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________________ m परधर्म, स्वधर्म और धर्म - कि आग लगे, लेकिन यह आग लग गई है। बारूद का नियम है, क्या कर दिया। वह बुढ़िया नीचे गिर पड़ी। तब उसे पता चला, यह धर्म है, वह आग लगा देगी। तुमने चिनगारी फेंकी, चिनगारी का धर्म | | तो मैंने हत्या कर दी! तब वह भागा। और तब वह रातभर अपने है कि वह आग पकड़ा देगी। और जब बारूद भड़क उठेगी, तब तुम बिस्तर में सोचता है कि मैं उसकी हत्या कैसे कर दिया! परवश। छाती पीटोगे और चिल्लाओगे कि यह तो मैं नहीं चाहता था। जो अर्जुन कह रहा है कि जैसे बलात कोई धक्का दे...। तो वह कभी आपने देखा, एक आदमी हत्या कर देता है...दोस्तोवस्की कहता है, कौन मेरे ऊपर सवार हो गया! कोई भूत, कोई प्रेत! क्या का एक बहत कीमती उपन्यास है, क्राइम एंड पनिशमेंट। उसमें हआ? मैंने हत्या क्यों कर दी? किसने मझसे हत्या करवा दी? यह रोसकोलनिकोव नाम का एक पात्र है। वह रोज अपने सामने उसकी | | कौन शैतान मेरे पीछे पड़ा है? मकान मालकिन जो है, उसके मकान की बुढ़िया जो मालकिन कोई उसके पीछे नहीं पड़ा है। दो साल तक उसने सोचा, तैयारी है-वह कोई सत्तर साल की बूढ़ी औरत है-वह गिरवी रखने का | | की। दो साल तक उसने शक्तियों को रस दिया, दो साल तक हाथ काम करती है और लोगों से खींचकर ब्याज चूसती है। मरने के | | भींचे, दो साल तक मन में क्रोध का जहर फैलाया। वह सब तैयार करीब है, लेकिन रत्तीभर दया नहीं करती। कोई नहीं है उसका: बहत हो गया। धन है। तो रोसकोलनिकोव-एक विद्यार्थी है-वह देखता रहता बीज बोते वक्त किसको पता चलता है कि वृक्ष निकलेगा? बीज अपनी खिड़की से। गरीब आदमी गिड़गिड़ाते हैं, रोते हैं, चिल्लाते | | बोते वक्त किसको पता चलता है कि इतना बड़ा वृक्ष पैदा होगा? हैं, लेकिन कुछ भी नहीं। उनके कपड़े भी उतरवा लिए जाते हैं; कोई फिर बलात वृक्ष पैदा हो जाता है। और बीज हम ही बोते हैं। बीज दया नहीं, कोई ममता नहीं। कई बार उसके मन में होता है, इस छोटा होता है, दिखाई भी नहीं पड़ता है। मन में क्रोध के बीज बोते बुढ़िया को कोई मार क्यों नहीं डालता? इसके होने की कोई जरूरत हैं, काम के बीज बोते हैं, फिर शक्तियां पकड़ लेती हैं। फिर वे तीन ही क्या है? यह मर भी जाए, तो हर्ज क्या है? यह मर जाए, तो शक्तियां अपना काम शुरू कर देती हैं। आपने बीज बोया, जमीन सैकड़ों लोग जो उसके चक्कर में फंसे हैं, वे मुक्त हो जाएं। काम शुरू कर देती है, पानी काम शुरू कर देता है, रोशनी काम गरीब किसान, गरीब मजदूर, गरीब लोग, विधवा औरतें, | | शुरू कर देती है। सूरज की किरणें आकर बीज को बड़ा करने बीमार आदमी, वे सब उससे ब्याज पर रुपया ले लेते हैं। फिर वह लगती हैं। कभी चुकता नहीं। उनकी चीजें भी चुक जाती हैं और उन पर __ आप हैरान होंगे कि जमीन बहुत कम काम करती है। अभी एक अदालत में मकदमे भी चलते हैं. सजाएं भी हो जाती हैं। रोज यही वैज्ञानिक ने प्रयोग किया नाप-तौलकर प्रयोग किया। एक बट काम। वह कई बार सोचता है, कोई इसकी गरदन क्यों नहीं दबा | वृक्ष को लगाया एक गमले में, बड़े गमले में, नाप-तौलकर देता! और बहुत बार उसके हाथ खुद भिंच जाते हैं कि गरदन दबा | बिलकुल। इतनी मिट्टी, इतना गमले का वजन, इतने वृक्ष के बीज दूं। फिर वह सोचता है कि मुझे क्या मतलब? और मैं क्यों दबाऊं? | का वजन, सब नाप-तौलकर लगाया। फिर वृक्ष बहुत बड़ा हो और मेरा क्या बिगाड़ा है? फिर वह बात भूल जाता है। फिर ऐसे | गया। फिर उसने वृक्ष पूरा का पूरा निकाल लिया और फिर नापा। वर्षों चलता रहा। तो जितना कोई दो सौ सेर का गमला उसने रखा था, उसमें केवल फिर एक दिन उसे भी फीस भरनी है और घर से पैसे नहीं आए। चार सेर की कमी हुई। चार सेर कुल! और वृक्ष को नापा-तौला, तो वह अपनी घड़ी रखने उस बुढ़िया के पास गया। सांझ का वक्त | | तो वह तो कोई दो सौ अस्सी सेर निकला वृक्ष। और कुल चार सेर है, उसने घड़ी बुढ़िया को दी। बुढ़िया ठीक से देख नहीं सकती, की कमी हुई मिट्टी में। और उस वैज्ञानिक का खयाल है कि वे चार सत्तर साल उसकी उम्र है। वह खिड़की के पास घड़ी को ले जाकर | | सेर भी वृक्ष ने नहीं लिए। वह भी, हवा भी आती है, तूफान भी देखती है रोशनी में कि ठीक है या नहीं; कितने पैसे दिए जा सकते | | आता है, मिट्टी उड़ भी जाती है; पानी में बह भी जाती है। चार सेर! हैं। अचानक बस रोसकोलनिकोव को क्या हुआ कि उसने जाकर | | इतना बड़ा वृक्ष कहां से आ गया? सूरज भी दे रहा है, हवाएं भी दे उसकी गरदन दबा दी। उसे पता ही नहीं चला, कब यह हुआ। | रही हैं, पानी भी दे रहा है, जमीन भी दे रही है, चारों तरफ से पूरा गरदन जब दब गई और जब उसके हाथ में उसकी नसें उभर आईं, कास्मास उसको दे रहा है। और खून उसके मुंह से गिरने लगा, तब वह घबड़ाया कि यह मैंने | एक छोटे-से बीज को आपने बो दिया, फिर सारी दुनिया की 449
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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