________________
AA गीता दर्शन भाग-1
,
धूमेनावियते वह्निर्यथादों मत्लेन च।
और सिर्फ वही खोया, जो मेरे पास था ही नहीं, लेकिन मुझे मालूम यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् । । ३८।। | पड़ता था कि मेरे पास है। जो नहीं था, उसे खो दिया है; और जो
आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा। | था, उसे पा लिया है। कामरूपेण कौन्तेय दुष्यूरेणानलेन च ।। ३९।।
जैसे धएं में आग ढंकी हो. तो आग पाना नहीं होती. केवल जैसे धुएं से अग्नि और मल से दर्पण ढंक जाता है (तथा) | धुआं अलग हो जाए, तो आग प्रकट हो जाती है। जैसे सूरज जैसे स्निग्ध झिल्ली से गर्भ ढंका हुआ है, वैसे ही उस काम | बदलियों से ढंका हो, तो सूरज पाना नहीं होता; सिर्फ बदलियां हट के द्वारा यह ज्ञान ढंका हुआ है।
जाएं, तो सूरज प्रकट हो जाता है। जैसे बीज ढंका है, वृक्ष पाना और हे अर्जुन! इस अग्नि (सदृश) न पूर्ण होने वाले नहीं है। वृक्ष बीज में है ही, अप्रकट है, छिपा है, कल प्रकट हो कामरूप ज्ञानियों के नित्य वैरी से ज्ञान ढंका हुआ है। जाएगा। ऐसे ही ज्ञान सिर्फ अप्रकट है, कल प्रकट हो जाएगा।
इसके दो अर्थ हैं। इसका एक अर्थ तो यह है कि अज्ञानी भी उतने
ही ज्ञान से भरा है, जितना परमज्ञानी। फर्क अज्ञानी और ज्ञानी में . कष्ण ने कहा है, जैसे धुएं से अग्नि ढंकी हो, ऐसे ही | | अगर हम ठीक से समझें, तो अज्ञानी के पास ज्ञानी से कुछ थोड़ा qp काम से ज्ञान ढंका है। जैसे बीज अपनी खोल से ढंका | ज्यादा होता है. ध ज्यादा होता है। आग तो उतनी ही होती है.
___ होता है, ऐसे ही मनुष्य की चेतना उसकी वासना से | जितनी ज्ञानी के पास होती है; अज्ञानी के पास कुछ और ज्यादा भी ढंकी होती है। जैसे गर्भ झिल्ली में बंद और ढंका होता है, ऐसे ही | होता है, धुआं भी होता है। सूरज तो उतना ही होता है जितना ज्ञानी मनुष्य की आत्मा उसकी कामना से ढंकी होती है। इस सूत्र को ठीक | | के पास होता है; अज्ञानी के पास काली बदलियां भी होती हैं। अगर से समझ लेना उपयोगी है।
इस तरह सोचें, तो अज्ञानी के पास ज्ञानी से कुछ ज्यादा होता है। पहले तो यह समझ लेना जरूरी है कि ज्ञान स्वभाव है—मौजूद, | | और जिस दिन ज्ञान उपलब्ध होता है, उस दिन यह जो ज्यादा है, अभी और यहीं। ज्ञान कोई उपलब्धि नहीं है, कोई एचीवमेंट नहीं | | यही खोता है, यही आवरण टूटकर गिर जाता है। और जो भीतर है। ज्ञान कोई ऐसी बात नहीं है, जो आज हमारे पास नहीं है और छिपा है, वह प्रकट हो जाता है। कल हम पा लेंगे। क्योंकि अध्यात्म मानता है कि जो हमारे पास तो पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है कि अज्ञानी से नहीं है, उसे हम कभी नहीं पा सकेंगे। अध्यात्म की समझ है कि | अज्ञानी मनुष्य के भीतर ज्ञान पूरी तरह मौजूद है; अंधेरे से अंधेरे में जो हमारे पास है, हम केवल उसे ही पा सकते हैं। यह बड़ी उलटी | | भी, गहन अंधकार में भी परमात्मा पूरी तरह मौजूद है। कोई कितना बात मालूम पड़ती है। जो हमारे पास है, उसे ही हम केवल पा| ही भटक गया हो, कितना ही भटक जाए, तो भी ज्ञान से नहीं भटक सकते हैं; और जो हमारे पास नहीं है, हम उसे कभी भी नहीं पा सकता, वह उसके भीतर मौजूद है। हम कहीं भी चले जाएं और सकते हैं। इसे ऐसा कहें कि जो हम हैं, अंततः वही हमें मिलता है | | हम कैसे भी पापी हो जाएं और कितने भी अज्ञानी और कितना ही
और जो हम नहीं हैं, हमारे लाख उपाय, दौड़-धूप हमें वहां नहीं | अंधेरा और जिंदगी कितने ही धुएं में घिर जाए, तो भी हमारे भीतर पहुंचाते, वह नहीं उपलब्ध होता, जो हम नहीं हैं।
| जो है, वह नहीं खोता है। उसके खोने का कोई उपाय नहीं है। बद्ध को जिस दिन ज्ञान हआ. लोग उनके पास आए और उन्होंने
लोग मेरे पास आ
हैं कि ईश्वर को खोजना है। पूछा, आपको क्या मिला? तो बुद्ध ने कहा, यह मत पूछो; यह तो उनसे मैं पूछता हूं, तुमने खोया कब? इसका मुझे सब पूछो कि मैंने क्या खोया! वे लोग हैरान हुए; उन्होंने कहा, इतनी | | हिसाब-किताब दे दो, तो मैं तुम्हें खोजने का रास्ता भी बता दूं। तपश्चर्या, इतनी साधना, इतनी खोज क्या खोने के लिए करते थे| ईश्वर ऐसे तत्व का नाम है, जिसे हम खोना भी चाहें, तो नहीं खो या पाने के लिए? बुद्ध ने कहा, कोशिश तो पाने के लिए की थी, | सकते हैं। खोने का जिसे उपाय ही नहीं है, उसका नाम स्वभाव है, लेकिन अब जब पाया, तो कहता हूं कि सिर्फ खोया, पाया कुछ भी उसका नाम स्वरूप है। आग उत्ताप नहीं खो सकती, वह उसका नहीं। नहीं उनकी समझ में आया होगा। उन्होंने कहा, हमें ठीक से | | स्वभाव है। मनुष्य ज्ञान नहीं खो सकता, यह उसका स्वभाव है। समझाएं! तो बुद्ध ने कहा, वही पाया जो मुझे मिला ही हुआ था; | | लेकिन फिर भी अज्ञान तो है। तो अज्ञान को हम क्या समझें?
454