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- अहंकार का भ्रम -
फिर दुबारा आएंगे ही नहीं वहां। क्योंकि हम तो संतों के पास लेने | | तब अगर तेरों से लड़ने का कोई मौका मिल जाए, तो मेरों की लड़ाई जाते हैं, देने तो नहीं जाते। यह किस तरह का संत है! | एकदम बंद हो जाती है।
गुरजिएफ था अभी। कोई उससे सवाल पूछता, तो वह कहता, आपने देखा, चीन का हमला हो गया हिंदुस्तान पर। तो फिर, सौ रुपए पहले रख दो। लोग कहते, आप कैसे संत हैं? हम तो | फिर हिंदुस्तान में हिंदी बोलने वाले, गैर-हिंदी बोलने वाले का कोई सवाल पूछते हैं, आप सौ रुपए! तो गुरजिएफ कहता कि मैं बहुत झगड़ा नहीं। फिर हिंदू-मुसलमान का कोई झगड़ा नहीं। फिर सस्ते में तुम्हें जवाब दे रहा हूं।
| मैसूर-महाराष्ट्र का कोई झगड़ा नहीं। फिर मद्रास इसका-उसका, ये कृष्ण बड़ा महंगा जवाब हैं। वे कह रहे हैं, तू छोड़ दे सब। कोई झगड़ा नहीं। सब झगड़े शांत, मेरों से लड़ाई बंद। क्योंकि तेरों सौ रुपए नहीं, सब। तू अपने को ही छोड़ दे। वे अर्जुन से कह रहे से लड़ाई शुरू हो गई। हैं, तू सब छोड़ दे मुझ पर—सारी आशा, सारी आकांक्षा, सारी लड़ने में कोई दिक्कत नहीं, लेकिन मेरों से लड़ने में बड़ी ममता-मैं तैयार हूं। लेकिन अर्जुन तैयार नहीं है।
कठिनाई होती है। हां, जब कोई तेरे मिलते ही नहीं, तो मजबूरी में अर्जुन की हालत वैसी है, जैसे कभी-कभी ऐसा होता है न कि मेरों से लड़ते हैं। इसलिए सारी दुनिया में तेरों से लड़ाई खोजी जाती ट्रेन में कभी कोई देहाती आदमी आ जाता, तो सिर पर बिस्तर है; चौबीस घंटे खोजी जाती है। नहीं तो मेरों से लड़ाई हो जाएगी। रखकर बैठ जाता है। इस खयाल में कि ट्रेन पर कहीं ज्यादा वजन | अभी मेरे एक मित्र की पत्नी मेरे पीछे पड़ी थी कि मेरे पति को न पड़े। तो वह खुद बैठे रहते हैं, सिर पर बिस्तर रखे रहते हैं। हम समझा दें कि वे अलग हो जाएं मां-बाप से। मैंने मित्र को बुलाकर सब भी ऐसा ही करते हैं। हम सोचते हैं, कहीं परमात्मा पर ज्यादा | पूछा कि लगता तो है कि इतना उपद्रव चलता है, तो अलग हो वजन न पड़ जाए, इसलिए अपना वजन खुद ही रखे रहते हैं। सब | जाओ। लेकिन एक ही बात मुझे पूछनी है कि अभी तो तुम्हारी पत्नी वजन परमात्मा पर है, आपका भी, आपके वजन का भी। और जब तुम्हारे मां-बाप से लड़ लेती है, तुम्हें पक्का भरोसा है कि उनसे उसी पर है, और जब टेन चल ही रही है, तो नाहक सिर पर क्यों छटकर तमसे नहीं लडेगी? मैंने कहा, जहां तक बोझ रखे हुए हैं!
लड़ेगी। क्योंकि करेगी क्या? वह तेरों से लड़ाई बंद हो जाएगी, तो वे कृष्ण इतना ही कहते हैं कि बिस्तर नीचे रख, मुझ पर छोड़ और पास सरक आएगी। दे, तू आराम से बैठ। तू नाहक इतना बोझ क्यों लिए हुए है? तू | इसलिए संयुक्त परिवार थे, तो पति-पत्नियों में कलह नहीं थी। इतनी चिंता में क्यों पड़ता है कि क्या होगा युद्ध से? कौन मरेगा, आपको मालूम है, संयुक्त परिवार थे, तो पति-पत्नी में कभी कलह कौन बचेगा? इतने लोग मर जाएंगे, फिर क्या होगा? समाज का | नहीं थी। जिस दिन से संयुक्त परिवार टूटा, उस दिन से पति-पत्नी क्या होगा? राज्य का क्या होगा? तू इतनी सारी चिंताएं अपने सिर की कलह बहुत गहरी हो गई। पति-पत्नी बच नहीं सकते, वे भी पर क्यों लेता है? तू छोड़ दे मेरे ऊपर।
टूटेंगे। संयुक्त परिवार में बड़ा हिस्सा चलता रहता था, अपनों को __ अर्जुन को चिंता है भी नहीं वह सब। हम कभी भी नहीं पहचान बचाकर लड़ाई चलती रहती थी। दूसरे काफी थे, उनसे लड़ाई हो पाते कि हम सब तरह से रेशनलाइजेशंस करते रहते हैं। अर्जन जाती थी। अब कोई बचे ही नहीं। अब वे दोनों ही बचे हैं सिर्फ भागना चाहता है। वह अपनों से लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पति-पत्नी। अब वे लड़ेंगे ही। इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि पा रहा है, इसलिए सब तर्क खोज रहा है। वह तर्क का एक जाल | पति-पत्नी, सांझ अकेली न बीत जाए, इससे डरे रहते हैं। किसी खड़ा कर रहा है। वह कह रहा है, यह तकलीफ होगी, यह तकलीफ | | मित्र को बुला लो, किसी मित्र के घर चले जाओ। कोई तीसरा होगी, यह तकलीफ होगी। कुल मामला इतना है कि तकलीफों से | | मौजूद रहे, तो थोड़ा, तो सांझ सरलता से बीत जाती है। उसे कोई मतलब नहीं है। मतलब उसे सिर्फ इतना है कि मेरों से यह जो कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं, तू सब छोड़ दे मुझ पर, फिर कैसे लडूं? यह उसका मैं जो है, वह मेरों से लड़ने के लिए तैयार तेरे लिए कुछ करने को नहीं बचता। मैं करूंगा, तू वाहन हो जा। नहीं हो पाता। किसी का मैं नहीं तैयार हो पाता। मेरों से हम कभी धर्म की एक ही पुकार है कि आप सिर्फ वाहन हो जाएं और लड़ने को तैयार नहीं होते। और इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि परमात्मा को करने दें। आप कर्ता न बनें, परमात्मा पर कर्तृत्व छोड़ अगर मेरों से लड़ने की हालत आ जाए, तो बड़ी कठिनाई होती है, दें सब और आप इंस्ट्रमेंट, साधन मात्र रह जाएं। कबीर ने कहा है
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