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________________ परधर्म, स्वधर्म और धर्म 4 ये तीन तत्व हैं, जिनको भारत ने ऐसे नाम दिए थे। पश्चिम जिनको इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्यूट्रान कहे, कोई और नाम दे, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। एक बात बहुत अनिवार्य रूप से सिद्ध हो गई है कि जीवन का अंतिम विश्लेषण तीन शक्तियों पर टूटता है। इसलिए हमने इन तीन शक्तियों को ये कई तरह से नाम दिए जो लोग वैज्ञानिक ढंग से सोचते थे, उन्होंने रजस, तमस, सत्व ऐसे नाम दिए । जो लोग मेटाफोरिकल, काव्यात्मक ढंग से सोचते थे, उन्होंने कहा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश। उनका भी काम वही है। वे तीन नाम भी यही काम करते हैं। उसमें ब्रह्मा सर्जक शक्ति हैं, विष्णु सस्टेनिंग, संभालने वाले और शिव विनाश करने वाले । उन तीन के बिना भी नहीं हो सकता। ये जो इलेक्ट्रान, न्यूट्रान और प्रोटान हैं, ये भी ये तीन काम करते हैं। उसमें जो इलेक्ट्रान है, वह निगेटिव है । वह ठीक शिव जैसा है, निगेट करता है, तोड़ता है, नष्ट करता है । उसमें जो प्रोटान है, वह ब्रह्मा जैसा है, पाजिटिव है, इसलिए प्रोटान उसका नाम है। वह विधायक है, वह निर्माण करता है। और उसमें जो न्यूट्रान है, वह न निगेटिव है, न पाजिटिव है। वह सस्टेनिंग है, वह बीच में है, बैलेंसिंग है। कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य के भीतर- भी घटित होता है, बाहर और भीतर - वह इन तीन शक्तियों का खेल है। इन तीन शक्तियों के अनुसार सब घटित होता है। आदमी धकाया जाता, रोका जाता, जन्माया जाता, मरण को उपलब्ध होता, हंसी को उपलब्ध होता, रोने को उपलब्ध होता - वह इन सारी तीन शक्तियों का काम है। ये तीन शक्तियां अपना काम करती रहती हैं। ये परमात्मा के तीन रूप जीवन को सृजन देते रहते हैं। अर्जुन पूछता है, फिर नहीं भी हम करना चाहते, फिर कौन करवा लेता है? आप तो चाहते हैं कि जमीन पर न गिरें, लेकिन जरा पैर फिसला कि गिर जाते हैं। कोई शैतान गिरा देता है ? कोई शैतान नहीं गिरा देता ; ग्रेविटेशन अपना काम करता है। आप नहीं गिरना चाहते, माना, स्वीकृत कि आप नहीं गिरना चाहते, लेकिन उलटे-सीधे चलेंगे, तो गिरेंगे। आप नहीं गिरना चाहते थे, तो भी गिरेंगे। पैर पर पलस्तर लगेगा। आप डाक्टर से कहेंगे, मैं नहीं गिरना चाहता था और परमात्मा तो टांग तोड़ता नहीं किसी की, क्यों तोड़ेगा? इतना बुरा तो नहीं हो सकता कि अकारण मुझ भले आदमी की, जो गिरना भी नहीं चाहता, उसकी टांग तोड़ दे। लेकिन मेरी टांग क्यों टूट गई? तो डाक्टर वही उत्तर देगा, जो कृष्ण ने दिया। डाक्टर कहेगा, ग्रेविटेशन की वजह से। जमीन में गुरुत्वाकर्षण है, आप कृपा करके सम्हलकर चलें । उलटे-सीधे चलेंगे, तो ग्रेविटेशन टांग तोड़ देगी। क्योंकि प्रत्येक शक्ति अगर हम उसके अनुकूल न चलें, तो नुकसान पहुंचाने वाली हो जाती है। | अगर अनुकूल चलें, तो नुकसान पहुंचाने वाली नहीं होती। प्रत्येक शक्ति का उपयोग अनुकूल और प्रतिकूल हो सकता है। अब मनुष्य के भीतर कौन - सी शक्तियां हैं, जो उसे बलात - जैसे कि एक आदमी नहीं गिरना चाहता है और गिर जाता है और टांग टूट | जाती है। और एक आदमी क्रोध नहीं करना चाहता है और क्रोध हो जाता है और खोपड़ी खुल जाती है। या दूसरे की खुल जाती है या | खुद की खुल जाती है। क्या, कौन कर जाता है यह सब ? परमात्मा ? क्या प्रयोजन है ! और परमात्मा ऐसे काम करे, तो परमात्मा हम उसे कैसे कहेंगे? कोई कहेगा, शैतान । कृष्ण नहीं कहते । कृष्ण कहते हैं, सिर्फ जीवन की शक्तियां काम कर रही हैं। परमात्मा मनुष्य के भीतर क्रोध है। वह भी अनिवार्य तत्व है। कहें कि वह हमारे भीतर निगेटिव फोर्स है, क्रोध विनाश की शक्ति है हमारे भीतर। प्रेम हमारे भीतर निर्माण की शक्ति है । और विवेक हमारे भीतर बैलेंसिंग फोर्स है। जो आदमी विवेक को छोड़कर सारी शक्ति क्रोध में लगा देगा, वह बलात नर्क की तरफ चलने लगेगा; नहीं चाहेगा, तो भी जाएगा। जो सारी शक्ति प्रेम की ओर लगा देगा, वह बलात स्वर्ग की ओर जाने लगेगा, चाहे चाहे और चाहे न चाहे । उसके जीवन में सुख उतरने लगेगा। और जो आदमी बैलेंस कर लेगा और समझ लेगा कि दुख और सुख और दोनों के बीच में अलग, वह आदमी मुक्ति और मोक्ष की दिशा में यात्रा कर जाएगा। इसलिए हमारे पास तीन शब्द और समझ लेने जैसे हैं, स्वर्ग, नर्क और मोक्ष | स्वर्ग में वह जाता है, जो अपने भीतर की विधायक शक्तियों के अनुकूल चलता है। नर्क में वह जाता है, जो अपने भीतर विनाशक शक्तियों के अनुकूल चलता है। मोक्ष में वह जाता है, जो दोनों के अनुकूल नहीं चलता है; दोनों को संतुलित करके दोनों को ट्रांसेंड कर जाता है, परे हो जाता है, अतीत हो जाता है। कृष्ण कह रहे हैं, शक्तियां हैं और इन तीन शक्तियों के बिना जीवन नहीं हो सकता है। इसलिए अर्जुन, कौन तुझे धक्का देता है, ऐसा मत पूछ| यह समझ कि धक्का तेरे भीतर से कैसे निर्मित होता है। क्रोध, काम, अहंकार, अगर उनके प्रति तू अतिशय से झुक जाता है, तो जो तू नहीं चाहता वह तुझे करना पड़ता है। कभी आपने देखा, कामवासना मन को पकड़ ले – ऐसा कहना | ठीक नहीं है कि कामवासना मन को पकड़ ले, कहना यही ठीक 447
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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