का दायरा विश्वव्यापी होने लगा। के वातावरण में एक अनूठे नगर के सृजन को यथार्थ रूप दे रहे
श्री रजनीश आश्रम पूना में प्रतिदिन अपने प्रवचनों में थे। शीघ्र ही यह नगर रजनीशपुरम नाम से संयुक्त राज्य ओशो ने मानव-चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर अमरीका का एक निगमीकृत (इन्कापोरेटेड) शहर बन गया। किया। बुद्ध, महावीर, कृष्ण, शिव, शांडिल्य, नारद, जीसस के | किंतु कट्टरपंथी ईसाई धर्माधीशों के दबाव में व राजनीतिज्ञों के साथ ही साथ भारतीय अध्यात्म-आकाश के अनेक निहित स्वार्थवश प्रारंभ से ही कम्यून के इस प्रयोग को नष्ट नक्षत्रों-आदिशंकराचार्य, गोरख, कबीर, नानक, मलूकदास, करने के लिए अमरीका की संघीय, राज्य और स्थानीय सरकारें रैदास, दरियादास, मीरा आदि पर उनके हजारों प्रवचन उपलब्ध हर संभव प्रयास कर रही थीं। हैं। जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके प्रवचनों से | । जैसे अचानक एक दिन ओशो मौन हो गये थे वैसे ही अस्पर्शित रहा हो। योग, तंत्र, ताओ, झेन, हसीद, सूफी जैसी | | | अचानक अक्तूबर 1984 में उन्होंने पुनः प्रवचन देना प्रारंभ कर विभिन्न साधना-परंपराओं के गूढ़ रहस्यों पर उन्होंने सविस्तार दिया। जीवन-सत्यों के इतने स्पष्टवादी व मुखर विवेचनों से प्रकाश डाला है। साथ ही राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, | निहित स्वार्थों की जड़ें और भी चरमराने लगी। . दर्शन, शिक्षा, परिवार, समाज, गरीबी, जनसंख्या-विस्फोट, ___ अक्तूबर 1985 में अमरीकी सरकार ने ओशो पर पर्यावरण तथा संभावित परमाणु युद्ध के व उससे भी बढ़कर | | आप्रवास-नियमों के उल्लंघन के 35 मनगढंत आरोप लगाए। एड्स महामारी के विश्व-संकट जैसे अनेक विषयों पर भी बिना किसी गिरफ्तारी-वारंट के ओशो को बंदूकों की नोक पर उनकी क्रांतिकारी जीवन-दष्टि उपलब्ध है।
| हिरासत में ले लिया गया। 12 दिनों तक उनकी जमानत शिष्यों और साधकों के बीच दिए गए उनके ये प्रवचन स्वीकार नहीं की गयी और उनके हाथ-पैर में हथकड़ी व छह सौ पचास से भी अधिक पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो । बेड़ियां डाल कर उन्हें एक जेल से दूसरी जेल में घुमाते हुए चुके हैं और तीस से अधिक भाषाओं में अनुवादित हो चुके हैं। | पोर्टलैंड (ओरेगॅन) ले जाया गया। इस प्रकार, जो यात्रा कुल वे कहते हैं. "मेरा संदेश कोई सिद्धांत. कोई चिंतन नहीं है। | पांच घंटे की है वह आठ दिन में पूरी की गयी। जेल में उनके मेरा संदेश तो रूपांतरण की एक कीमिया. एक विज्ञान है।" | शरीर के साथ बहुत दुर्व्यवहार किया गया और यहीं संघीय ___ ओशो अपने आवास से दिन में केवल दो बार बाहर | सरकार के अधिकारियों ने उन्हें 'थेलियम' नामक धीमे असर आते-प्रातः प्रवचन देने के लिए और संध्या समय सत्य की | वाला जहर दिया। यात्रा पर निकले हए साधकों को मार्गदर्शन एवं नये प्रेमियों को 14 नवंबर 1985 को अमरीका छोड़ कर ओशो भारत संन्यास-दीक्षा देने के लिए।
| लौट आये। यहां की तत्कालीन सरकार ने भी उन्हें समूचे विश्व सन 1980 में कट्टरपंथी हिंदू समुदाय के एक सदस्य | से अलग-थलग कर देने का परा प्रयास किया। तब ओशो द्वारा उनकी हत्या का प्रयास भी उनके एक प्रवचन के दौरान | | नेपाल चले गये। नेपाल में भी उन्हें अधिक समय तक रुकने किया गया।
की अनुमति नहीं दी गयी। ___ अचानक शारीरिक रूप से बीमार हो जाने से 1981 की | फरवरी 1986 में ओशो विश्व-भ्रमण के लिए निकले वसंत ऋतु में वे मौन में चले गये। चिकित्सकों के परामर्श पर जिसकी शुरुआत उन्होंने ग्रीस से की, लेकिन अमरीका के उसी वर्ष जन में उन्हें अमरीका ले जाया गया। उनके अमरीकी दबाव के अंतर्गत 21 देशों ने या तो उन्हें देश से निष्कासित शिष्यों ने ओरेगॅन राज्य के मध्य भाग में 64.000 एकड जमीन | किया या फिर देश में प्रवेश की अनुमति ही नहीं दी। इन खरीदी थी जहां उन्होंने ओशो को रहने के लिए आमंत्रित | | तथाकथित स्वतंत्र व लोकतांत्रिक देशों में ग्रीस, इटली, किया। धीरे-धीरे यह अर्ध-रेगिस्तानी जगह एक फूलते-फलते | | स्विट्जरलैंड, स्वीडन, ग्रेट ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, हालैंड, कम्यून में परिवर्तित होती गई। वहां लगभग 5,000 प्रेमी मित्र कनाडा, जमाइका और स्पेन प्रमुख थे।
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