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परधर्म, स्वधर्म और धर्म
आदमी तीनों के बाहर निकल जाता है और परमात्मा को अनुभव कर पाता है। जब तक आदमी इधर-उधर डोलता है...।
कभी आपने देखा है न को, रस्सी पर चलता है, कभी थिर नहीं रहता। आप कहें कि थिर क्यों नहीं रहता ? थिर रहे- थिर रहे, तो फौरन गिरे और मर जाए । थिर क्यों नहीं रहता है नट? नट पूरे वक्त बैलेंस करता रहता है । और जब आपको दिखता है, अब बाएं झुक रहा हैं, तो आप गलती में मत पड़ जाना। बाएं झुकता ही तब है, जब दाएं गिरने का डर पैदा होता है। दाएं तब झुकता है, जब बाएं गिरने का डर पैदा होता है। वह बैलेंस कर रहा है पूरे वक्त। जब दाएं गिरने का डर पैदा होता है, वह वजन को बाएं ले जाता है, ताकि बैलेंस हो जाए। जब दाएं से बच जाता है, बाएं गिरने का डर पैदा होता है, तब उलटी तरफ बैलेंस ले जाता है कि बच जाए। और प्रकृति नीचे काम कर रही है। नट अगर बैलेंस न करे, तो जमीन पर गिरे, हड्डी - पसली टूट जाए। फिर प्रकृति से यह नहीं कह सकता कि तूने मेरी हड्डी-पसली तोड़ी ! प्रकृति कहेगी, हमें कोई मतलब नहीं; तुम अपनी रस्सी पर बैलेंस करते रहो, हमें कोई मतलब नहीं।
तीन जो गुण हैं, इनमें जो बैलेंस कर लेता है, वह व्यक्ति धर्म को उपलब्ध हो जाता है। नहीं बैलेंस कर पाता, तो गिरता है, हड्डी-पसली टूट जाती है। फिर हम कहते हैं, किसने बलात गिरा दिया! किसी ने नहीं गिराया, आप बैलेंस नहीं कर पाए।
कृष्ण का पूरा योग समतायोग है, दि योग आफ बैलेंस । बस, नट की तरह पूरे वक्त जिंदगी एक बैलेंस है, एक संतुलन है; सदा, सदा संतुलन है। ज्यादा खा लिया, तो उपवास करो; ज्यादा उपवास कर लिया, तो ग्लूकोस के इंजेक्शन लो ! बस, बैलेंस पूरे वक्त। . पूरे समय जिंदगी एक बहुत बारीक संतुलन है, डेलिकेट बैलेंस है। उसमें जरा इधर-उधर हुए कि आप गए। प्रकृति अपना काम करती रहेगी। वह नीचे खड़ी है। वह कह रही है कि नट, जब तक तुम बैलेंस करो, रहो ऊपर, जब न कर पाओ, नीचे आ जाओ । हम तैयार हैं।
अनिवार्य तत्व हैं तीन, उससे कम नहीं हो सकते। तीन के बिना सृष्टि खो जाएगी, इसलिए वे हैं। लेकिन तमस में आप गिरें, इसलिए नहीं। आप तमस के द्वारा रजस को साधते रहें। जब तमस बढ़ जाए, रजस की तरफ झुक जाएं। जब रजस बढ़ जाए, तमस की तरफ झुक जाएं। दोनों को साधते रहें। और जब दोनों बिलकुल सध जाएं, तो आपकी वर्टिकल यात्रा सत्व की तरफ शुरू होगी । फिर तीनों के बीच साधना पड़ेगा। वह और भी गहरी
कीमिया है। दो के बीच साधना बहुत आसान है। दो के बीच साधेंगे, तो सत्व में उठ जाएंगे।
साधु उसे कहते हैं, जो सत्व में पहुंच गया है, जिसने दो को साध | लिया। जो तमस और रजस के बीच संतुलित हो गया, उसका नाम साधु है। जो रजस, तमस और सत्व तीनों के बीच सध गया, उसका नाम संत है। वह बहुत अलग बात है। जब तीनों के बीच कोई साधता है, तो सेंटर पर पहुंच जाता है ट्राएंगल के। वह सेंटर ही द्वार है ट्राएंगल का तीन शक्तियों के बीच में वह स्पेस है, खाली | जगह है, जहां से व्यक्ति परमात्मा में, ब्रह्म में प्रवेश कर जाता है।
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लेकिन यह धीरे-धीरे हम बात करेंगे, तो खयाल में आएगी। पहले साधु बनें, दो के बीच साधें। फिर संत बनें, तीन के बीच साधें। और जिस दिन तीन के बीच सधा, उस दिन बनना बंद हो | जाता है, उसी दिन परमात्मा में प्रवेश हो जाता है। उस दिन प्रकृति |के तीनों गुणों के बाहर आदमी हो जाता है।
इसलिए प्रकृति है त्रिगुणा और परमात्मा है त्रिगुणातीत, वह तीनों के बाहर है। शेष कल बात करेंगे।
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