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- गीता दर्शन भाग-1 -
भी लड़ने जाएं तो पहले बहुत ठीक से देख लेना कि किससे लड़ पहले मित्र तो बनाना जरूरी होता ही है। बिना मित्र बनाए शत्रु रहे हैं? वह कौन है? इसका पूरा निरीक्षण तभी संभव है, जब साक्षी | | बनाना मुश्किल है। विचारहीन चित्त मित्रता भी बनाता है, तो शत्रुता होने की क्षमता हो, अन्यथा संभव नहीं है।
ही निकलती है। युद्ध स्वाभाविक है। इसलिए गीता अब शुरू होने के करीब आ रही है। उसका ___ दूसरी सीढ़ी विचार की है। विचार सदा डांवाडोल है। विचार रंगमंच तैयार हो गया है। लेकिन इस सूत्र को देखकर लगता है कि | | सदा कंपित है। विचार सदा वेवरिंग है। दूसरी सीढ़ी पर अर्जुन है। अगर आगे की गीता का पता भी न हो, तो जो आदमी निरीक्षण को | | वह कहता है, निरीक्षण कर लूं, देख लूं, समझ लूं, फिर युद्ध में समझता है, वह इतने सूत्र पर भी कह सकता है कि अर्जुन को | | उतरूं। कभी कोई दुनिया में देख-समझकर युद्ध में उतरा है? लड़ना मुश्किल पड़ेगा। यह आदमी लड़ न सकेगा। इसको लड़ने | देख-समझकर तो युद्ध से भागा जा सकता है। देख-समझकर युद्ध . में कठिनाई आने ही वाली है।
में उतरा नहीं जा सकता। क्योंकि जो आदमी निरीक्षण को उत्सुक है, वह आदमी लड़ने में | __ और तीसरी सीढ़ी पर कृष्ण हैं। वह निर्विचार की स्थिति है। वहां मुश्किल पाएगा। वह जब देखेगा तो लड़ न पाएगा। लड़ने के लिए | भी विचार नहीं हैं; लेकिन वह विचारहीनता नहीं है। थाटलेसनेस
आंखें बंद चाहिए। लड़ने के लिए जूझ जाना चाहिए, निरीक्षण की | और नो थाट, विचारहीनता और निर्विचार एक से मालूम पड़ते हैं। सुविधा नहीं होनी चाहिए। गीता न भी पता हो आगे, तो जो आदमी | | लेकिन उनमें बुनियादी फर्क है। निर्विचार वह है, जो विचार की निरीक्षण के तत्व को समझेगा, वह इसी सूत्र पर कह सकेगा कि यह | | व्यर्थता को जानकर ट्रांसेंड कर गया, पार चला गया। आदमी भरोसे का नहीं है। यह आदमी युद्ध में काम नहीं पड़ेगा। यह | विचार सब चीजों की व्यर्थता बतलाता है—जीवन की भी, प्रेम आदमी युद्ध से हट सकता है। क्योंकि जब देखेगा, तो सब इतना | | की भी, परिवार की भी, धन की भी, संसार की भी, युद्ध की व्यर्थ मालूम पड़ेगा। जो भी निरीक्षण करेगा, तो सब इतना फ्युटाइल, | भी विचार सब चीजों की व्यर्थता बतलाता है। लेकिन अगर कोई इतना व्यर्थ मालूम पड़ेगा कि वह कहेगा कि हट जाऊं। | विचार करता ही चला जाए, तो अंत में विचार विचार की भी व्यर्थता
यह अर्जन जो बात कह रहा है, वह बात इसके चित्त की बड़ी बतला देता है। और तब आदमी निर्विचार हो जाता है। फिर प्रतीक है। यह अपने चित्त को इस सूत्र में साफ किए दे रहा है। यह | निर्विचार में सब ठीक वैसा ही हो जाता है संभव, जैसा विचारहीन . यह नहीं कह रहा है कि मैं युद्ध को आतुर हूं। मेरे सारथी! मुझे उस | को संभव था। लेकिन क्वालिटी, गुण बिलकुल बदल जाता है। जगह ले चलो, जहां से मैं दुश्मनों का विनाश ठीक से कर सकूँ। एक छोटा बच्चा जैसे होता है। जब कोई संतत्व को उपलब्ध यह यह नहीं व कहना यही चाहिए। यह
होता है बढापे तक. तब फिर छोटे बच्चे जैसा हो जाता है। लेकिन कि मुझे उस जगह ले चलो, जहां से मैं देख सकूँ कि कौन-कौन | | छोटे बच्चे और संतत्व में ऊपरी ही समानता होती है। संत की आंखें लड़ने आए हैं, कितने आतुर हैं; मैं निरीक्षण कर सकूँ। यह निरीक्षण | | भी छोटे बच्चे की तरह भोली हो जाती हैं। लेकिन छोटे बच्चे में बता रहा है कि यह आदमी विचार का आदमी है। और विचार का | | अभी सब दबा पड़ा है। अभी सब निकलेगा। इसलिए छोटा बच्चा आदमी दुविधा में पड़ेगा।
| तो एक वॉल्केनो है, एक ज्वालामुखी है। अभी फूटा नहीं है, बस __या तो युद्ध वे लोग कर सकते हैं, जो विचारहीन हैं-भीम की | | इतना ही है। उसकी निर्दोषता, उसकी इनोसेंस ऊपर-ऊपर है, भीतर तरह, दुर्योधन की तरह। या युद्ध वे लोग कर सकते हैं, जो निर्विचार | | तो सब तैयार है; बीज बन रहे हैं, फूट रहे हैं। अभी काम आएगा, हैं—कृष्ण की तरह। विचार है बीच में।
क्रोध आएगा, शत्रुता आएगी-सब आएगा। अभी सबकी तैयारी ये तीन बातें हैं। विचारहीनता विचार के पहले की अवस्था है। | चल रही है। छोटा बच्चा तो सिर्फ टाइम बम है। अभी समय लेगा युद्ध बहुत आसान है। युद्ध के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है, | | और फूट पड़ेगा। लेकिन संत पार जा चुका है। वह सब जो भीतर ऐसी चित्त-दशा में आदमी युद्ध में होता ही है। वह प्रेम भी करता | | बीज फूटने थे, फूट गए, और व्यर्थ हो गए, और गिर गए। अब है, तो प्रेम उसका युद्ध ही सिद्ध होता है। वह प्रेम भी करता है, तो | | कुछ भी भीतर शेष नहीं बचा; अब आंखें फिर सरल हो गई हैं, अब अंततः घृणा ही सिद्ध होती है। वह मित्रता भी बनाता है, तो सिर्फ फिर सब निर्दोष हो गया है। शत्रुता की एक सीढ़ी सिद्ध होती है। क्योंकि शत्रु बनाने के लिए इसलिए जीसस ने कहा है किसी ने पूछा जीसस से कि कौन
रहा
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